सोमवार, 18 जनवरी 2016

17 जनवरी 2016 को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी जिसमे मैंने भाग लिया !

17 जनवरी 2016  को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी ! जिसमें मैथिली के लेखक ब्लॉगर एवं कई विद्वान की मौजूदगी में अगले महीने के 21 फरवरी को मैथिली साहित्य महासभा का एक सुन्दर भव्य कार्यक्रम होना प्रस्तावित किया गया।  
विभय झा,विजय झा,पंकज प्रसून,संजय झा 'नागदह', हेमन्त झा आ.........।


हेमन्त झा,विजय झा,संजय झा 'नागदह',..........,पंकज प्रसून,ललितेश रौशन,विभय झा आ संजीव झा ।

ललितेश रौशन , विजय झा,विमल जी मिश्र,संजीव झा और संजय झा 'नागदह' । 


 मनीष झा 'बौआ भाई' क संग।  


 विजय झा क संग। 


अखिल भारतीय ब्राम्हण महासभा डी एल एफ अंकुर विहार दिनांक 17 /01 / 2016 को भाग लिया।

बीजेपी गाजियाबाद जिला अध्यक्ष श्री नन्द किशोर गुजर जी को स्वागत करते हुए।


लोनी नगर निगम चेयर मैन श्री मनोज धामा जी संत जी को सम्मान करते हुए।


पं हिमाँशु शर्मा जिला उपाध्यक्ष भाजपा युवा मोर्चा गाजियाबाद के साथ 



सुदेश भरद्वाज बीजेपी लोनी मंडल अध्यक्ष के साथ 

रविवार, 17 जनवरी 2016

हो तुम कौन सा जाति विशेष ?

सबसे पहले तुम मनुष्य हो 
फिर है कोई भी जाति 
मनुष्य का गुण हो वा न हो 
फिर भी नहीं प्रजाति। 

जिस मनुष्य में सभी जाति समाहित 
हो जाता है जीवन धन्य 
एक जाति का मात्र जो गुण हो 
जीवन हो जाएगा शून्य। 

ब्राह्मण से पांडित्य का गुण  लो 
शूद्र से सीखो सेवा भाव 
क्षत्रिय बन करो खुद व समाज की रक्षा 
वैश्य से सीखो हाट - बाजार। 

अब , अपने ह्रिदय में झाँक कर देखो 
कौन सा गुण है तुझमे विशेष 
मन ही मन खुद ही सोच लेना 
हो तुम कौन सा जाति विशेष। 

------- संजय झा "नागदह"
दिनांक :17/01/2016











गिरगिट ने बताया आत्महत्या की वजह

लोग कहते हैं -
रंग बदलने में माहिर होता है गिरगिट 
लेकिन,
गिरगिट ने कहा लोगो से -
भाई, तुम कई गुना आगे हो 
व्यर्थ मुझे बदनाम कर रहे हो 
रंग बदलने की कला में 
मैं तो अपने जाती को धोखा नहीं दे पाता हूँ 
पर तुम 
दुनिया के साथ - साथ अपने जाती को भी 
क्या - क्या बना देते हो 
कभी चेहरे पर राम तो कभी रहीम बना लेते हो 
इंसान रहते हुए 
जानवर सा व्यवहार बना लेते हो 
किसी भी हालत में 
मेरा खाना - पीना 
परिवेश नहीं बदलता है 
पर तुम तो भीख मांगे के लिए 
अलग सा भेष भी बना लेते हो 
मेरा नाम हर हालत में एक ही रहता है 
पर तुम्हारा
देखो- 
कभी इंसान तो कभी जानवर 
कभी कसाई तो कभी चांडाल 
कभी चोर तो कभी डाकू 
इत्यादि - इत्यादि 
इसलिए हमारा यहाँ है नहीं प्रयोजन 
कर रहा हूँ 
प्राण विशर्जन। 
संजय झा "नागदह"
Dated : 25/04/2014

विविध


1. मिथिला में अगर कियो दरिद्र भ दोसर प्रदेश में जीविकोपार्जन के लेल 

नहि गेल त' ओ अछि मिथिलाक डोम . जे अपन कर्म द्वारा मिथिला के 

सेवा में सदैव तत्पर आ सब पावनि के डाली , चंगेरा , सूप , चालनि, 

पथिया , कंसुपति, ढाकी, बियनि, इत्यादि सँ सेवा करैत छथि आ सब 

पावनि तिहार के मान राखि मिथिलाक मान के सर्वोच्च बना अपन 

कतेको अपमान सहैत छथि (शायद भगवान ओकरा में एहन त्यागक 

भावना द एहि लोक पर पठेने हेताह ) 


एहि बेरक मिथिलाक यात्रा में कोनो डोम के बैसल नहि देखल सब अपन 
 
अपन व्यवसायिक काज में व्यस्त छल - आ हमरा त सब वर्ग आ वर्ण सँ 

वेसी स्वाबलंबी बुझायल . जय मिथिला , जय मैथिली,


2. जो खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता - उसको बन्द आँख से देख 

सकते है।खुली आँख सिर्फ उसे ही देख सकता है जिसको छुआ जा सके  - 

जबकि बन्द आँख( मन कि आँख) छुए जाने योग्य और ना छूने योग्य 

दोनों को देख सकता है और यही कारन है कि आँखों से अँधा भी यहाँ 

जिंदगी गुजार देता / देती है। 


अतः ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि मन कि आँख कि दृष्टि 

वास्तविक आँख से कई गुना बड़ी होती है। 


3. "साहित्य के समुद्र में जितना डूबता हूँ उतना ही डूबने का मन करता है 

और मन को उतनी ही शान्ति और आनन्द मिलता है जितना की 

असहज गर्मी के मौसम में तालाब के अन्दर बैठे रहने पर सुन्दर 

शीतलता 


--------------संजय झा "नागदह"

07/01/2015


समयक हस्ताक्षरः शेफालिका वर्मा

  आज मेरे पास एक अद्वितीय पुस्तक आई है—*समयक हस्ताक्षरः शेफालिका वर्मा* (मैथिली संस्करण), जिसे संकलित किया है श्रीमती कुमकुम झा एवं श्री राज...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी