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गुरुवार, 7 अगस्त 2025

संस्मरण ओ समीक्षा - मोनक चान सुरुज

डॉ. शेफालिका वर्मा, इ नाम साधारण नाम नहि थिक। मिथिलावासीक मध्य नञि जानि कतेकोकेँ दीदी, चाची, काकी, आ मातृस्वरूपा छथि। हिनका लोक मैथिलीक 'महादेवी वर्मा' कहि गौरवान्वित होइत अछि। हिनका हृदयमे स्नेहक समुद्र अछि जाहिमे जे चाहै जेना चाहै डुबकी लगाबय की ओहिठाम बैस मनोवृत्तिक अनुकूल स्नेहाशीष प्राप्त करै।

    हम प्रयास मात्र क' रहल छी जे अपन उद्गार, अनुभव कोना व्यक्त कएने छथि एहि पोथी 'मोनक चान सुरुज'क संस्मरणात्मक कथामे।

हमर अनुभव की ज्ञान एतेक की अंशो मात्र नहि जे समभाव राखि सकब। समयक अभाव तँ स्वाभाविके भ' गेल अछि। पोथीक उपलब्धता अमेज़ॉन पर रहबाक कारणें ऑनलाइन खरीद मंगबेलहुँ, जे जखन दिल्ली जाएब तँ समय निकालि पढ़ब। से जे से पोथी दिल्ली निवास स्थान पहुंच गेल। समय बीतल आ सोह धरि नञि रहल जे कोनो पोथियो पठउने छी सबटा बिसरा गेल छल। नोकरी-चाकरीक मध्य कतेको बातक सोह खासक' निजी जिनकीक हमरा जनैत कतेको लोककेँ नहि रहैत हेतन्हि, सैह हमरो भेल।

                   दिल्ली पहुँचलाक बाद अचानक एक दिन (बेबी) कनियाँ कहैत छथि जे हे लिअ अपन समान जे आहाँ ऑनलाइन अपना लेल पठौने छी। ओहीमे सँ निकलल 'मोनक चान सुरुज' आ देखितहिं मोनमे भेल जे कखन पढ़ब ! जकर मुख्य कारण छल आदरणीया मातृस्वरूपा डॉ. शेफालिका वर्मा जिनकर नित्यहिं आशीर्वाद हमरा व्हाट्सएपक माध्यमसँ भेटैत रहैत अछि।

खैर जे से तखनो समयक अभावे छल। तंजानिया सँ किछु दिनक लेल जखन छुट्टी पर भारत जाइत छी तँ कने आर वयस्तता बढ़ले रहैत अछि। इ काज, ओ काज, नाना प्रकारक काज, भेंट - घांट इत्यादि। मुदा चोट्टहिं पोथीकेँ लैपटॉप बैगमे राखि लेलहुँ जाहिसँ बिसरि नञि कम सँ कम संग चलिजाए। आ से नीके कएल, पोथी छुटबाक कोनो चारा नञि रहि गेल। 3 दिसंबर 2023 क' हमर जेठ बालक चिरंजीवी दर्शकेँ जन्मदिन मना राति 10:30 बजे करीब घर सँ बिदा भेलहुँ पुनः रोजी रोटी लेल तंजानिया आ ससमय पहुँचलहुँ दिल्लीक इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा ।सब सुरक्षा जाँच इत्यादिक बाद नियत जगह जा बैसलहुँ। समयोपरांत जहाजमे बैसलहुँ, जहाज उड़ल, वातावरण सामान्य भेल। तखन निकाललहुँ -- 'मोनक चान सुरुज'

स्वभाविक रूपें पोथीक भूमिका पढ़ल आ तखन देखैत छी जे पोथीक भूमिका सेहओ हमर सबहक प्रिय आदरणीय डॉ. कैलाश कुमार मिश्र निवासी अड़ेर, मधुबनीक हमर गामक पड़ोसी थिकाह। भूमिकामे डॉ. कैलाश जी स्वयं स्पष्ट करैत छथि जे हमरा सनक सामान्य लोक लेल हिनकर रचना पर किछु लिखब केर अर्थ भेल अनन्त प्रकाश सँ भरल सुरुजकेँ दीप देखाएब। तहन हमरा सनक अधना कोन दीप जरायत ? ओ फेर लिखैत छथि जे इ पोथी 'मोनक चान सुरुज' लेखिकाकेँ केर आत्मकथा अथवा जीवनक संस्मरणक तीन कड़ीक अंतिम कड़ी छन्हि। पूर्वक दू गोट प्रकाशित आत्मकथाक नाम 'किस्त-किस्त जीवन' आ 'आखर -आखर प्रीत' छन्हि। एकर अतिरिक्त ओना तँ आर पोथी सब प्रकाशित छन्हि।

                      हिनका द्वारा लिखल भूमिका सँ पाठककेँ लेखिकाक विषयमे बुझब ओ गुणब सहजें भ' जेतन्हि आ आगाँक कथा रुचिसँ पढताह/ पढतीह। लेखिका सेहओ अपन दुई शब्दक अंतर्गत लिखैत छथि-- हमर मोनक यात्रा कोना क्षणहिमे कोसो कोस घुमि अबैत अछि------ई सब निरूपित अछि एहि पोथीमे। तैं एकर नाम राखल अछि ' मोनक चान सुरुज'। कहैत छथि-------मनुखक भाग्य  जकाँ पोथीक सेहओ भाग्य होइत छैक। पोथी जहन हाथ लेब, पढ़' लेल बैसब तँ इ हमर विश्वास थिक जे अवश्य बिना पूरा पढ़ने नञि छोड़ब। हम एकटा पाठकक रूपें एहि शब्दकेँ पूर्णतः समर्थन करैत छी। हमरा संग ठीके एहन भेल जखन पढ़बाक क्रममे एलहुँ तँ क्रमशः पोथी पढ़ि सम्पूर्ण कएल ताहिमे कतौ कोनो संदेह नञि।

      ओना तँ फेर कहैत छी जे डॉ. कैलाश जीक भूमिका ततेक ने साधल ढंग सँ लिखल गेल अछि हमरा किछु लिखबा लेल भेटिए नञि रहल अछि।

लेखिकाक अपनहि जीवन संगी ललन वर्मा जी लिखैत छथि -- एक दिस प्रेम, करुणा दया आ सहजहिं पसिझय बाली शेफालिका आ दोसर दिस क्रांतिकारी शेफालिका दुनू व्यक्तित्वक रस्सा - कस्सीमे बढ़ैत सहित्यधर्मी शेफालिका स्वतः एक अद्भुत व्यक्तित्वक स्वामिनी बनि गेल छथि जे बुझबामे कखनहुँ हम सेहो अपनाकेँ अक्षम पबैत छी। साहित्य सृजन लेल हुनका प्रयास नञि करए पड़ैत छन्हि साहित्य ओहिना हुनका सँ बहराइत छन्हि जेना शिवजीक जटा जूटसँ गंगा स्वतः बहरा क' अबाध गति सँ कल्याण लेल प्रबाहमान थीकिह। एहने थीकिह डॉ. शेफालिका अपन पतिक दृष्टिमे।

एहि पोथीक दोसर भूमिकाक मध्य चंद्रेश जी लिखैत छथि--- हिनका साहित्यक प्रति अगाध आस्था आ रचनामे अभिव्यक्ति करबाक समर्पण भाव अछि। अथाह वेदना,पीड़ा,करुणा आदिक संग हिनक रचनामे सामाजिक कुव्यवस्थाक प्रति जे विद्रोहक स्वर अछि आओर ओ जे खुजिक' सत्यानुभूतिमे बात विचार प्रकट कएलन्हि अछि सैह हिनका मीरा बनबैत छन्हि। चंद्रेश जी पुनः कहैत छथि---- ओ स्वयं हँसैत छथि आ जन - जनकेँ हसब' चाहैत छथि आ खिल - खिलाइत समाजकेँ देख' चाहैत छथि। स्त्री विरोधी मानसिकताक वैश्विक रोगकेँ हटबैत, जन-जनमे प्रेम- भाव भरैत, नवचेतनाक अभ्युदयमे जनसरोकारक प्रति प्रतिबद्धता रखैत ओ स्वस्थ समाजक निर्माण हेतु भूमिका एहि पोथीक मादे निमाहलानि अछि से अनुपम धरोहर थिक।

एहि पोथीक पहिल पड़ाव अछि 'मिथिला धाम सँ कश्मीर धरि' सच कही तँ एहि कथाकेँ पढ़ब हम तखन प्रारम्भ केने छलहुँ जखन दिल्ली सँ तंजानिया क मध्य हवाई जहाजमे छलहुँ। आ से एकरतियो इ नञि अनुभव भेल जे धरती छोड़ि आकाश मार्ग सँ कतौ जा रहल छी। एकदम जेना हम कखनो मिथिला आ श्रीनगर तँ कौखन कश्मीर। कौखन होटलमे तँ कौखन बाग बगीचा इत्यादिमे हमहुँ फोटो खिचेबाक एकटा हिस्सा छी। एना लगैत छल जेना हमहुँ हुनका संग थाकि हुनके लग बैस गेल छी। एखन धरि हमरा जम्मू-कश्मीर दिस जएबाक अवसर नञि भेल अछि मुदा एना लगैत अछि जेना बिन गेनहि घुमि एलौं। एहि कथानान्तर्गत बेसी की कहु - एतबे कहब बिन गए गेने कश्मीर घुमबाक हो तँ इ पोथीक संस्मरण पढ़ी।

