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शनिवार, 2 अगस्त 2025

उठनि पित्ताशय दर्द

परार तँ सभदिन ठानए
जतेक भ' सकैए राड
अपन तँ अपने लोक
बेबक्त करथि अरारि।
रहनि सदैब दुरा दरबज्जा
बरु कतबो बेपर्द
आस पड़ोस उपयोग कनेको
उठनि पित्ताशय दर्द।
आनक गाइड़ माइर
एहन लोककेँ लागनि मिट्ठ
अपन लोकक सिनेह सेहो
लागनि गनपसारनि सन तीत।
अपन मुंह कतेक छन्हि फूजल
ताहि पर हो नञि कोनो बात
दोसरा मुदा सदैब लगा राखै
अपना पर सदिखन टाट।

@संजय झा 'नागदह' 

29-12-2024

शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

अनुशासन

चाहे होथि धनाढ्यक संतति
वा कि निर्धनकेँ होए
अनुशासन बिना शिक्षाकेँ
एक रति नञि मोल।
बिना नूनकेँ तीमन तरकारी
जहिना रहैछ बेसुआद
तहिना अनुशासन ओ संस्कार बिन
शिक्षितोंमें देखना जाइत अभाव।
अशिक्षितों संस्कार संग
भेटत जखन ठाढ़
मोन देखि होइत अछि पुलकित
हृदय उठैत अछि सिनेहक बाढ़ि।
शिक्षाक संग संस्कारोमे
देल करु उचित मात्रामे नून
तखन देखब कियो नञि कहत
सभा मध्य अहाँकेँ मधनून।
@ संजय झा 'नागदह’

30-12-2024

कुक्कुर बिलाड़ि

 कुक्कुर बिलाड़िमे  देखल झगड़ा कत्तेक बेर 
झपटि उठै छल कूक्कुर एक टुकड़ी रोटी लेल 
गरदनि टुटब डरे सुट्ट दS भागय छल बिलाड़ि 
आब की अपने सब देख पबैत छी एहन लड़ाई ?

केना भेलै से जानि नहि एकर पंचैती 
कोन पंच केलक केना फरियौलक से के कहत 
बुझना जाइया कहने हेतै घर ओकर आ बाहर तोहर 
जहिया धरि इ फतबा मानबै,
ततबे दिन धरि पंचायती के रहतौ मोजर 

कए दशक सं देख रहल छी सूझ - बूझ 
कुक्कुरक पिब रहल अछि बिलाड़ि दूध 
सूझ बूझ आ बुधियारीमे भS  रहलै आगा 
मनुखक बुधियारीमे नहि जानि छै की बाधा !

@संजय झा 'नागदह'


गुरुवार, 31 जुलाई 2025

छैठ परमेश्वरी

प्रायः लोक पुछि बैसथि, के छथि छठि मैया ?
चट बुझाए कही हुनका सँ 
षष्ठी तिथि स्त्रीक रूपमे छथि छैठ परमेश्वरी मैया।

इ मैया छथि परम दयालु - करथि सभक मनोरथ पुर 
पूजा करू पुनीत श्रद्धा सँ होयब नहि आहाँ कखनो झूर। 

इ व्रतक छैक बड्ड विधान - पंचमी युक्त षष्ठी छैक वर्जित
मुदा होइ जौं सप्तमी युक्त षष्ठी, तखनो भेल इ उपयुक्त

उदय काल जौं पड़ल षष्ठी, पहिल अर्घ ओहि दिन दी
आ प्रातः जखन सप्तमी तिथि हो, भोरका अर्घ तखनहि दी। 

इ पूजा थिक सूर्यक पूजा पहिल अर्घ भेल साँझमे 
प्रातः जखन लालिमा निकलय दोसर अर्घ दी भोरमे। 

आदित्य देव मुख्य रूप सँ पुजल जाइछ आरोग्य लेल
नहि अछि एहिमे कोनो बाधा स्त्री आओर पुरुष लेल। 

जाति-पाती के बाते छोड़ू - एकर नहि छैक कोनो विचार
भगवान भास्कर पुरवथि मनोरथ - सबके लेल एक्कहि विचार। 

@संजय झा 'नागदह'

रविवार, 17 जनवरी 2016

ओहिना नै होइत छैक

ओहिना नै होइत छैक 
अन्हरिया में इजोत करबाक लेल 
दिया में तेल आ बाती के 
संगे जरय पड़ैत छैक 
किछु पाबक लेल 
किछु त्याग करहे पड़ैत छैक
ओहिना नै होइत छैक

भारतो आज़ाद भेल 
कियो देखनहुँ हेताह
कियो सुनलो हेताह 
लोक एकजुटता लेल 
हल्ला करहे पड़ैत छैक 
किछु पावक लेल 
ओकरा पाछा परहे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

देखने हेबैक प्रायः सब गोटा
भिखमंगो के खाली कटोरा में 
भीखो कियो नहि दैत छैक 
ओकरो पहिले कटोरा में 
किछु राखहे पड़ैत छैक 
मिथिला राज्यक बात के लेल 
अलख जगाबहे पड़त
सरकार के देखाबहे पड़त 
मंगला सँ नहि 
आई- काल्हि छीन्हे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

संजय झा "नागदह"
Date - 20/07/2014

अछि हिम्मत त' देखा दिय

अछि हिम्मत त' देखा दिय
मिथिला राज्य बना दिय
नए बेसी त' अलखे जगा दिय 
जंतर मंतर पर एक आध- लाख मैथिली जुटा दिय 
अहींक गरदनि में पहिरयाब 
माला गुलाब के 
गाँव गाँव में मैथिल के अपन अधिकार के लेल 
जगा दिय 
मिथिलाक अस्तित्व अहीं त' बचा लिय

27/07/2014

क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत

अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत 
चाहे बाट चलु
या हाट रहु
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनका बारे में फोन करि
कखनो हुनका - कखनो हुनका
कियो चिंतित
कियो बेखबर 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
कियो ऐना , कियो ओना कहथि
कियो कहथि फुइस अछि 
प्रेम अहाँक 
कियो कहथि किया ऐना डुबल छी ? 
कि ओ अहाँके एकसर छी ?
हम चौंक गेलहुँ 
इ कि कहला ?
कहला त' सत्य
अपितु किछु नहि
मुदा करू क़ी ?
किछु नहि सूझि रहल 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनके धरती पर जनमल छी 
हुनके कोरा में पलल छी 
भाषा सेहो - अछि हुनके 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि अंतिम इच्छा एतवे हम्मर 
जौं प्राण देह सँ कखनो निकलय
माँ मैथिलीके हमरे सप्पत 
हुनके कोरा में प्राण छुटय
अछि अभिलाषा सदिखन एहने 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत....

संजय झा "नागदह" 
27 /07 /2014

आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखल "कौरव कौन, कौन पांडव " कविता के मैथिली अनुवाद

के अछि कौरव ?
आ के अछि पांडव ?
टेढ़ अछि सवाल 
दुनू दिश
शकुनि क अछि पसरल
कुटजाल 
धर्मराज नहीं छोरलाह
ई जुआ के आदत अछि 
सब पंचायत में 
पांचाली 
अपमानित अछि 
नहि छथि कृष्ण 
आजुक दिन 
महाभारत सुनिश्चित अछि 
राजा चाहे कियो बनै
प्रजा के कन-नाई निश्चित अछि। 

SANJAY JHA "NAGDAH 25/12/2014

शनिवार, 16 जनवरी 2016

डीलरक किरदानी

गाम गाम में शोर भेल अछि , डीलर अछि बेईमान 
सभक मुँहे सुनि रहल छी, डीलर अछि शैतान। 
लाबै छथि राशन जनता के नाम पर 
आ तुरंत विदा भ जाइत छथि दुकान पर।
दूकानदार सँ कनफुसकी क' क'
दस बजे रातुक समय द' क' ।
सुन दलान देखि अबीह' बौआ 
एकटा बड़का बोड़ा ल' क' ।
पाई नगद तू लेने अबीह' 
दाम में नै तू घिच - पिच करिह' ।
कियाक त' गारिक हार हमहि पहिरै छी 
जनता के श्राप हमहि लैत छी  ।
हाकिम के घुस हमहि दैत छी 
तैयो हम चोरे कहबै छी ।
गौंआँ के बुरबक बनाबी 
अपने हम हाकिम कहाबी ।
सब कियो आगा पाछा करैया
घुस में पान तमाकुल दइया । 
तैयो हम करै छी मनमानी 
ककरो कोनो बात नै मानी ।
दस बोड़ा हम चीनी रखने 
तोरे सब के लेल ।
बाँकी जे दू बोड़ा बाँचत 
जनता के ठकी लेब । 
गाम में दस टा मुँहगर कनगर 
मुंह तकर हम भरबै ।
बाँकी सब ठाम झूठ बाजी क'
चोरी हमहि करबै ।
अगिला खेपी तेल आनब 
तू तखनहि रहिह' सचेत ।
रस्ते में तू ठाढ़ रहिह' पाई टीन समेत
गाम पर अनिते देरी ।
भ' जाइया हेरा फेरी 
मुखिया जी बदमाशी करैया ।
टीन झोरा ल' एतय अबैया
दस किलो चीनी आ तेल ।
ओकरो मंगनी देबय पड़ैया
मुदा दस किलो चीनी आ तेल पर ।
मुखहिया जी सकदम 
टकरा बाद जे मोन करैया ।
करै छी अपने मन 
टकरा बाद किरानी सबके ।
झूठ बाजी छी हमहि ठकने 
लोक सब हमर किरदानी के । 
महीना में दस टा दैत अछि दरखास 
जा गांधी (पांच सौ ) द' आफिसर के 
तुरंत करा दैत छी बरखास ।
घुसक छैक एखन जमाना 
तेन ने हम छी बनल दिबाना । 
चारि साल धरि कहुना कहुना
ई कोटा चलि जाएत ।
पाँचम साल बुझह 
सीमेंट जोड़ी दू तल्ला पिटायत ।
बेसी तोरा की कहिय'
एहि में घर बैसल बड्ड नफ्फा ।
मुदा आशीर्वाद में कखनो 
घर घरायण सब सफ्फा ।

(१९९२ के डायरी सँ )
श्री शृष्टि नारायण झा 
नागदह 

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि
गाड़ी एक देल ठोकर माइर
सोचल एहन अभागल की हमहि ?
कतेक सताओत एकसर हमरे 
कखनहुँ सोचि हम इ की देखल 
सोचि - सोचि मन होइत छल बेकल 
घर सँ बहार निकलल नहि जाए 
बेर - बेर स्वप्न याद आबि जाए
कतेक सोचि कार्यालय गेल 
अबैत काल सपना सच भेल 
बाँचल मुदा सपूर्ण शरीर 
थोड़ मोड़ लागि कटल इ पीर 
धन्यवाद प्रभु के बेर - बेर 
पुनि दुर्दिन नहि देखाबहिं फेर।  

