शनिवार, 16 जनवरी 2016

भेटल ?

  धुमसुरिक चोट सन आखर लिखल 
मनुक्ख, कुक्कुड़, बेंग, भाषा ओ संस्कृति समेटल
आंदोलनकारी पर कए प्रहाड़ 
बाजू अपने की सब भेटल ?

जेहने बुझू तेहने उगल 
भलें स्वार्थ सँ हो डूबल
विद्वत् जनक आभाव कहियो नहि 
की तैयो सब मैथिल मिलि क'
अष्टम सूची लेल एक भ' जुटल ?

भने भोजन कए बैसल अनशन पर 
ध्यान दियौ मात्र ओकर कर्म पर 
नहि अपने सन पड़ल घरमे
कनिया संग अछि पलंग पर सुतल

घर सुतल सपनहि घुमि आबथि 
दिल्ली,मुंबई ओ कलकत्ता
नहि जाएब हम कोनो दल संग 
भलें लोक हो कतबो जुटल

अछि जौं दाबा अपना के बड्ड
हम छी सब सँ होशगर 
सिद्ध करू मैथिल जन मे 
हम छी सब सँ बुद्धिगर 
मन क्रम वचन सँ टांग नहि खिचु 
जोड़ लागू पाछा सँ 
नहि त' कहियो अपनों सोचब 
एहि अदखोई - बदखोई सँ की भेटल ?

-------संजय झा "नागदह"
२५/०२/२०१५




quotes / उद्धरण






तलाश कर देखो खुद को  …
जेब नहीं भाई।



तलाश कर देखो खुद के
दिलों और दिमाग को
नशीहते जो बाँट रहे हो
खुद में है भी ?


मिथिला राज्य क्यों ?

अगर मिथिला राज्य क्यों ? तो फिर भारत में अनेको राज्य और केंद्रशाषित प्रदेश क्यों ? सम्पूर्ण भारत एक क्यों नहीं ? भारत में तो ऐसे - ऐसे राज्य है जो कि ८-१० जिला को मिलाकर राज्य बनाया गया है । जबकि मिथिला का मांग तो २८-३० जिला को एक करके माँग किया जा रहा है जिलाओं का अगर गिनती करे तो इस प्रकार है - मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार, समस्तीपुर, मुज़फ्फरपुर, बेगुसराय, खगरिया, वैशाली, भागलपुर, बांका, गोड्डा, साहेबगंज, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, देवघर, दुमका, पाकुर, जामतारा, जमुई, लक्खीसराय और शेखसराय । मिथिला आज से नहीं वरन कई युगों से अपने नाम से जाने जानेवाली धरोहर है । ख़ास कर जो लोग हिन्दू धर्म से जुड़े है वह तो वेद, पुराण और रामायण जैसे ग्रन्थ में मिथिला नाम का जाप तो कर ही चुके हैं और कर ही रहे हैं । मिथिला के लोग जो कि  बहुत  ही सभ्य है जिसको ब्रिटिश इंडिया से लेकर स्वत्रंत भारत  होने के के वावजूद भी किसी ने मिथिला के ऊपर उस दृष्टि से नहीं देखा, जिस तरह अन्य राज्यों को देखा गया । 

आधुनिक समय में १८५७ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज देश को खंडित और कमजोर करने में काफी सक्रीय था । उसी समय नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच युद्ध भी हुआ था । इसी यद्ध (१८१४ -१८१६) के बाद अंग्रेज अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए ०४ मार्च १८१६ को सुगौली संधि किया, जिसमे भारत का मिथिला क्षेत्र का भू - भाग करीब पांच हज़ार वर्गमील नेपाल को दे दिया । ये संधि 'ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल का गोरखा राजा के बीच हुआ था ।  ये अन्याय तो आधुनिक समय में सबसे पहले अंग्रेज ने किया, और मिथिला कि तेजस्वी भूमि को दो देशो में विभक्त कर दिया, सम्भवतः उसको यहाँ से भागने  में ये पाप भी सहायक हुआ होगा । नेपाल में जो मैथिली भाषी जिला है वो इस प्रकार है – परसा, बारा, रौतहत, सरलाही, महोत्तरी, धनौसा, सिरहा, सप्तारी, सुनसारी, मोरंग और झापा इसमें से कुछ जिला का भाग सुगौली संधि के समय ब्रिटिश इंडिया ने नेपाल को दे दिया था । उस समय भी एक भाषीय परिवार को अंगेज ने तोड़ कर दो टुकड़ा कर दिया । ये अन्याय भी मिथिलावासी बर्दास्त कर अंग्रेजो को भगाने में भारत को स्वतंत्रत करने और करवाने के लिए एकजूट हो स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े ताकि देश के और टुकड़े -टुकड़े अंग्रेज न कर सकें ।  

