हिन्दी कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
हिन्दी कविता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 2 अगस्त 2025

दादी - पोता

वो एक करुण स्वर
सुनकर मुझको
कंपन सी हो जाती है

जब कंपकाए होठों से
दादी मेरी कहती थी
दादा तेरा मुझे छोड़कर
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।


सुन धैर्य से उनकी बातें 
हृदय हुआ करता था घायल
फिर डपट कर बड़े प्यार से
कहता बुढ़िया तूं है पागल

बोल तुझे किस कष्ट ने मारा
हम सब हैं न तेरा सहारा।

दादी फिर सहम कर बोली
है तो नहीं कष्ट कुछ मुझको
लेकिन तुम नादान है पोता 
नहीं समझ सकोगे इसको।

मैने कहा तुम चिंता मत कर
कुछ भी हो कहो तुम डटकर
भरोस रख तूं बुढ़िया मुझपर
कष्ट नहीं फटकेगी तुझ पर।

दादी को मैं खास रखने को 
सबको अक्सर कहता था
अच्छी कपड़े अच्छा बिस्तर
सब कुछ अच्छा रखता था।


पर फिर भी एक बात वो अक्सर 
रोक नहीं पाती थी..
खुद से बातें करके बोलती
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।

कष्ट उसे जब कभी देखता
किसी कारण गर होता था
झूठ नहीं, कसम राम की
मेरा मन तो रोता था।

दादी पोता का संबंध 
बड़ी अटूट सा होता है
जब छोड़ी वो अंतिम सांस
मैं फुट फूट कर रोया था।


@संजय झा नागदह'  
26-12-2024

शनिवार, 18 जून 2016

जगाओ जगाओ !!

जगाओ जगाओ 
पर किसे ?
किसी और को नहीं
अपने सपनो को 
अपने आप को
अपने आश को
अपने रोम - रोम को
खुद जाग जाओगे
तो
जिसने तुम्हारी जगा हुआ
जोश को
होश को
उन्नत और उद्दत रूप को
देख लेगा
तब तक नहीं 
सो पायेगा
जब तक तुम्हारी 
तरह जग नहीं जाएगा ।


----संजय झा "नागदह"

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

ईद-उल-जुहा (बकरीद) मुबारक हो।
-------------------------------------
कुर्बानी गर देना चाहो 
देकर देखो एक बार 
काम, क्रोध, मद, मोह और हिंसा 
नहीं जरुरत पड़ेगा मौला
बकरे का फिर बार - बार।

जान हमारा लेकर तुम 
कहते देते हम कुर्वानी 
एक बार पूछो मौला से 
क्या ये है सच्ची कुर्वानी ?

बन खुदा के नेक बन्दे 
कर्म,धर्म और ईमान से 
हराम जिसे पसन्द न मौला 
क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

संजय झा "नागदह" 

दिनांक : 25/09/2015

रविवार, 17 जनवरी 2016

हो तुम कौन सा जाति विशेष ?

सबसे पहले तुम मनुष्य हो 
फिर है कोई भी जाति 
मनुष्य का गुण हो वा न हो 
फिर भी नहीं प्रजाति। 

जिस मनुष्य में सभी जाति समाहित 
हो जाता है जीवन धन्य 
एक जाति का मात्र जो गुण हो 
जीवन हो जाएगा शून्य। 

ब्राह्मण से पांडित्य का गुण  लो 
शूद्र से सीखो सेवा भाव 
क्षत्रिय बन करो खुद व समाज की रक्षा 
वैश्य से सीखो हाट - बाजार। 

अब , अपने ह्रिदय में झाँक कर देखो 
कौन सा गुण है तुझमे विशेष 
मन ही मन खुद ही सोच लेना 
हो तुम कौन सा जाति विशेष। 

------- संजय झा "नागदह"
दिनांक :17/01/2016











गिरगिट ने बताया आत्महत्या की वजह

लोग कहते हैं -
रंग बदलने में माहिर होता है गिरगिट 
लेकिन,
गिरगिट ने कहा लोगो से -
भाई, तुम कई गुना आगे हो 
व्यर्थ मुझे बदनाम कर रहे हो 
रंग बदलने की कला में 
मैं तो अपने जाती को धोखा नहीं दे पाता हूँ 
पर तुम 
दुनिया के साथ - साथ अपने जाती को भी 
क्या - क्या बना देते हो 
कभी चेहरे पर राम तो कभी रहीम बना लेते हो 
इंसान रहते हुए 
जानवर सा व्यवहार बना लेते हो 
किसी भी हालत में 
मेरा खाना - पीना 
परिवेश नहीं बदलता है 
पर तुम तो भीख मांगे के लिए 
अलग सा भेष भी बना लेते हो 
मेरा नाम हर हालत में एक ही रहता है 
पर तुम्हारा
देखो- 
कभी इंसान तो कभी जानवर 
कभी कसाई तो कभी चांडाल 
कभी चोर तो कभी डाकू 
इत्यादि - इत्यादि 
इसलिए हमारा यहाँ है नहीं प्रयोजन 
कर रहा हूँ 
प्राण विशर्जन। 
संजय झा "नागदह"
Dated : 25/04/2014

मुलाकात नहीं हो रहे हैं

जैसे ही मैं निकल रहा था 
आप सबसे मिलने
की "दस्त" ने 
दस्तक दे दी 
कहा 
कहाँ चले मेरे रहते ?
मैंने हाथ जोड़ दिया
कहा 
जी हुजूर 
मुझ में इतना 
हिम्मत कहाँ ?
उन्ही से 
निपटने लगा हूँ 
आप चाहे तो 
निपटने का 
कुछ नुस्खा बताएं 
इनसे मैं 
कब से कह रहा हूँ 
मुझे और न सताएं 
पर क्या करूँ ?
ये जाने का नाम 
नहीं ले रहें हैं 
यही वजह है 
की
आप से मुलाकात 
नहीं हो रहे हैं
धन्यवाद
14/08/2014

समय बड़ा बलवान पर कैसे मानू ?

समय बड़ा बलवान 
पर कैसे मानू ?
है हिम्मत तो दिखा मुझे 
सुबह को कर दे शाम 
रात को सूरज उगा दिखा तू 
मरे हुए जिन्दा कर तू 
दुखी को करके सुखी दिखा तू
कैसे तू बलबान ?
है हिम्मत तो रोक मुझे तू 
दुःख मेरा तू दूर तो कर दे 
दिखा दिखा तू हिम्मत अपना 
कुछ भी नहीं है तेरा अपना 
समय बदलता मेरा अपना 
उस पर तुम ऐंठ मत इतना 
"मेरा "को तू अपना कहता 
दुनिया को तुम बना मत इतना 
कुछ भी नहीं है तेरा अपना 
हिम्मत है तो रोक मुझे तू 
छोड़ रहा हूँ 
अंतिम सांस मै अपना 
मुझसे तू क्या जीत पायेगा ?
मुझे कहाँ ? 
मेरा सांस भी ना तू रोक पायेगा 
हूँ बलवान मै खुद इतना 
आया भी अपनी मर्जी से 
जाऊँगा भी अपनी मर्जी से 
दुनियाँ को तू खूब नचाया 
कहता सब को 
मैंने ही तो इसे बुलाया 
मैंने ही तो इसे भगाया 
मेरी भी तो एक बात तो सुनले 
मेरी इच्छा तुझसे छोटी 
करता बाते छोटी - मोटी
मै आया तो खुसी ले आया 
ख़ुशी के आँसू घरों में आया 
जाऊँगा फिर आएगा आँसू 
ये आँसू होंगे दुखी के आँसू 
पर एक बात तो मेरा सुनले 
जिस दिन तुम जाना चाहोगे 
ना निकलेंगे खुसी के आँसू 
ना निकलेंगे दुखी के आँसू