एहि क्रममे दोसर पड़ाव थिक ' पुरान टिहरिक दर्द देखल - भोगल' एहि कथाक मध्य हम एतबे अनुभव कएल जे शारीरिक रूपें लेखिका तँ टिहरीक भ्रमण क' रहल छथि मुदा हुनका कोसीक देखल भोगल दर्द बेर-बेर टिभकी उठैत छन्हि।

       मुख्यतया पंद्रहटा कथाक एहि पोथीक मध्य अछि। एक - एकटा संस्मरण पढ़बा काल ध्यान किन्नहुँ नञि एमहर - ओमहर हएत से हमरा विश्वास अछि। प्रत्येक कथा अनेक रस सँ पाटल अछि, कौखन हँसब, कौखन कानब, आ की कौखन विस्मृत भ' जाएब से कहब कठिन अछि।  एहि पोथीकेँ पढ़लाक बाद स्वयं पाठककेँ बुझबामे आबि जएतन्हि जे की कारण थिक जे डॉ. शेफालिका वर्माकेँ मैथिलीक महादेवी वर्मा आ हिनक पाठक हिनका मातृतुल्य आदर करैत छन्हि। हिनका लेल एतबे कहब जे ----

भावनाकेँ शब्दमे पिरोबाक
गद्य की पद्यमे सहजें रखबाक

मोनक बातकेँ मोनमे नहि
साहित्य गढ़ी लोकमे परोसबाक

जे भेटल तकरामे तकरेसन
अनुकूल स्नेह बाँटबाक

व्यवहारानुकूल सर्वत्र सँ
लोकक स्नेह प्राप्त करबाक

ककरो माय ककरो दीदी
सहजे बनिजायबाक 

आ ककरो भाय त ककरो बेटा सन
प्रेम बँटबाक, भाव बँटबाक

इ सब क्षमता
सामान्यमे कहाँ संभव छैक
मुदा हमरा नजरिमे छथिन - आदरणीया शेफालिका वर्मा 

 

संजय झा 'नागदह'


प्रकाशित : मिथिलांगन, ओक्टुबर 2023 - मार्च 2024 

रविवार, 3 अगस्त 2025

उड़ैत वंशी -पाठकीय :संजय झा 'नागदह'