१९१७ ई० में जो भी भारत का साहित्यिक भाषा था उसको अनिवार्य रूप से कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति स्वर्गीय सर आशुतोष मुखर्जी जी ने  प्रतिष्ठित किया । जिसके परिणाम स्वरुप हिंदी, बंगला, मणिपुरी और आसामी के साथ - साथ मैथिली को भी मेट्रिक से लेकर स्नातक तक का विषय बनाया गया । साथ साथ मात्र पाँच साहित्यिक भाषा को एम० ए० का मुख्य विषय के रूप में स्वीकृति मिला जिसके मध्य मैथिली भी था । मैथिली कि अपनी लिपि भी है जिसे मिथिलाक्षर के रूप में जाना जाता है । मैथिली भाषा का बहुत ठोस आधार है । माना जाता है कि जिस भाषा का अपना लिपि अपना व्याकरण और अधिकाधिक बोला जाता हो उसी को ठोस भाषा के रूप स्थापित किया जाता है, जिसको सर्व प्रथम कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा मातृभाषा के रूप सम्मानित किया जा चुका है । बंगला, मणिपुरी, आसामी सबको अपना - अपना राज्य मिल गया, पर शांत मिथिला न्यायिक ग्रन्थ लिखनेबाला मिथिला का किताब पढ़ दूसरों को अधिकार तो दे दिया गया परन्तु न्याय दर्शन पढ़कर भी मिथिला का उपेक्षा किया गया । ये कैसा न्याय है ?

१९२० ई० में कोंग्रेस का नागपुर अधिवेसन में राज्य निर्माण के लिए भाषा को प्राथमिक महत्व दिया गया और आगे चलकर इसी आधार पर कई राज्य बने भी जैसे उड़ीसा, आंध्रा प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मद्रास वर्त्तमान का चेन्नई और आसाम तो प्रथम राज्य है जो कि भाषा के आधार पर ही बनाया गया । १९२१ ई० में असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप जब राष्ट्रिय भावना का उद्भव हुआ उस समय हिंदी का खूब प्रचार किया जा रहा था । खास कर अंग्रेजी को बहिष्कार करने के लिए, जबकि हिंदी राष्ट्र भाषा का स्थान पा चूका था, फिर भी काका कालेलकर मैथिली भाषीय क्षेत्र दरभंगा में बिना धन्यबाद लिए ही अपना सम्भाषण मंच छोड़कर चले गए थे, सिर्फ इसलिए कि उन्होंने ये कह दिया था कि ये हिंदी भाषीय क्षेत्र है और उस पर उनको शांतिपूर्वक विरोध कर दिया गया था कि ये हिंदी भाषीय नहीं बल्कि मैथिली भाषीय क्षेत्र मिथिला है ।    

सर जॉर्ज़  गियर्सन के माध्यम  से भारत के सभी भाषा का सर्वेक्षण भी किया गया और उन्होंने सबसे पहला मैथिली व्याकरण का किताब भी लिखा जो कि १९२७ ई० प्रकाशित था । परन्तु भाषाई आधार पर राज्य बनाने बाले भारतीय प्रतिनिधि को इस तरफ ध्यान कौन ले जाता ? १९३७ ई० में कलकत्ता के अधिवेशन में इसी नीति को फिर से दोहराया भी गया परन्तु अभी तक मिथिला के तरफ किसी का ध्यान केंद्रित नही हो सका । १९४७ ई० में भारत स्वतंत्र हो गया और १९५० से १९५६ तक भाषा को मुख्य आधार मानते हुए कई राज्य बनाया गया । परन्तु मिथिला कहाँ ? किसी ने भी इसका खोज - खबर  नहीं लिया, इस बात को देखते हुए मिथिलावासी  को काफी चोट पहुंचा और १९५० -१९५२ आते - आते छोटा -मोटा आंदोलन होने लगा । 

१९७२ -७३ में जब डॉ अमर नाथ झा बिहार लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बने तब मैथिली को आयोग का एक विषय के रूप में प्रस्ताव  का  स्वीकृति हुआ । लेकिन ये प्रस्ताव तब तक स्वीकृत प्रस्ताव रहा जब तक स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र के भारत में प्रतिष्ठा का उदय नहीं हुआ था । उस समय का मुख्य मंत्री स्वर्गीय केदार पाण्डेय जी थे और उन्ही के अथक प्रयास से मैथिली का एक मुख्य केंद्र मिथिला विश्वविद्यालय का स्थापना किया गया साथ ही लोकसेवा आयोग में मैथिली एक ऐच्छिक विषय के रूप में आरम्भ किया गया । १९९२ में जब श्री लालू प्रसाद यादव जी मुख्य मंत्री थे ,मैथिली विषय को बिहार लोकसेवा आयोग से हटा दिया गया । इससे पुनः मिथिलावासी और ज्यादा आक्रोशित हो गए और मैथिली को भारतीय संबिधान कि अष्टम सूची में रखने के साथ साथ राज्य आंदोलन की गति भी पकड़नी शुरू हो गई । फिर २००३ में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने मैथली आंदोलन को स्वीकार किया और मैथिली को संविधान की अष्टम सूचि में स्थान देकर मिथिलावासी के ऊपर बड़ा ही उपकार किया ।

 मिथिला राज्य आंदोलन की मुख्य भूमिका 'अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद्,' मिथिला राज्य निर्माण सेना और 'संयुक्त मिथिला राज्य संघर्ष समिति' कर रही है जब से 'मिथिला राज्य निर्माण सेना' ने मिथिला राज्य का आंदोलन में अपना कदम बढ़ाया है ये आंदोलन जन जन तक आग की लपट की तरह फ़ैल रहा है । वो दिन दूर नहीं जब मिथिलावासी अपना 'मिथिला' राज्य यथा सम्भव शीघ्र ही देख पाएंगे । बिहार सरकार के साथ - साथ भारत सरकार भी मिथिला क्षेत्र के तरफ अपना ध्यान हटा चूका है, जिसके फलस्वरूप कई समस्या बढ़ गई, कुछ नया समस्या सामने आया और कुछ पौराणिक ऐतिहासिक चीजे विलुप्त हो गई और होने के कगार पड़ है । जिसको बचाने के लिए मिथिलावासी को मिथिला राज्य के अलावा और कोई चारा दिखाई नहीं दे रहा है । मिथिला राज्य की मांग सिर्फ भाषा के आधारपर ही नहीं किया जा रहा है बल्कि इसके और भी बहुत आधार है जैसे - 

संवैधानिक अधिकार सम्पन्नता के लिए, संस्कृति आ सभ्यता का संरक्षण के लिए, विशिष्ट पहचान  'मैथिल' का  संरक्षण के लिए,  पलायन और प्रवासी होने का खतरा से मिथिला का रक्षा लिए, आर्थिक पिछडापण और उपेक्षा विरुद्ध स्वराज्यसम्पन्न विकास के लिए, स्वरोजगार संयंत्र - उन्नत कृषि - औद्योगिक विकास के लिए,  बाढ़ का स्थायी उपचार के लिए, शिक्षा का गिरता स्तर में सुधार लिए, मुफ्त शिक्षा और शत-प्रतिशत साक्षरता के लिए, गरीबी उन्मुलन - हर व्यक्ति के लिए रोजी, रोटी और वस्त्र लिए, जातिवादिता का आग से जल रहे समाज में सौहार्द्रता के लिए, ऐतिहासिक संपन्नता प्राप्त धरोहर का संरक्षण के लिए, पर्यटन केन्द्र का स्थापना, विकास और संरक्षण के लिए, जल-स्रोत का समुचित बहाव को व्यवस्थित करने के लिए, मिथिला विशेष कृषि उत्पाद का व्यवसायीकरण के लिए, जल-विद्युत परियोजना - जल संचार परियोजना के लिए, मिथिला विशेष शिक्षा पद्धति (तंत्र ओ कर्मकाण्ड सहित अन्य कला ) का अध्ययन केन्द्र के लिए, पौराणिक मिथिला देश के समान आर्थिक संपन्नता के लिए, पौराणिक न्याय प्रणाली समान उन्नत सामाजिक न्याय व्यवस्था के लिए, जन-प्रतिनिधि द्वारा वचन आ कर्म में एकता के लिए, भ्रष्ट आ सुस्त-निकम्मा प्रशासन तथा जनविरोधी शोषण को  दमन करने के लिए, मुफ्त बिजली, पेयजल, शौच, गंदगी का बहाव व्यवस्थापन के लिए, मिथिला दूसरे देश के सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारन विशेष सुरक्षा के लिए, मिथिला में कई बड़े बड़े नदी है महानंदा , कोसी , गंडक , कमला , बालन ,बूढी गंडक , गंगा इस नदी का भी नुकसान के अलाबा फयदा नहीं हुआ, इतनी नदी होने के बादजूद हम बिजली पानी कि समस्या से परेशान है, इसलिए इन सबकी रक्षा और इनसे सुरक्षा के लिए ।