--- संजय झा "नागदह"
१३/०२/२०१५ 

हकार


हर्षक संग मैथिल जन के पठवी प्रेम हकार 

मातृभाषा दिवस पर मैथिली साहित्यक चर्चाक भेल अछि विचार 


कोना बचायब, कोना बढ़ायब मैथिलीक मान सम्मान 

एही सब बात पर चर्चा खातिर बजाओल गेल छथि मैथलीक विद्वान 


नव संस्था नव ऊर्जाक लेल जड़ाओल जाएत दीप

प्रारम्भ होयत सभाक संचाल भ' गोसाउनिक गीत 


---संजय झा "नागदह" 8010218022

नव कुलदीपकक संकेत


सपनेहुँ देखल एक झलक 
पट सुति पैर हिलाए रहल 

पुनि जिज्ञासा आर बढ़ल
देखहुँ मुख कुल तारिणी 

जिज्ञासा हहृदयक बुझि कुल दीपक 
ठाढ़ होइत पूर्ण स्वरुप देखाओल

गोर वर्ण देह छरहरा 
कोमल - कोमल अंग 

हाथ - पैर हिलाई रहल 
मंद - मंद मुस्काई रहल 

ठाढ़ नाक आ आँखि डोका सन
स्वपनहि संग खेलाइ रहल

झलक देखाई पुनि चलि गेल 
कृष्ण बाल रूपमे मटकी देल 

मन आनंदित आँखि खुजि गेल 
नव कुलदीपकक संकेत सन बुझना गेल

रवि दिन ०८ /०२/२०१५

08 फरवरी 2015 क' सपनामे देखल अपन अजन्मा भातिजकेँ  जकर जन्म 08 -03-2015 क' भेलैक। 

पड़ल छी ऐना जेना, मरल होइ

पड़ल छी 
ऐना
जेना, मरल होइ 
शरीरक कोनो अंग में 
कोनो हलचल नहि
साँस ऐना चली रहल अछि
जे लोक देख क' 
चलि गेल
आ 
हल्ला क' देलक 
ओ मरि गेल 
मुदा 
हम्मर कान में 
सबहक आवाज 
ओहिना सुनाइत अछि 
जेना 
पहिले
अन्तर मात्र एतेक 
कि हम
सुनिए टा सकैत छी 
बस, आर किछु नहि 
आँखि बन्न अछि 
मुदा
दूधिया सफ़ेद सन इजोतक 
दर्शन आर किछु नहि 
कान सब शब्द के 
समेट रहल अछि 
नाना तरहक 
शव्द परिख रहल छी
मरि गेल, मरि गेलक हल्ला पर 
दौड़ल किछ लोक 
उमड़ल नहि भीड़
मरि गेलाक नामों पर 
सोचाइत छल 
कर्मों त' एहने छल 
तखन बुझाएल
ई हम कएल कि ?
आ हमरा स पहिने 
अहंकार, दुर्विचार 
हमरे देह सँ मरि गेल 
तइयो
कछमछ क' रहलहुँ 
ई, आई कियाक मरल ?
तहन सोचायल 
इ , मरल नहि 
हमर शक्तिक 
छीन होएवाक कारणे
हमरा छोड़ि देलक 
कारण 
आब इ हमरा सँ 
किछु नहि करा सकैत अछि 
आ कान में राम नाम सत्यक 
नारा सुनाइत अछि

-------संजय झा " नागदह" 18/06/15

सिनेहक बोल


दुखक सागरमे
सिनेहक बोल 
उठा दैत छैक
एहन सुनामी, जे 
अश्रुक धारा बनि
एहि सागरक पाइनकेँ  
बहा दैत छैक 
कतहु आर 
बेशक 
छनिक होई वा स्थायी 
हिचकि - हिचकि कS
प्रेम भरल बोलSक करीन
उपछि दैत छैक 
कौखन ऐना 
जेना,
एहि ठाम 
दुखक सागर त' कात जाए
पोखरि वा इनारो
नहि छल 
मुदा इ सागर 
महासागरोमे
परिणित भS जाएल 
करैत छैक 
नहि भेटला पर 
सिनेहक बोल !

---- संजय झा "नागदह" 01/07/2015 


छन भरिक आगि

शोक , शोकानुकूले पर 
नोर, चोटायल घाते पर 
राति होय वा भोर 
चाहे
एहन सन किछु 
टटका होय कि बसिया 
छन भरिक आगि 
जरा दैत छैक 
कि - कि ने !!


-----संजय झा "नागदह" 01/07/2015
प्रभु हम देखल ध्यानहि रे 
अति मेघ विशाला 
श्यामल वर्ण अद्भुत छवि रे 
लागथि विकराला
आँखि जखन मोर खुजल रे 
सब सुन्न सपाटा 
पुनि हम ध्यान लगाओल रे 
जुनि टुटहि ध्याना !


------sanjay jha "nagdah" 17/07/2015

दोसर कोनो बात जुनि बाजु

छोड़ि छाड़ि मिथिला नगरी के
बसलहुँ देश विदेश
मिथिला भूमिक गीत गवै छी
भटकि भटकि परदेश 
पावन तिरहुत देश 
हमर अछि मिथिला नगरी
खीच रहल अछि मैथिल,
देखू मैथिलक टंगरी
ककरा कहबै ? 
सब मस्त अछि खाक' भांग
भक्क खुजत त'
कानमे भेटत ठूसल बाँग
गिरगिट हारल मैथिलक मारल 
भागल अड्डा छोड़ि
दोसर कोनो बात जुनि बाजु 
जे पसिन होइ तकरा छोड़ि।

संजय झा " नागदह "

छी कोन अपने जाति विशेष ?

सब सँ पहिने हम मन्नुख छी 
त'हन कोनो जाति 
भने मन्नुखक गुण हो वा नहि 
किन्चिद् नहि परजाति।
एक मनुष्य में सब जाति समाहित 
तखनहि जीवन धन्य 
एक जाति के मात्र जौं गुण अछि 
जीवन भ' जाएत शून्य।
ब्राम्हण सँ पांडित्यक गुण ली 
शूद्र सँ सिखु सेवा भाव 
क्षत्रिय बनि करू निज रक्षा 
वैश्यक गुण सँ हाट - बाजार।
स्वह्रिदय झाँकि क' देखु 
कोन गुण अछि अपनेक विशेष 
मोने - मोने अपने सोचि लेब 
छी कोन अपने जाति विशेष ? 


----- संजय झा " नागदह" 
01/09/2015

एहि कविता के सन्दर्भ में फसेबूक पर आयल किछु टिप्पणी ....
Manoj Shandilya कर्म-प्रधान जीवन अर्थपूर्ण...जातिक कोनो अर्थ नहि...नीक रचना। साधुवाद smile emoticon
Binay Thakur sundar vichar
Sanjay Jha मनोबल उत्साहित करबा लेल बहुत - बहुत आभार Manoj Shandilya chacha ji
Asha Jha पहिने के शूद्र सेवा भावयुक्त रहथि, आब त.....॥ से सैह। ओना कविता नीक छ बौआ।
Sanjay Jha pranam Asha Jha - babi
Shefalika Verma बहुत नीक कविता संजय मनुख के मनुखे बनवा में बड़ परेसानी।
Gangesh Gunjan संजय जी, प्रसिद्ध शाइर मिर्ज़ा ग़ालिबक एक टा बहुत प्रसिद्ध शे-र छनि:
'बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना ।।
ई तँ अहाँ केँ पढ़बाक लेल लिखलौं। कहबाक ई अछि जे कोनो कविता, मात्र मनुक्खक लेल सदाशयता आ कामना राखि-कहि क' कविता नहि भ' पबैत छैक।पूर्ण कविता तँ निश्चित नहि। तेँ एहन संसार-समाज मे जखन 'मनुक्ख केँ मनुक्ख होएबाक भाग्य नहि छैक ताहि मे अहाँ एकटा मुनष्यताक युवा कविक संकल्प कें सराहना तँ कएल जा सकैत अछि मुदा कविता केँ अपन औरो सब समकालीन सामाजिक चिन्ता आ समाधानक संकेत वला कविता गुण विकसित कर' पड़तै।
छुटिते हमहूँ अहाँक कविताक प्रशंसा क' द' सकैत छलहुँ। मुदा से हमर ईमानदारी नै होइत। अहाँ हमर 'भविष्यक कवि-पीढ़ी' । तेँ हमर दायित्व जे अहाँ आ अहीं लाथे समस्त नव कवि-रचनाकार केँ सचेत क' दिअनि। जे प्रशंसनीय से तँ अहाँ लोकनि कइए रहल छी। तकरा वास्ते हमहूँ आश्वस्त भाव सँ अपन शुभकामना दैते रहैत छी। 'समाज' शब्द मात्र नहि थिक। जेना 'लोक' मात्र एकलअदद आदमी नहि। बहुआयामी-राजनीति, अर्थनीति, विश्व दृष्टि आ बजार आ शिक्षित-उच्च शिक्षित बेरोज़गारी, बढ़ैत गरीबी, युवा समाजक नित 'स्वप्न भंग', फलस्वरूप दिशाहीन ऊर्जा स्खलन, जाति-धर्मक विवाद आदि अनेकायामी दबाव में मनुक्ख कतेक 'साबुत' बाँचल अछि, ई सब किछु बुद्ध्या नै, संवेदना अंग 'हृदय' बाटे अनभूत -अभिव्यक्त करबाक साधक वला अभ्यास करैत छी हमरा लोकनि । करहि पड़ैतलछैक । कविताक बाट छैक ई। हड़बड़ी मे
हमर बात नकारात्मक नै लेब । नै रुचय, तथापि।
सस्नेह,
Asha Jha संजय खुश रहू। ईश्वरक कृपा सदैव बनल रहय।
Sanjay Jha परमादरणीय Gangesh Gunjan सर सबसँ पहिने चरण स्पर्श क' प्रणाम। हम त' मोने मोन अपनेक स्नेह आ ज्ञान स्वरुपक टिप्पणी देखि गद - गद छी , जे अपने सनक विद्वद जन सँ एहि तरहें सुझाव भेटल। हमर ज्ञान नगण्य अछि , मोन सँ उपजल भाव के कोनो तरहेँ राखि दैत छी। अपनेक स्नेहरूपी अंगपोछा सँ जे हमरा आ हमरा सनक नव - लिखनिहार कें अग्यानताक गर्दा जे पोछल की ताहि लेल कि नकारात्मक सोच राखल जा सकैछ ? हाँ सम्भव छैक जौं गर्दा नहि पोछयल होई। मुदा बुझा रहल अछि हमरा में एतेक रास गर्दा नहि जमल अछि। ज्ञान रूपी अमृत केना नहि पचत , हम त' सदैब लालायित छी। आग्रह एतवे जखन - जखन एहन तरहक गर्दा बुझना जाए एक बेर अपन ज्ञान रुपि गमछा के जोर सँ पटकि देबै,आस्ते - आस्ते ठीक भ' जेतैक। सत्य बजबाक दुःसाहस हमर ग्रामीण बाबा, स्वर्गीय डॉ सुभद्र झा करैत छलाह जिनका अपन पुस्तक "नातिक पत्रक उत्तर" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार - मैथिली भेटलन्हि त' कतेको के कहने फिरथी जे कहु त' एहि में एहन की छैक जे …… त' बस आर्शीवाद बनौने रहु जाहि सँ ज्ञानक मार्जन होइत रहय। प्रणाम।

Sanjay Jha आदरणीय Shefalika Verma जी चरण स्पर्श , अपने सबहक़ स्नेक जौ भेट जाइत अछि त' बुझु फूलि क' खेसारी भ' जाईत छी। आ तहन फेर की नीक आ की वेजाय। जे मोन में उपजल से ठामे पटकि दैत छी , ताहि मे किछु - नीको आ बेजाओ। बस आशीर्वाद आ अपन सुझाव बिना मंगनहु द' ज्ञान मार्जन करैत रहि , बस एतवे। प्रणाम।

Sanjay Jha
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बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

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