 
एखन दिल्लीमे छी। हमरा आब याद अवैत अछि जे मैथिली लिखब आ पढ़ब सँ कदाचित बाल्यहिं काल सँ रुचि रहल अछि। इ पोथी हमरा अपन बाबा आनि देने छलाह। हुनक नौकरी पेशा प्रकाशन क्षेत्रमे रहन्हि, जहिया धरि रोजगारमे रहलाह से प्रकाशनेक क्षेत्रमे। जेना हमरा जनतब अछि रेखा प्रकाशन जकर गेस पेपर इत्यादि चलैत अछि तकर मुख्य सहयोगीमे सँ एक हमर बाबा सेहो रहल छलाह। तकर कारण बाबा हमरा लेल नीक - नीक पोथी सब आनल करथि। एना कहि ओहि समयमे कक्षामे नव पोथी किनब सभक बसक नहि छलैक। प्रायः पहिल कक्षासँ दसम कक्षा धरि बाबा प्रतापे सबसँ पहिने हमरा नव पोथी आबि जाएल करै।
आब अबैत छी पुनः उड़ैत वंशी पर, हमरा जनैत तहिया प्रायः 1989-90 ई. के बात हेतै हम सातवीं कि आठवींमे छल होएब। तहिया एहि पोथीकेँ पढ़ने रही माने हमरा एहन बुझना जाएत अछि जे इ हमर पहिल पढ़ल मैथिली पोथी अछि । मोसकिल सँ 12-13 बरखक उम्र छल होएत तहियो हम पोथीकेँ अंडर लाइन करैत छलहुँ।
किछु अंश जे ओहि समय अंडर लाइन केने छलहुँ....
- मुक्तककार जकाँ गल्पकार सेहो रसक सभ अव्यवकेँ प्रत्क्षरूपसँ नहि परन्तु व्यंजनाक रूपमे व्यक्त करैत अछि।
- मानू मनुष्यक कोनो जघन्य पापसँ क्रुद्ध सूर्यक क्रोधाग्नि समुद्रक वेग जकाँ उमड़ल आबि रहल हो।
- स्वामीक विरहमे प्रतिपल आरती जकाँ जरैत मनोरमा भला ई कोना सोचितथि जे ओ दुर्गादासक स्मृतिसँ ओहिना हटि जाएतीह जेना राति भेलापर सूर्य आकाशसँ विलीन भ' जाइत अछि। ( इ पूरा वाक्य एखन धरि हमर मानस पटलमे पूर्ण स्मरण छल, मुदा इ विसरि गेल रहि जे क' त' पढ़ने रही)
- परंतु जे बहुरिया एतेक दिन धरि झाँपल छलीह से आइ खापरि लेलनि।
- मुदा भौजीक एहि बातपर श्यामाक क्रोध बिला क' नोर भ' गेलनि।
- खिसिआएल बानर जकाँ दाँत किटकिटा रहल छलाह।
- दूरक डाबरामे बैसल बेंग अपन ढोल बजा रहल छल।
- प्रेमक आगू स्त्रीगण माए-बापकेँ किछु क' नहि गुदानैत अछि।
- स्त्रिगणक प्रेमकेँ पानिक बुलबुला जकाँ ने बलबलाइते देरी ने बिलाइते।
- संबंध स्वार्थ पर आधारित रहैत छैक। गरीब संबंधिक पाप ग्रह होइत छैक जकरासँ लोक मुक्त रहए चाहैत अछि। (इ पूरा वाक्य सेहो एखन धरि हमर मानस पटलमे पूर्ण स्मरण छल, मुदा इ विसरि गेल रहि जे क' त' पढ़ने रही)


पोथी: उड़ैत वंशी
लेखक: योगानन्द झा,ग्राम कोइलख, जन्म 28 फरवरी 1922
प्रकाशन: भवानी प्रकाशन, पटना।
मूल्य: 11 टाका
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1984
एहि प्रकाशनक प्रकाशन संख्या -6
पोथीक प्रस्तावना श्री जयदेव मिश्र द्वारा लिखल गेल अछि।

@संजय झा 'नागदह'

सिराउर (मैथिली उपन्यास) - पाठकीय : संजय झा 'नागदह'

'सिराउर' एकटा मैथिली उपन्यास जकर लेखक थिकाह श्री दिलीप कुमार झा जे वस्तुतः उच्छाल (वनमाली टोल) गामक सम्प्रति मधुबनीमे रहि अध्यापन करैत भाषा साहित्यक सेवामे कतेको बरख सं अनवरत लागल छथि। हमरा हिनक पोथी पढ़बाक लालसा एहि कारने भेल जे हिनकर कविता संग्रह 'बनिजाराक देसमे' ताहि लेल यात्री सम्मान, उपन्यास 'दू धाप आगॉ' ताहि लेल डॉ गणपति मिश्र सम्मान प्रदान कएल गेल छन्हि। एहन सम्मानित व्यक्तिक उपन्यास सामने पड़ल तं खरीद क' पढ़ल। अपनाकें एकरा पढ़वा सं वंचित केना रखितहुं।
सच कहु तं उपन्यास लिखब आ ताहुमे मोनलग्गु, रुचिगर आ एहि तरहें जाहिसं पाठककें सेहो किछ नव - पुरान चीज, ओ ज्ञानादिमे बढ़ोतरि भ' सकन्हि सहज नहि थिक।
एहि उपन्यासक मध्य मिथिला क्षेत्रक बहुत रास बात समेटल गेल अछि। युवा वर्गके अपना क्षेत्रमे किछु नव आयाम स्थापित करबाक, एम्हरे रहि नव योजनाक संग रहि आगा बढवाक निश्चित रूप सं प्रेरणा भेंटतन्हि।
चायक दोकानसं प्रारंभ होइत, मिथिला चित्रकला संवर्धन ओ विस्तार, पढ़ि - लिखि अपनहि क्षेत्रमे सामूहिक प्रयास सं वाणिज्यिक विस्तार, समाजकें एकरूप करबाक, सबकें संग योजना बनेबाक, अनाथक नाथ बनि बेटा बना पालन पोषण करबाक, एतेक सुंदर ढंग सं रचने गढ़ने छथि तकर सराहना निश्चित रूपें कएल जेबाक चाही।

