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रविवार, 17 जनवरी 2016

रास्ते की कहानी

एक बार मैं कहीं से गुजर रहा था कि अचानक मेरी गाडी के सामने एक मोलवी साहब ने रुकने का इशारा किया।  मैंने अपनी गाडी रोका पूछा बताइये जनाब क्या बात है ? उन्होंने कहा क्या आप वहां जा रहें हैं ? मैंने कहा जी जनाब।  फिर उन्होंने मुझसे कहा मुझे छोड़ देंगे मैंने क्यों नहीं --जरूर... बैठिये।  रास्ते में उनसे बात - चित होने लगा।  मैंने पूछा क्या करते हैं? जबाब दिया मैं मदरसा में तालीम देता हूँ।  मैंने कहा बहुत खूब ये तो बहुत अच्छी बात है।  बात ही बात में मैंने कहा जनाब आप कोई ऐसा मुहीम चलाइये जिससे गाँव के कोई भी मुस्लिम बच्चा ऐसा न रहे जो तालीम से छूट जाए।  क्योकि आज कल लोग धर्म मज़हब के नाम पर लोगो को भ्रमित कर रहें है।  अगर अच्छी तालीम सभी बच्चो को मिलेगा तो कम से कम अपनी एक अच्छी सोच विचार के बाद ही कोई कदम उठाएगा।  जब तक अच्छे संस्कार नहीं देंगे अच्छी तालीम नहीं देंगे तब तक वही कहाबत चलता रहेगा " मुर्ख की लाठी सीधे सर पर", अभी भी जो हिन्दू - मुस्लिम वर्ग शिक्षित हैं कहाँ लठ उठा कर आगे आते हैं ? इसलिए ध्यान रख्खे की एक भी बच्चा तालीम से न छूटे। यही इस चलते मुसाफिर से निवेदन है - मोलवी साहब ने कहा बहुत अच्छी बात कहा आपने झाजी हमारी पूरी कोशिश होगी की आपके बातों को ध्यान रख्खें।  जब उनको हमने उनके मंजिल पर उतार दिया तो उन्होंने फिर ये बात दोहराते हुए हाथ हिला कर मुझे आगे जाने के लिए बिदा किया। 

    ----संजय झा "नागदह "

शनिवार, 16 जनवरी 2016

आप कब आओगे ?

रास्ते चलते - चलते आँख अपना काम तो वेहीचक करता ही है, चाहे कुछ अच्छा दिखे या बुरा । आँख तो देखने का ही काम करता है, देखने मात्र से तो कुछ नहीं होता, होता है तो तब, जब देखने के बाद जब ये मन और ह्रिदय को छू जाती है । चाहे कुछ अतिसुंदर,बदसूरत, ख़राब,घटना, दुर्घटना, कुछ भी  दिखे असर तो सब में ही होता है । इसमें आँख का दोष क्या ? किसी भी घटना का जिम्मेदार कोई स्थान नहीं होता, होता है तो इसका रखवार,इसका देखभाल करने बाला। वैसे आजकल सभी नगर और महानगर में , पार्क के आस-पास, सड़क पर ,कार में , दू पहिया वाहन पर , और यहाँ तक की पब्लिक पैलेस पर भी युगल जोड़ी एक -दुसरे से ऐसे चिपके रहते हैं की आँख पड़ने मात्र की देर है । फिर शालीन से शालीन लोगो  की भी आँख देखते ही देखते रह जाती है , और मन ही मन अपने नजरिये से आलोचना करते हुए निकल जाते है । ऐसे में युगल जोड़ी भी खतरे में और राही/दर्शक भी, लेकिन संभालना किसे है । जोड़ी को या राही को? किसको समझाए दोनों के पास मन ही तो है जो काबू में नहीं है, ऐसे में दुर्घटना का होना तो स्वाभाविक ही है । पर ऐसा भी नहीं की सडको पर दुर्घटना सिर्फ इसी तरह के कारण से होता है, और भी अनेक कारण हो सकता है। क्या सभी युगल जोड़ी एकांत हो जाय तो घटना रूक जायेगा? नहीं , ऐसा संभव नहीं है ।
 बहुत सी ऐसी सुन्दर बाग़, इमारत, सुंदर चीजे, सुन्दरी, दिखाई देती है जिससे लोगो का ध्यान भंग होता है, ठीक इसके विपरीत अगर कोई बदसूरत, कुरूप, अधिक मोटा-मोटी, घटना और दुर्घटना भी रास्ते में दिखती है जिससे ध्यान भंग होता है, जिसके कारण दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है । जरुरत है सड़क पर एकाग्रता की , सड़क पर ध्यान रखने की , परिवहन के नियमो का पालन करने की जिससे आप सकुशल घर पहुँच सकते है । क्योकि घर पर आपका कोई इंतज़ार करता है ,और मन ही मन पुकारता रहता है , आप कब आओगे ?
संजय कुमार झा "नागदह" 

Dated : 07/08/2013

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

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