मिथिलावासी लगा रहे हैं नारा …….. 
मिथिला होगा राज्य हमारा, मिथिला होगा राज्य हमारा ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, जो मिथिला में, मैथिल भाई । 
भीख नहीं अधिकार चाहिए, हमको मिथिला राज्य चहिए ।
बस एक संलकप ध्यान में, मिथिला राज्य हो संविधान में ।
थोड़े में बताने का एक छोटा-सा प्रयास किया है, कि मिथिला राज्य क्यों ?






live aaryaavart dot com

लेखक : संजय कुमार झा "नागदह "
डी०एल० एफ० अंकुर विहार, 

लोनी , गाज़ियाबाद

Edited By Rajneesh K Jha on गुरुवार, 23 जनवरी 2014

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खैर, छोड़ू

पूजा, पाठ, विवाह, जनेऊ 
जनम - मरण 
सब में होइत छैक
कुशक प्रयोजन 
एखनो होइत छैक
खैर, छोरु .. 
पहिले बेसी काल 
लोक गरिया दैत छल   
तोरा कुश उखाडय बाला 
कियो नहि रहतौ 
आब 
आब त' रहितो नै उखाडय छै 
खैर, छोरु ...... 
एखनो पुरना लोक 
नहि जाए चाहैत छथि 
मिथिला के छोइर क'
कोनो देश आ विदेश 
कियाक ?
सब दिन सेबलहुँ मिथिला
आब जाउ परदेश
जौं
धोखाधड़ी में 
छुटि जायत प्राण 
गंगा स्नान त' कात
बिजली पर जरायत
कि बबूर आ अक्कट सँ 
से कहि नहि 
खैर, छोड़ू  ...... 
सब गोटा के याद होएत 
पावनि - तिहार
निपल
आँगन आ घर 
आँगन अविते 
सुन्दर खुसबू 
बुझाइत छल 
आई कोनो खास दिन 
नवका चूल्हा 
आ दाय - माय व्यस्त 
आजुक दिन बुझा रहल मस्त 
आबो बुझाइया ?
खैर, छोड़ू   ... 
गामक दुर्गा पूजा में 
दू मॉस पहिने सँ
नाटकक तैयारी 
सब साल उभरि रहल  
नवका - नवका कलाकार 
कि, एखनो होइया ?
पहिल पूजा सँ यात्राक दिन तक 
बच्चा जवान स मरवा लेल व्यग्र तक 
मंदिर के प्रांगण में 
क ' रहलाह पूजा आ पाठ 
साँझ परिते 
बच्चा आ जवान के 
कहियो काल 
भ' जाइत छल दू - दू हाथ 
हमहू एकरे कारन 
छी एखन धरि
पिताजीक आज्ञाक 
पालन में 
पूजा में गाम जाय सँ  
निष्काषित 
कि एखनो होइया ?
खैर , छोड़ू....... 
एकसर विद्यापति 
मिथिलाक पताका 
विश्व में फहरा देलाह 
कतेको व्यक्ति के 
विद्वत बना देलाह 
मिथिलिका झंडा 
वीना डंडे फहरा देलाह 
नहि कोनो विधायक 
नहि संसद में ठाढ़ भेलाह 
नहि कहियो अनसन 
नहि रैली में भाग लेलाह 
लोकक त बात छोड़ू 
महादेव
स्वयं उगना बनि
विद्यापति के पैर धेलाह
कि मिथिला के आब 
दुर्दिन नहि ?
खैर, छोड़ू....... 

