ई थिक हुनकर विद्वता आ संक्षिप्त परिचय। कि कहु ठाकुर बाबाकें हाल-- किछुए दिन भेल अछि बाबाकेँ एकटा गामक संगीक बेटाक विवाह कतेक ठाम ठीक - ठाक भेलाक बादो टुटिगेलाक उपरांत कोनोना दुचारीटा आँखि बन्न कय तय भेल । तदोपरांत ठाकुर बाबाकेँ अपन संगी सँ अत्यधिक लगाव आ विश्वास ताहिमे कनमो मात्र संदेह नहि । जोर शोर सँ होमय लागल विवाहक तैयारी.आ आवी गेल ओ दिन जाहिदिनक सिद्धांत तय भेल छल। विवाह होमय वास्ते एकटा नीक होटलक व्यवस्था कन्यागत केने छलाह । कदाचिद कन्यागतकेँ कहलगेल हो जे वरियातीमे बहुत साभ्रान्त वर्गक लोक रहताह तैं उत्तम कोटिक व्यवस्था भेनाई अनिवार्य अछि ।
परम मित्र—जे स्वयं वैष्णव छलाह—किंतु समाजक विभिन्न वर्गक संबंधवश साकट, शाक्त, आ अन्य लोकनिकेँ सेहो आमंत्रण देल गेल। ठाकुर बाबा चिंतित छलाह, जे एहन विवाहमे वैष्णव लोकनिक धर्मसंकट भ' सकैत अछि—विशेष रूपेण भोज्यपदार्थक कारण।
ठाकुर बाबा बहुत प्रयास केलाह, आग्रह केलनि, जे वैष्णव लोकनिकेँ स्पष्ट रूपेण अलग व्यवस्था हो, जइमे प्याज, लहसुन, मांसादिक निषेध सुनिश्चित होइक। वरियातिकें वचन देल गेल—"चिंता जूनि करू, वैष्णव-शाक्त सब लेल अलग व्यवस्था रहत। हमहुँ वैष्णव छी।"ठाकुर बाबा विश्वस्त भेलाह। संगहि, कुछ आर वैष्णव लोकनि सेहो आमंत्रण स्वीकार केलन्हि।
विवाहक दिन आयल। वरियाती सजल, आ गाम सँ दूर शहरमे वरियाती जयबाक लेल जाहिअनुकूल व्यवस्था छल, ताहि अनुकूल वरियाती लोकनि एकत्रित भेलाक उपरांत,यथाकथित गाडीमे स्थान ल' बैस गेलाह । बस - गाडी फूजल आ शहरक ओहि होटल पर पहुँचल जाहिठाम वरियातिक स्वागतक व्यवस्था छल । सब वरियाती लोकनि व्यवस्था देखि अत्यधिक प्रसन्न छलाह कदाचित ठाकुर बाबा जहिनाकें तहिना कारन हुनका पर सुख आ दुःखक बेसी असर नहि पड़ैत छन्हि। आइयो - काल्हिक मॉडर्न समयमे मिथिलाक लोककेँ, मिथिलामे, होटलमे एहन स्वागतक इंतजाम प्रायः कम्मे - सम्मे हाथ लगैत छनि । एही कारने बच्चा, नवयुवक,आ वुजुर्ग लोकनि सेहो बेसी उत्साहित छलाह । सब गोटा होटलमे सजाओल कुर्सी टेबल पर अपन -अपन स्थान पकड़लन्हि । मुदा वैष्णव लोकनिकेँ थोड़ेक आश्चर्य लगलन्हि जे कतहु एहन तरहक सूचना - पटल नहि देखवामे आवी रहल अछि, जे कतय बैसताह साकट / शाक्त आ कतय वैष्णव । वैष्णव लोकनि अपना में विचार - विमर्श कय एक - कात भ' सबगोटा बैसलाह । सूचित कय देल गेल जे एमहर वैष्णव लोकनि बैसल छथि तैं माँछ,मांस,प्याज आ लहसून इत्यादिक व्यवहार सँ परहेज कयल जेबाक चाही । बड्ड बेस, मुदा होटलमे जखन एक -आधटा बारीक रहै तखन ने ? कियो बुझलक आ कियो नहि ।
वैष्णव लोकनिक पकौड़ा खेबाक गति चरम सीमा पर छल ऐना बुझु जेना ट्रैनमे राजधानी आ शताव्दी । ओहि क्रममे वैष्णव लोकनि जिनका प्याज आ लहसून सँ सेहो परहेज छलनी प्याज आ किमाक पकौड़ा खूब ठाठसँ खेलाह । दु- चारिटा पकौड़ा जखन पेटक कोनो कोनमे चली गेल
तखन जे पकौड़ाक स्वाद अद्भुत छल से बुझबाक जिज्ञासा जागल आखिर इ अछि कि ? नज़री गारल गेल पकौड़ा हाथमे लय (पकौड़ाक टुकड़ा तोड़ैत) बकुलाक नज़री सँ देख रहल छलाह कि तावतमे दोसर वैष्णव (नाग सांप जँका फनकार मारैत उठलाह) हे देखु ... महात्मा जी इ त प्याजक पकौड़ा थिक । दोसर गोटा (एक गोट वारिक के हाथ पकड़ि पुछलाह) वाऊ कहु जे एहीमे कथि-कथिक पकौड़ा अछि । बारीक़ एक - एकटा पकौड़ा चिन्हाबैत कहलाह - इ थिक आलूक,गोबिक ,बैगनक इत्यादि आ ओ थिक प्याज आ ई जे बड़ी जँका अछि से थिक किमाक पकौड़ा ।
ठाकुर बाबा अपना आपकेँ वैष्णव व्रत खंडित भेलाक उपरान्तो क्रोध पर नियंत्रित आ उल्टी करैत तत्क्षण कुर्सी छोएर होटलसँ बहरेलाह । राम राम कोन कर्मक दोष छल जे एहिठाम वरियाती अयलहुँ आ संग देलखिन संग आयल वैष्णव लोकनि । वैष्णव वर्गक वरियातीमे कियो नाग सांप जँका फुफकार छोड़ैत छलाह त कियो छुब्ध छलाह जे ई कि भेल ?
ठाकुर बाबा ई दुर्दशा बर्दाश्त नहि क' सकला (शांत स्वरमे मुदा पीड़ित चेहरा) धर्म खंडित भ' गेल। (माथ झुकबैत बाहर निकललाह) आ (अपन क्रोधकेँ संयमित करैत) ओहिठाम भोजन नहि अपितु सप्पत खेलाह, पुनः जीवन पर्यन्त कतहुँ आन ठाम अन्न ग्रहण नहि करब वरियातिक कोन बात ! वरियातीमे भेल वैष्णव धर्म भंग ! ठाकुर बाबाक सत्कर्म आ निष्ठां के नहि जनैत अछि । इ बात सुनि पूरा गामक लोक आ जे सुनलक से सब खूब निंदा करय लागल जे कहु ऐनामे कियो ककरो वरियाती या आन - जान केना करत ?
गाम आबि मित्र कहलन्हि - हम सब दोषी छी। अहाँक प्रतिष्ठा आ आत्मा दू-रास्ता पर ठाढ़ भ' गेल। ठाकुर बाबा: (मंद स्वरमे) धर्मक रक्षा लेल दुख सहब पड़ैत अछि। मुदा सत्य सँ डगमगाएब हम वैष्णवक लक्षण नञि। एखनो समाज जौं चेति जाए तँ ---------(एतेक कहैत मौन भ' गेलाह)
अस्तु ।
संजय झा "नागदह"
दिनाक : १४/१२/२०१३ - देल्ही
प्रकाशित : मिथिलांचल टुडे, 2013
सब समाज सँ विनम्र निवेदन अछि जे समाज एहि काल्पनिक घटनासँ सिख लैथ आ भविष्यमे एहन तरहक घटना नहि हो ताहि पर ध्यान राखथि।