अनेक तरहक बातकें बहुत सुंदर ढंग सं परसल गेल अछि जाहि सं दूर भेल मैथिल जन यदि एहि उपन्यासकें पढ़ता तं बड् बात सबकें पुनरास्मरण भ' जेतन्हि। ब्राम्हण सं इतर वियाहक विधि विधान सेहो सब सं पाठक परिचित हेताह। एहि उपन्यासक मध्य प्रेम लीलाक मिठास अति लघु अछि जकरा कने आर नमारला सं पाठककें आर बेसी मनोरंजन होएतन्हि। ओना इ उपन्यासकें इति करबाक लेल प्रेम प्रसंग एकटा सार्थक प्रयास रहल अछि। दिलीप जीकें हृदय सं शुभकामना। तेसर.. चारिम लिखथि आ हम सब पढ़ि। नीक पोथी अछि पाठककें पढ़क चाहियन्हि।
पोथी : सिराउर (मैथिली उपन्यास)
लेखक: दिलीप कुमार झा
प्रकाशक: सिद्धिरस्तु
पोथी खरीदल: मैत्रेयी प्रकाशन क बुराड़ी विद्यापति समारोह कार्यक्रम स्थलक स्टॉल पर।
मूल्य: 200 टाका
कुल पृष्ठ: 160
छपाई : उत्तम

महामहोपाध्याय गंगानाथ झाक “कवि रहस्य’क मैथिली अनुवाद : अश्विनी कुमार तिवारी

एकटा साधारण व्यक्ति द्वारा एकटा असाधारण कृति पर एकटा सार्थक प्रयास कयल गेल। ई काज अचानके सामान्य साधारण व्यक्ति के आगाँ असाधारण व्यक्तित्व मे बदलि देबाक सामर्थ्य रखैत अछि। जाहि व्यक्ति के चर्चा अतय क रहल छी से छैथि हमर सहपाठी श्री संजय झा। संगी छथि, सहपाठी छथि, सेहो हाफ पैंटक जमाना कें तैं कने आवश्यक झुकाव परिलक्षित भ सकैत अछि।
आब एकटा असाधरण व्यक्तित्व के चर्चा करैत छी जिनका मिथिला के कहय सम्पूर्ण भारत मे शायदे कियो हैत जे हिनका नहि जनैत होयत ओ छथि म० महो० उपाध्याय डा० सर गङ्गा नाथ झा। हिनक एक समय मे देल गेल तीन टा व्याख्यान ( १९२८-२९ ) के संकलित कय एकटा हिंदी भाषा मे पोथी आयल जकर नाम छल कवि रहस्य।
आब एकटा तेसर व्यक्तित्व के चर्चा करै छी जे प्रत्यक्ष रूप सँ त अहि पोथी सँ जुड़ल नहि छथि मुदा अहि पोथी ( अनुदित ) मे सर्वत्र विद्यमान छथि आ से छथि मिथिलाक विद्वत धाराक एकटा महत्वपूर्ण स्तम्भ डा० सुभद्र झा। संजय झा हिनके गाम नागदह के छथि आ बचपन मे हिनक नेह छोह प्राप्त कयने छथि।
संजय झा अहि पुस्तक कवि रहस्य के मैथिली अनुवाद कयने छथि। अनुवाद मे जाहि प्राञ्जल मैथिली भाषाक व्यवहार भेल अछि तकर आधारभूत भाव के धार डा० सुभद्र झा सँ आबैत अछि आ संजय जी पूरा प्रयास कयने छथि यथा सम्भव सक्क भरि ओकर निर्वहन करैथ। कतहु कतहु असफल सेहो भेल हेता किएक त समयक प्रभाव भाषा पर पड़ने बिना रहि नहि सकैत अछि।
किताब के अनुवाद पर गप करी त अनुवाद के सार्थकता अही मे अछि जे अनुवादक अपना केँ अपन विचार केँ आ अपन सोच केँ विषय वस्तु सँ अलग राखथि आ जे जेना छै तकरा तहिना एक भाषा सँ दोसर भाषा मे भाषांतरण क दैथ। हमरा जतेक पढ़ि क अनुभव भेल ताहि आधार पर कहि सकै छी जे अनुवादक अपन काज मे काफी हद तक सफल भेल छथि।
विषय वस्तु के चर्चा नहि करब त अहि काजक औचित्य पूरा नहि होयत। ई अनुदित पोथी दू भाग मे बँटल अछि। पहिल भाग काव्य आ कवि के उत्पत्ति स सम्बद्ध अछि आ दोसर भाग कवि चर्या अर्थात कवि कर्म सँ सम्बंधित अछि।
सर गङ्गा नाथ झा अपन व्याख्यान मे वेद पुराण आ विभिन्न संस्कृत ग्रंथक उदाहरणक आश्रय लय काव्य के उत्पत्ति आ विकास के सोझा रखने छथि। कवि के कर्म ओकर ज्ञान ओकर अध्य्यन क्षेत्र ओकर पहिचान चिह्न आदि के विशद व्याख्या कयने छथि आ अकर अनुवाद सेहो संजय जी बहुत नीक सँ होझा ल आयल छथि।
सस्कृत के श्लोक आदि अहि अनुदित पोथी मे अपन मूल रूप मे अछि आ व्याख्या अनुदित मैथिली मे।
आब एकटा महत्वपूर्ण प्रश्न उठैत अछि जे आखिर हिंदी कोनो एहन भाषा त नहि अछि जकरा मैथिली भाषा भाषी जनैथ नहि होथि तहन एहन श्रम साध्य काज करबा आखिर की औचित्य अथवा उद्देश्य। हमरा लगैत अछि अकर दू टा कारण रहल होयत पहिल कि ई पोथी बहुत पुरान अछि आ करीब करीब लुप्त प्राय अछि तैँ अकर उपयोगिता देखैत नव कलेवर मे अकर आयब जरूरी लागल होयतन। आ दोसर जे सर्वाधिक महत्वपूर्ण अछि जकर चर्चा करैत अपन अहि पोथी मे डा० सर गङ्गा नाथ झा स्वीकारय छथिन्ह जे जहन हिंदी मे हुनका सँ व्याख्यान देबय कहल जाइ छन्हि त हुनका लाज होइ छन्हि कारण जे हिंदी हुनक मातृभाषा नहि। हुनक मातृभाषा अछि मैथिली आ संजय झा के सम्पुर्ण पुस्तक केँ मात्र ई एकटा पाँति अकर मैथिली अनुवाद करय लेल विवश क देने हैतैन।
पुस्तक मे नगण्य त्रुटि के प्रयास रहितो किछु अवश्य रहि गेल अछि तथापि संजय झा संगे हुनक प्रकाशन नवारम्भ के अजित जी अकर प्रकाशन मे बहुत मेहनति कयने छथि। पुस्तक के भाषा आ आइ काल्हि जे प्रचलित भाषा अछि ताहि पर दुनू मे बहुत घमर्थन भेल होयतन से लगैत अछि। मुदा अनुवादक भाषा पर सुभद्र झा के प्रभाव बहुत हद तक बाँचल रहि गेल अछि तैं अनुवाद मे मैथिली भाषाक नीक स्वरूप के दर्शन होइत अछि।
एकटा आग्रह कवि लोकनि सँ जे अहि पोथी के अवश्य पढ़ी ताकि काव्य कर्म के औदार्य आ औचित्य समझि सकी। जानि सकी जे कवि के आखिर समाज मे आइओ अतेक प्रतिष्ठा प्राप्त अछि से किए आर की करी जे ई प्रतिष्ठा अक्षुण्ण रहि सकय। जे पाठक छथि से यदि अहि पुस्तक के पढ़ता त हुनक साहित्यिक समझ के परिष्करण निश्चित रूपेण हेतैन।
पोथी : कवि रहस्य ( महामहोपाध्याय सर गङ्गानाथ झा )

अनुवादक : संजय झा ‘नागदह’
प्रकाशक : नवारम्भ प्रकाशन
पृष्ठ संख्या : 104
मूल्य : 200/- टका ( भारतीय )
अहि पोथीक लेल मित्र संजय झा के बहुत बहुत शुभकामना। मैथिलीक लेल अहिना काज करैत रहथु।
-------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 03/07/2021 )

महामहोपाधयाय सर गंगानाथ झा लिखित कवि रहस्यक, मैथिली अनुवाद हमर सिनेही संजय झा नागदह जीक

 दू दिनसँ हम भोपालमे छी अपन एकटा चाउर मिल प्रोजेक्ट पर , आइ रातुक ट्रेनसँ दिल्ली घुरब..

हम जखन कखनो अपन कोनो प्रोजेक्टपर जाएत छी त’ यात्रामे कुनो ने कुनो पोथी पढ़ैत छी । दू दिन पहिले चतुर्थ आयाम उपन्यास इ नमोनाथ जी लिखितक हिंदी अनुवाद आदरणीय सियाराम झा सरस जीक द्वारा पठाओल गेल छल, पढलहुँ, नीक उपन्यास धरतीसँ ब्रह्मांड धरिक कथामे संयोजन , विज्ञान , अंतरिक्षक रुचिगर , बान्हल उपन्यास । पाठककेर इतिसँ अंत धरि बन्हबामे पूर्ण रुपेण सुफल । एकटा उद्योगपतिक व्यापारिक यात्रा , परिवारिक संबंध , पति पत्नीक पारस्परिक विश्वास , अन्ततोगत्वा संन्यासी बनब , यथार्थक चित्रण करबामे लेखक सुफल रहलाह । मुख्य पात्र दारुका जी जे थ्री डी नामसँ प्रसिद्ध, हुनक अपन अर्द्धांगिनीक लेल सभ किछु समर्पित, जकरा प्रेमसँ किछु आओर कहि परिभाषित करब अतिशयोक्ति नहि, एहेन प्रेम कमे देखल जाएत छैक, ओ अपन पत्नीक सहपाठीकेर अपन व्यापारिक साम्राज्यमे दोसर स्थान देलाह, हुनक अपन मिथिलानी पत्नी अनुपमा साहू, जकरा ओ अनु कहि सम्बोधित करैत छथि, अनुकेँ लेल ओ सभकिछु त्यागै लेल तैयार , हुनक ख़ुशीमे दारुकाजीक खुशी, सायते संभव भ’ सकैत अछि , मुदा की ओ पत्नी हुनको लेल ओतबे समर्पित छली एहि उपन्यासक’ जखन पढब तखन पता लागत । की नायिका अनु अपन सहपाठी दीपक ढोलकिया जी लेल किछु मोनमे रखैत छथि ?ढोलकिया जी अपन सचिव रेखा भटनागर जी लेल हिया हारल, की रेखाक मोनमे हुनक स्थान छैक आकि बस व्यक्तिगत किछो नहि ….
नीक उपन्यास, विज्ञान आ’ अंतरिक्षक रहस्यपर नीक पकड़ आ अपन अनुभवक मिश्रण ।प्रणाम संगेहि हार्दिक आभार सरस जीकेँ, जे हमरा चतुर्थ आयाम पठौलाह ।
आब महामहोपाधयाय सर गंगानाथ झा लिखित कवि रहस्यक, मैथिली अनुवाद हमर सिनेही संजय झा नागदह जीक’ सनेस पढ़ब शुरु केलहुँ अछि ।
आदरणीया शेफालिका दीदी कम शब्दमे पोथी शुभाशंसा लिखली । ई पोथी सभ कवि पढथि , कवि रहस्य की’ थीकैक, से बुझब आवश्यक ।वेद, वेदांग, शास्त्र आ काव्यक केहेन संबंध ,वांग्यमय स्वरूप, काव्य पुरुष , साहित्य- वधू संयोग , शिष्य भेद, काव्यक उत्पत्ति, काव्य लक्षण भेद,शब्द स्वरूप, काव्य पढ़बाक ढंग ,काव्यार्थक मूल , साहित्यक विषय सरिपहुँ कवि लेल रहस्य थीकैक ।
कविचर्या-राजचर्चाक बोध होएबाक चाही कविकेँ,कविक कर्तव्य, कवित्व शिक्षा,राजाक कर्तव्य, चोरी, कवि समय,देश विभाग, काल-समय , नानाशास्त्र -परिचय जानब बहुत आवश्यक छैक, काव्य सृजन लेल ।एक सय तीन पन्नाक ई पोथी हमरा सीखबाक लेल बड़का वरदान ।कविता लिखब एकटा कविक अपन मौलिक विषय थिक,कविता कोना काव्य- सौष्ठव होए, उपमा, अलंकार, विषय वस्तुक सुआद पाठक धरि पहुँचाएब परम कर्तव्य थिक ।
समय लागत मुदा पढब नीकसँ बहुत बहुत हार्दिक आभार प्रिय संजय नागदह जी क’ ।

शनिवार, 2 अगस्त 2025

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता) -पाठकीय


पोथी दिनांक 30 नवम्बर 2024 क' बुराड़ी विद्यापति समारोह स्थल सँ मैत्रियी प्रकाशनक स्टॉल सँ खरीदल। सबसँ पहिल बात जे लेखिका सँ एक दिनक भेंट आ हिनक विद्वता सँ कने परिचित छलहुँ तैं मोनमे भेल जे हिनक लिखल पोथी आ ताहूमे उर्मिलाक मन - कल्पनाक भावना पर केन्द्रित पोथी अवश्य पढ़ि जाहि सँ हमरो किछु ज्ञान मार्जन होए।
आइए कने समय भेटल तँ प्रारम्भ कएल । एहि पोथी पर आशीर्वचन श्रीमान भीमनाथ झा देने छथि।
भूमिकाक स्थान पर प्रयुक्त शब्द पुरोवाक् देखल। हम प्रायः पोथी पढ़बाक शुरुआत एहिठाम सँ करैत छी।
पोथीक भूमिका श्रीमान योगानन्द झा, लहेरियासराय जाहि तरहेँ लिखने छथि ताहि तरहक भूमिका अनन्य मैथिली पोथी सबहुँमे बिरलैके अभरैत अछि। कहैत छथि " प्रस्तुत कथाकाव्य 'बजितथि जँ उर्मिला' रामकथाक एक गोट विशिष्ट पात्रीक कल्पनाप्रसूत व्यथा- कथा पर आधारित अछि। एहिमे उर्मिलाक माध्यमे रामकथाक वाचन कराओल गेल अछि। अत्यन्त संक्षिप्त होइतहुँ ई काव्य सहृदय हेतु मर्मस्पर्शी अछि आ ब्रम्हानंद सहोदरक भुक्तिक संगहि भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य संसाधन अछि। ई काव्य आभा झाकेँ अपन दिव्य ओ भव्य संस्कृतिक संरक्षिकाक रूपमे अवश्य प्रतिष्ठापित करतन्हि"। हम तँ अल्पज्ञ छी तथापि हिनक कथन सँ सहमति रखैत छी।
जिज्ञासा बढ़ैत गेल। श्रीमती आभा झाक भावांजलि होइत आरम्भ कएल 'बजितथि जँ उर्मिला' क पाठ ।
किछु उद्धरण देखल जाए..
आन जीव बस सुख-दुःख
भावेटा सँ, व्यक्त करै ई तथ्य
अश्रु धेनु केर, कानब श्वानक
पीड़ा किन्तु न प्रकटित कथ्य।
तदपि मनुजमे भेद बहुत अछि
वृत्ति गुणें ओ पाबय मान
हित समष्टि जे त्यागय निजसुख
कालातीत ओकर सम्मान।
जे समाज कल्याणक वेदी
पर निज सुख कएलनि उत्सर्ग
युग पर युग बीतय बरु तनिकर
अमल यशक कायम उत्कर्ष।
एतय किन्तु प्रख्यात नै छथि जे
टोही हुनको मनकेँ आइ
राजभवन नहि, अन्तः पुर-
वासिनीक मनमे की औनाइ।
हम सुनयना, जनक केर
औरस सुता छी उर्मिला
प्रथम पुत्री होइतहुँ
छी ख्यात हम सीतानुजा।
द्विरागमनक अवसर पर, जखन चारु बहिन जनकपुर एलीह...
किंतु सुख वेला क्षणिक
त्रुटि किछु समंधक मूल छल
किंवा विदा केर बेरमे
अतिशय प्रबल दिक्शूल छल।
राज्याभिषेकक समयक के भाव व्यक्त क' रहलीह, से देखु....
छथि भरत दुइ भाई नहि
एहि सुखद अवसर खेद अछि
योग राजक शुभ एखन
नक्षत्र - ग्रह - गति तेज अछि।
धड़फड़ीमे कएल निर्णय
नहि सुखद कहियो रहल
राम सन युवराज कोमल
काननक कष्टे सहल !

वन गमनक उपरान्त दशरथ प्राण तेजल, तकर संदर्भमे देखू...
हाय! भेलै एहि अवधमे
दृष्टि शनि केर घोर कारी
पुत्र- पुत्र करैत भूपति
वरण कएलनि मृत्यु भारी।
चारि सुत, नहि एक ल'गमे
भाग्य की एकरे कहै छै
वा कुमार श्रवण पिता केर
शाप एहि तरहेँ फलै छै ?
उद्धरण अनेक अछि... अन्तमे उर्मिला कहैत छथि ...
बहुत बजलहुँ, बहुत दिनसँ
छल हृदय पर भार
जमल हिम् पघिलब शुरू अछि
अन्त नहि तैं धार।
आइ हमहुँ एकर पाठ कएल, विश्वास अछि जाहि तरहेँ श्रीमान योगानन्द जी कहला जे इ निश्चय भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य साधन अछि तकर किछु फलाफल तँ हमरो भेटबाक चाही।
अस्तु !

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता)
लेखिका : आदरणीया श्रीमती आभा झा
प्रकाशक : मैत्रेयी प्रकाशन,दिल्ली।
दाम: 150 टाका।
संजय झा 'नागदह'

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