-----संजय कुमार झा "नागदह" 
18/08/2014

शनिवार, 16 जनवरी 2016

बिकती नहीं बाजार में कुल, गुण, गौरव, शील स्वभाव -


बिकती नहीं बाजार में कुल, गुण, गौरव, शील स्वभाव -
नहीं तो ये भी लोगों के घर के शो - केस में सजाने के वस्तु हो जाती
और कौन कितना अच्छा ये तो उसकी कीमत ही बताती 
फिर तो गरीबों की घर ये कभी भी न आती 
अच्छा किया पर ऊपर वालों ने , इसे सामान नहीं बनाया 
नहीं तो अमीर लोग गरीबों की धज्जियाँ और भी उड़ाती 
------ संजय झा "नागदह"
दिनांक : 09/01/2015

जकड़ा हूँ - बेड़ियों के बिना

कई वर्षों के बाद
उनको देखा , 
पलक एकाग्र है 
आँखें बाते कर रही है 
जवाँ निःशव्द है 
धड़कन की गति 
शताव्दी एक्सप्रेस 
फिर भी दुरी इतनी 
ना कोई हॉल्ट
ना कोई स्टेशन 
जी करता है 
लपक कर पकड़ लूँ 
मिल लूँ गलें 
और कहूँ
फिर मत जाना प्रिये 
समय बड़ा बईमान है 
पता नहीं 
फिर इस तरह 
आएगा 
की नहीं 
पर 
करूँ क्या 
जकड़ा हूँ 
बेड़ियों के बिना 

----संजय झा "नागदह" १९/०४/२०१५

नहीं कोई इतना सस्ता

एक - एक शव्द 
शव्द बाण की तरह अचूक
चित्त कर रहा चिंतन
होकर  मूक
होकर इस मूक 
पड़ा हूँ चिंतन में
उठ रहा अनेको प्रश्न
मेरे जेहन में
का से करूँ विचार ?
 पूछूँ मैं का से रास्ता 
सब चले हैं अपने डोर
नहीं कोई इतना सस्ता 

---- संजय झा "नागदह"

पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलम जी को समर्पित

 धरती माँ का एक ही बेटा 
हुआ नही जिसका अपमान 
कर्म फल गर देख सको तो 
देखो हिन्दु और मुसलमान।

छन - छन जिसने देश के खातिर 
दीपक भाँति जलाये रक्खा 
सपने भी था देश को अर्पण 
ऐसे सपने दिन में देखा।

नहीं किया आराम भी पल भर 
सपने जिसे जगाये रक्खा 
बच्चों को भविष्य मानकर 
ज्ञान उन्हीं को बाँटते देखा।

सोच में डूबा हूँ "कलाम"
कब होगा अगला परिक्षण 
कर लो कबुल "संजय" का सलाम 
हैं ध्यान मेरा तुम पर छन - छन।

--- संजय झा "नागदह"
दिनांक : 24 /08 /2015 

शायरी

हम तो उठ खड़ा हो गये -
जज्बाते इश्क देखकर
इस तूफ़ान में शमाँ - 
बेसक जल भी जाए
शमाँ जलते ही खुद बुझ गयी - 
जलाती हुई शमाँ को देख कर।

---- संजय झा नागदह
Dated : 13/01/2016


जुवां सहम गयी तेरी दीदार से 
 ऐसा लगा अमावस कि रात पूर्णिमा हो गई 
जैसे ही कि तुमने जाने कि बात 
 वही दिन और वही रात हो गई । 
 --------संजय झा "नागदह"
Dated :22/03/2014


इंकार मुहब्बत कौन करे 
जब डूबा दोनों प्यार कि सागर में
पहले तुम निकलो तो तुम निकलो 
 दोनों डूब गए इस सागर में। 
-----------संजय झा "नागदह"
Dated :22/03/2014

बिकती नहीं बाजार में

बिकती नहीं बाजार में कुल, गुण, गौरव, शील स्वभाव 



नहीं तो ये भी लोगों के घर के शो - केस में



सजाने के वस्तु हो जाती


और कौन कितना अच्छा 


ये तो उसकी कीमत ही बताती 


फिर तो गरीबों की घर


ये कभी भी न आती 


अच्छा किया पर ऊपर वालों ने 


इसे सामान न बनाया 


नहीं तो अमीर लोग


गरीबों की धज्जियाँ और भी उड़ाती 




संजय झा "नागदह"


Dated : 9/1/2015

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी