भूख हर इंसान को होती है ,किसको किस चीज की है ये तो उसकी प्रकृति
पर निर्भर करता है ।
पर निर्भर करता है ।
---संजय झा "नागदह "
कोई ऐसा शव्द ही नहीं है जिसे पहले किसी वाक्य रूपी माला में पिरोया न गया हो।
----संजय झा " नागदह"
"साहित्य के समुद्र में जितना डूबता हूँ उतना ही डूबने का मन करता है और मन को उतनी ही शान्ति और आनन्द मिलता है जितना की असहज गर्मी के मौसम में तालाब के अन्दर बैठे रहने पर सुन्दर शीतलता "
-----------संजय झा "नागदह"
छल रहित व्यवहार आज के परिवेश में छला जाता है।
--- संजय झा "नागदह"
राम और रहीम की नाम भी मालाओं पे गिन के लोग लेते हैं
पर वो माला नहीं बनीं - जिस पे गिन के लोग यारों के नाम लेते हैं
-----संजय झा "नागदह"
जिस दिन आप मन कर्म और वचन से शुद्ध हो जायेंगे
- पराये ढूंढने से नहीं मिलेगा
---------संजय झा "नागदह"
किसी भी चीज से ज्यादा जरुरी है - चरित्र निर्माण , बिना इसके सब बेकार !!
----- संजय झा "नागदह"
भूख हर इंसान को होती है ,किसको किस चीज की है ये तो उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है
---- संजय झा "नागदह "
"knowledge is the eye to see abstract things".
- Sanjay jha "Nagdah"
कोई ऐसा शव्द ही नहीं है जिसे पहले किसी वाक्य रूपी माला में पिरोया न गया हो।
----संजय झा " नागदह"
"साहित्य के समुद्र में जितना डूबता हूँ उतना ही डूबने का मन करता है और मन को उतनी ही शान्ति और आनन्द मिलता है जितना की असहज गर्मी के मौसम में तालाब के अन्दर बैठे रहने पर सुन्दर शीतलता "
-----------संजय झा "नागदह"
छल रहित व्यवहार आज के परिवेश में छला जाता है।
--- संजय झा "नागदह"
राम और रहीम की नाम भी मालाओं पे गिन के लोग लेते हैं
पर वो माला नहीं बनीं - जिस पे गिन के लोग यारों के नाम लेते हैं
-----संजय झा "नागदह"
जिस दिन आप मन कर्म और वचन से शुद्ध हो जायेंगे
- पराये ढूंढने से नहीं मिलेगा
---------संजय झा "नागदह"
किसी भी चीज से ज्यादा जरुरी है - चरित्र निर्माण , बिना इसके सब बेकार !!
----- संजय झा "नागदह"
भूख हर इंसान को होती है ,किसको किस चीज की है ये तो उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है
---- संजय झा "नागदह "
"knowledge is the eye to see abstract things".
- Sanjay jha "Nagdah"
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