संजय कुमार झा "नागदह"
दिनांक : 29/07/2014

विश्व मैथिल संघ , बुराड़ी , दिल्ली क 2015 स्मारिका में प्रकाशित। 

कंस्टीच्यूशन क्लब में संजय झा “नागदह” क दू शब्द

मिथिलानगरी नमस्तुभ्यं ,नमस्तुभयं मिथिलावासिने 
माता सीता नमस्तुभ्यं , जन्म भूमि - कर्म भूमि नमोस्तुते !!
एहि सभागार में बैसल समस्त मिथिला राज्यक माँग के समर्थित अतिथि, मित्र लोकनि एक बेर फेर अपने लोकनिकें संजय झा, नागदह निवासी आ मिथिला राज्य निर्माण सेना के तरफसँ स्नेह युक्त चरण रज जे अपने लोकनि एहिठाम राखल ताहि हेतु अपने लोकनि के हार्दिक अभिनन्दन आ स्वागत करैत छी ।
हम अपने लोकनि के विशेष किछु नहीं कहब, कारन, हमर सबहक एही संगोष्ठी में राजनीतिक आ सामाजिक स्थिति पर प्रकाश देबाक वास्ते विशेष वक्ता लोकनि अपन  - अपन वक्तव्य सँ मिथिला राज्य आंदोलन के दिशा आ दशा के प्रकाशित करताह. हम सिर्फ एतवे कहए चाहब जे जाहि मिथिलासँ  न्याय दर्शन लिखल गेल ओकरे संग अन्याय होए ? दिशा हमर सबहक एखन धरि बाल्य अवस्था में अछि त दशा कि रहत ?  
बहुतो राज्य भारत में भाषा - विशेष के कारन बनल जाहि में आसाम त' प्रमुख अछि, ओना हमर आलेख -मिथिला राज्य क्यों ? मिथिला राज्य निर्माण सेना के वेब साईट डव्लू डव्लू डव्लू डॉट एम आर एन एस डॉट इन पर देल अछि पढ़बाक प्रयत्न करब
जावत धरि मिथिला में एकटा आवाजक गूंज जे 'हमरा चाही मिथिला राज्य' के नहीं होएत तावत धरि दशा उपयुक्त नहीं होएत - तैं, दिशा जौं हमसब ठीक करब त अपने आप दशा ठीक होएत आ माँग स्वीकार करबा लेल सरकार बाध्य होएत. ओना मैथिल जौं एकमत भ' सिर्फ ठानि मैथ, त' सालक - साल समय लगबाक त बात दूर एक साल में राज्य भेट सकैत अछि - हमर मैथिल एतेक प्रबुद्ध त' छथिहे. एही पर प्रबुद्ध लोकनि के सोचबाक जरुरत छन्हि. कारन एहन कोनो पार्टी नहि, विभाग नहि, मंत्रालय नहि, जतय मिथिलाक पुत्रक वर्चस्व नहि हो   
संगे - संग हम एकटा सम्बाद देबय चाहैत छि, जे चाहे कतहु राहु , कोनो देश में , राज्य में , गाँव में, जतय मातृभाषा लिखय या लिखवए पड़ैत अछि, मातृभाषा मैथिली लिखल आ लिखाएल करू
समस्त मिथिला क्षेत्रक लोककें इ भावना जगबय पड़तनि जे हम मिथिला के छि - हमरा मिथिला राज्य चाही - कारन हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई - जे बसती मिथिला ओ मैथिल भाई. एही मंत्र सँ एकजूटताक मिशन तैयार कएल जाए
दिल्ली, मुम्बई, यत्र - कुत्र , प्रवास में जे वास करैत छथि हुनका रोजगार छनि आ अपन मिथिला में किछु नहि.बहुतो मैथिल के माय बौआ के अयबाक आस लगेने रहैत छथि, प्रवास में एतेक जगह नै, ओतेक आय नहि, जाहि सँ सबके संगे राखी सकथि. मिथिला में सिर्फ  रोजगार नहि होबाक करने - दाय के श्राद्ध में, बाबा मरलाह तखन, मुंडन में, उपनयन में, विवाह में एही क्रम में कोनो ना गाम जा पबैत छथि आ बुजुर्गक  सेवा नहि क पबैत छथि - जाहि सँ  हमर सबहक बुजुर्ग के सेहो बहुत कष्टक सामना करय पड़ैत छनि. सोचु कि हमरा सबके मिथिलाक समग्र विकाश के संग - संग मिथिला राज्य चाही ने ? जाहि सँ अपन मातृभूमि आ अपन माय के गोद में रहि सकि
बस एतवे आर किछु नहि बहुत वक्ता लोकनि छथि, अपन - अपन विचार देताह - बस एकता बढ़ाऊ,
भायचारा बढ़ाऊ,वाज एक करू
चाहे अहाँ रहु दिल्ली वा मुम्बई,
या देश, विदेशक कोनो कोण में ,
मैथिल भेटिते, मैथिली बाजू टन ' मिठगर बोल में
जाहि सँ आपस में लगाव बढ़ए कड़ी सँ कड़ी जोड़ैत रहु-  
बस एक संकल्प ध्यान में , मिथिला राज्य होई संबिधान में.

धन्यबाद .
अस्तु !

संजय कुमार झा 'नागदह '

दिनांक : 19 जनवरी 2014

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी