मैथिली अन्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
मैथिली अन्य लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 7 अगस्त 2025

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी सेहो अपन छत पर छल ओहो हल्ला केलक । सभ उठल कोनो ना आगि मिझाएल । भोरे जहन गाम दिस गेनौ तं एक गोटे कहै छथि .... अहीकें रातिमे धरफरी छल, कने काल चुप्प नै रहल भेल !

@ संजय झा 'नागदह'

रविवार, 3 अगस्त 2025

उड़ैत वंशी -पाठकीय :संजय झा 'नागदह'

 
एखन दिल्लीमे छी। हमरा आब याद अवैत अछि जे मैथिली लिखब आ पढ़ब सँ कदाचित बाल्यहिं काल सँ रुचि रहल अछि। इ पोथी हमरा अपन बाबा आनि देने छलाह। हुनक नौकरी पेशा प्रकाशन क्षेत्रमे रहन्हि, जहिया धरि रोजगारमे रहलाह से प्रकाशनेक क्षेत्रमे। जेना हमरा जनतब अछि रेखा प्रकाशन जकर गेस पेपर इत्यादि चलैत अछि तकर मुख्य सहयोगीमे सँ एक हमर बाबा सेहो रहल छलाह। तकर कारण बाबा हमरा लेल नीक - नीक पोथी सब आनल करथि। एना कहि ओहि समयमे कक्षामे नव पोथी किनब सभक बसक नहि छलैक। प्रायः पहिल कक्षासँ दसम कक्षा धरि बाबा प्रतापे सबसँ पहिने हमरा नव पोथी आबि जाएल करै।
आब अबैत छी पुनः उड़ैत वंशी पर, हमरा जनैत तहिया प्रायः 1989-90 ई. के बात हेतै हम सातवीं कि आठवींमे छल होएब। तहिया एहि पोथीकेँ पढ़ने रही माने हमरा एहन बुझना जाएत अछि जे इ हमर पहिल पढ़ल मैथिली पोथी अछि । मोसकिल सँ 12-13 बरखक उम्र छल होएत तहियो हम पोथीकेँ अंडर लाइन करैत छलहुँ।
किछु अंश जे ओहि समय अंडर लाइन केने छलहुँ....
- मुक्तककार जकाँ गल्पकार सेहो रसक सभ अव्यवकेँ प्रत्क्षरूपसँ नहि परन्तु व्यंजनाक रूपमे व्यक्त करैत अछि।
- मानू मनुष्यक कोनो जघन्य पापसँ क्रुद्ध सूर्यक क्रोधाग्नि समुद्रक वेग जकाँ उमड़ल आबि रहल हो।
- स्वामीक विरहमे प्रतिपल आरती जकाँ जरैत मनोरमा भला ई कोना सोचितथि जे ओ दुर्गादासक स्मृतिसँ ओहिना हटि जाएतीह जेना राति भेलापर सूर्य आकाशसँ विलीन भ' जाइत अछि। ( इ पूरा वाक्य एखन धरि हमर मानस पटलमे पूर्ण स्मरण छल, मुदा इ विसरि गेल रहि जे क' त' पढ़ने रही)
- परंतु जे बहुरिया एतेक दिन धरि झाँपल छलीह से आइ खापरि लेलनि।
- मुदा भौजीक एहि बातपर श्यामाक क्रोध बिला क' नोर भ' गेलनि।
- खिसिआएल बानर जकाँ दाँत किटकिटा रहल छलाह।
- दूरक डाबरामे बैसल बेंग अपन ढोल बजा रहल छल।
- प्रेमक आगू स्त्रीगण माए-बापकेँ किछु क' नहि गुदानैत अछि।
- स्त्रिगणक प्रेमकेँ पानिक बुलबुला जकाँ ने बलबलाइते देरी ने बिलाइते।
- संबंध स्वार्थ पर आधारित रहैत छैक। गरीब संबंधिक पाप ग्रह होइत छैक जकरासँ लोक मुक्त रहए चाहैत अछि। (इ पूरा वाक्य सेहो एखन धरि हमर मानस पटलमे पूर्ण स्मरण छल, मुदा इ विसरि गेल रहि जे क' त' पढ़ने रही)


पोथी: उड़ैत वंशी
लेखक: योगानन्द झा,ग्राम कोइलख, जन्म 28 फरवरी 1922
प्रकाशन: भवानी प्रकाशन, पटना।
मूल्य: 11 टाका
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1984
एहि प्रकाशनक प्रकाशन संख्या -6
पोथीक प्रस्तावना श्री जयदेव मिश्र द्वारा लिखल गेल अछि।

@संजय झा 'नागदह'

काव्यपुरुषक कथा - कवि रहस्यक अंश

साहित्यक विषयमे एकटा रोचक आ शिक्षाप्रद कथा अछि। पुत्रक कामनासँ सरस्वती जी हिमालय मे तपस्या करैत छलीह। ब्रम्हाजीक वरदानसँ हुनका एकटा पुत्र भेलन्हि - जिनकर नाम 'काव्यपुरुष' भेलनि। (अर्थात् पुरुष रूप मे काव्य) । जनमितहिं ओ पुत्र इ श्लोक पढ़ैत माताकेँ प्रणाम केलन्हि --

यदेतद्वाङ्गमयं विश्वमथ मूर्त्या विवर्तते ।
सोsस्मि काव्यपुमानम्ब पादौ वन्देय तावकौ ।।
अर्थात् -- 'जे वाङ्ग्मयविश्व (शव्दरूपी संसार) मूर्तिधारण क' क' निवर्तमान भ' रहल अछि सैह काव्यपुरुष हम छी। हे माय ! आहाँक चरणकेँ प्रणाम करैत छी'। एहि पद्यके सुनि क' सरस्वती माय प्रसन्न भेलीह आ कहलन्हि -- 'वत्स',एखन धरि विद्वान गद्य टा बजैत अयलाह आइ आहाँ पद्यक उच्चारण केलहुँ। आहाँ बड्ड प्रसंसनीय छी। एखन सँ शव्द - अर्थ - मय आहाँक शरीर अछि -- संस्कृत आहाँक मुँह -- प्राकृत बाँहि -- अपभ्रंश जाँघ --- पैशाचभाषा पैर -- मिश्रभाषा -- वक्षः स्थल -- आत्मा छन्द -- लोम -- प्रश्नोत्तर, पहेली इत्यादि आहाँक खेल -- अनुप्रास उपमा इत्यादि आहाँक गहना भेल'। श्रुति सेहओ एहि मन्त्र मे आहाँक प्रशंसा केलनि --
चत्वारि श्रृंगास्त्रयोsस्य पादा द्वे शीर्षे सप्तहस्तासोsस्य ।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महोदेवो मत्याँ आविवेश ।।
ऋग्वेद 3।8।10।3।
एहि वैदिक मन्त्रके कतेको अर्थ कएल गेल अछि। (1) कुमारिलकृत तंत्रवार्तिक (1। 2। 46) क मोताबिक इ सूर्यक स्तुति अछि। चारि 'श्रृंग' दिनक चारि भाग अछि। तीन 'पाद' तीनटा ऋतु -- शीत, ग्रीष्म, वर्षा। दू 'शीर्ष' दुनू छह छह मासक अयन। सात 'हाथ' सूर्यक सातटा घोड़ा। 'त्रिधाबद्ध' प्रातः मध्यान्ह - साँझ - सवन (तीनू समय सँ सोमरस खींचल जाइत अछि) । 'वृषभ' वृष्टिक मूल कारण प्रवर्तक। 'रोरवीति', मेघक गर्जन। 'महो देव' बड़का देवता -- सूर्य जिनका सबलोक प्रत्यक्ष देवताक रूपमे देखैत छथि। (2) सायणाचार्य एहि तरहेँ अर्थ व्यक्त कएने छथि -- एहिमे यज्ञ रूप अग्निक वर्णन अछि। चारि 'श्रृंग' अछि चारु वेद। तीनटा 'पाद' तीनू सवन प्रातः मध्यान्ह साँझ। दू टा 'शीर्ष' ब्रह्मौदन आ प्रवर्ग्य। सातटा 'हाथ' सातो छन्द। 'त्रिधाबद्ध' मन्त्र - कल्प - ब्राह्मण तीन तरहसँ जकर निबन्धन भेल होएक। 'वृषभ' कर्मफल सभक वर्षण केनिहार। 'रोरवीति' यज्ञानुष्ठानक समयमे मन्त्रादिकपाठ आ सामगानादिक शव्द क' रहल अछि। (3) सायणाचार्य सेहओ एकरा सूर्यकपक्षमे एहि तरहेँ लगौने छथि -- चारिटा 'श्रृंग' अछि चारु दिशा। तीनटा 'पाद' भेल तीनू वेद। दू - टा 'शीर्ष' राति आ दिन। सातटा 'हाथ' सात ऋतु - वसन्तादि छहटा पृथक् - पृथक् आ एकटा सातम 'साधारण'। 'त्रिधाबद्ध' पृथिवी आदिक स्थानमे अग्नि आदिक रूपसँ स्थित - अथवा ग्रीष्म - वर्षा - शीत तीन कालमे बद्ध। 'वृषभ' वृष्टि केनिहार। 'रोरवीति' वर्षाक माध्यमे शव्द करैत अछि। 'महो देव' पैघ देवता। 'मर्त्यान् आविवेश' नियन्ता आत्माक रूपमे समस्त जीवमे प्रवेश केलक। (4) शाव्दिकक मतसँ एहि मन्त्रमे शव्द रूप ब्रम्हक वर्णन अछि -- जकरा विशद रूपमे पतञ्जलि महाभाष्य ( पस्पशाह्रिक पृ० 12 ) मे बतौने छथि। चारि 'श्रृंग' अछि चारु तरहक शव्द - नाम-आख्यात- उपसर्ग -निपात (उद्योतक मतानुसार परा - पश्यन्ति - मध्यमा - वैखरी) । तीन 'पाद' तीनू काल, भूत भविष्यत् वर्तमान। दू टा 'शीर्ष' दू तरहक शव्द -- नित्य - अनित्य अर्थात् व्यंग्य व्यंजक (प्रदीप) । 'सात' हाथ, साथटा विभक्ति। 'त्रिधा बद्ध' ह्रदय - कण्ठ - मूर्धा इ तीनू स्थानमे बद्ध। 'वृषभ' वर्षण केनिहार। 'रोरवीति' शव्द करैत अछि। 'महो देवः' पैघ देव, शव्द ब्रम्ह। मर्त्यान् 'आविवेश' मनुक्ख मे प्रवेश केलक। (5) भरत नाट्यशास्त्र (अ० 17) मे लिखल अछि -- 'सप्त स्वराः, त्रीणि स्थानानि (कण्ठ, ह्रदय, मूर्धा), चत्वारो वर्णाः, द्विविधाः काकुः, षडलंकाराः, षडंगानि ' ।
एतेक कहि सरस्वती चलि गेलीह। ओहि समय उशनस् (शुक्र महाराज) कुश आ लकड़ी लेबाक लेल जा रहल छलाह। बच्चाके देखि अपन आश्रममे ल' गेलाह। ओहि ठाम पहुँचि बच्चा बजलाह --
या दुग्धाsपि न दुग्धेव कविदोग्धृभिरन्वहम् ।
हृदि नः सत्रिधत्तां सा सूक्तिधेनुः सरस्वती ।।
अर्थात् 'सुभाषितक धेनु -- जे कविसबसँ दुहल जएबापर सेहओ नहि दुहल जकाँ बनल रहल -- एहन सरस्वतीक हमरा हृदय मे वास करथि'। ओ इ सेहओ कहने छलाह जे एहि श्लोककेँ पढ़ि क' जे पाठ आरम्भ करत से सुमेधा बुद्धिमान हएत। तहिएसँ शुक्रकेँ लोक 'कवि' कह' लगलन्हि। 'कवि' शव्द 'कवृ' धातु सँ बनल अछि --जाहिसँ ओकर अर्थ छैक 'वर्णन केनिहार'। कवि कर्म छैक 'काव्य' । एहि आधारसँ सरस्वतीक पुत्रक नाम 'काव्यपुरुष' प्रसिद्ध भेलन्हि। एतबे मे सरस्वती आपिस एलीह आ पुत्रके नहि देखि दुःखी भ' गेलीह। वाल्मीकि जी ओम्हर सँ अबैत छलाह। ओ बच्चाकेँ शुक्रक आश्रममे जएबाक वृतान्त कहि सुनौलनि। प्रसन्न होइत सरस्वतीजी वाल्मीकिकें छन्दोमयी वाणीक वरदान देलन्हि। जाहि पर दू - टा चिड़ै मे सँ एकटाकें व्याधसँ मारल देखिक' हुनक मुँह सँ इ प्रसिद्ध श्लोक स्वतः निकलि गेलनि --
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ।।
एहि श्लोककेँ सेहओ वरदान देल गेलैक जे किछु आर पढ़बासँ पहिने यदि कियो एहि श्लोककें पढ़त त' ओ कवि हएत। मिथिलामे एखन धरि बच्चा सबकेँ सबसँ पहिने इ श्लोक सिखाओल जाइत छैक। एकरा संग - संग एकटा आरो श्लोक सेहओ सिखाओल जाइत छैक --
सा ते भवतु सुप्रीता देवी शिखरवासिनी ।
उग्रेण तपसा लब्धो यया पशुपतिः पतिः ।।
तखन फेर एहि ' मा निषाद' श्लोकक प्रभाव सँ वाल्मीकि जी रामायण रचलाह आ द्वैपायन जी महाभारत।
एक दिन ब्रम्हाजीक सभामे दू - टा ब्रम्हऋषिमे वेदक प्रसंग शास्त्रार्थ भ' रहल छल ओहिमे त्रिनेत्री होबाक लेल सरस्वतीजीकेँ बजाओल गेल। काव्य - पुरुष सेहओ मायक पाछा विदा भ' गेलाह। माय मना केलखिन - बिना ब्रह्माजीक आज्ञासँ ओहिठाम गेनाइ उचित नहि। एहि पर रुष्ट भ' काव्यपुरुष कतहु आर चलि गेलाह। हुनका जाइत देखि हुनक मित्र कुमार (शिवजीकेँ पुत्र) कानय लगलाह। हुनक माय काव्यपुरुषकेँ लौटेबाक लेल एकटा उपाय सोचलन्हि। प्रेमसँ दृढ़ बन्धन प्राणिक लेल कोनो दोसर नहि, एहन विचार क' ओ 'साहित्यबधू' रूपमे एकटा स्त्रीक सृजन केलन्हि आ ओकरा कहलनि - 'ओ आहा धर्मपति काव्यपुरुष रुसि क' चलल जा रहल छथि -- हुनकर पाछा करू आ लौटा क' लाउ।' ऋषि लोकनि सँ सेहओ कहलनि 'आहाँ सब काव्यपुरूषकेँ स्तुति करैत हिनकर पाछा जाऊ। इ आहाँ सबहक काव्यपुरुष हेताह।
सबगोटा पहिने पूब दिस गेलाह -- जेमहर अंग- बंग- सुम्ह - पुण्ड्र इत्यादि देश छैक। एहि देशमे साहित्यवधू जेहन वेशभूषा धारण केलन्हि ओकरे अनुशरण ओहि देशक स्त्री लोकनि केलीह। जाहि वेषभूषाक वर्णन ऋषि लोकनि एहि शव्दमे केलन्हि --
आर्द्रार्द्रचन्दनकुचार्पितसूत्रहारः
सीमन्तचुम्बिसिचयः स्फुटबाहुमूलः ।
दूर्वाप्रकाण्डरुचिरास्वरूपभोगात्
गौडांङ्गणासु चिरमेष चकास्तु वेषः ।।
[चन्दनचर्चितकुचन पर विलसत सुन्दर हार।
सिरचुम्बी सुन्दर वसन बाहुमूल उघरार ।।

अगुरु लगाये देह में दूर्वा श्यामल रूप ।
शोभित सन्तत हो रही नारी गौड अनूप ।।]

ओहि देशमे जा क' काव्यपुरुष जेहन वेशभूषा धारण केलन्हि ओहिठामक पुरुष सेहओ ओकर अनुकरण केलक। ओहि सब देशमे जेहन भाषा साहित्यवधू बजैत गेली ओहिठाम ओहने बोली बाजल जाए लागल। ओहि बोलचालक रीतीक नाम भेल 'गौडी रीती' -- जाहिमे समास आ अनुप्रासक प्रयोग बेसी होइत अछि। ओहिठाम जे किछु नृत्य गीत आदि सभक कला ओ देखौलनि ओकर नाम भेल 'भारतीवृत्ति' । ओहिठामक प्रवृतिक नाम भेल 'रौद्रभारती।'
ओहिठामसँ सबकियो पाञ्चालक दिस गेलाह। जाहिठाम पाञ्चाल - शूरसेन - हस्तिनापुर - काश्मीर -वाहीक- वाह्लीक इत्यादि देश छैक। ओहिठाम जे वेशभूषा साहित्यवधूक छल ओकर वर्णन ऋषि लोकनि एहि तरहेँ केलाह -
ताटंकवल्गनतरगिंतगण्डलेख -
मानाभिलम्बिदरदोलिततारहारम् ।
आश्रोणिगुल्फपरिमण्डलितोत्तरीयं
वेषं नमस्यत महोदय सुंदरीणाम् ।।
[तडकी चञ्चल झूलती सुंदरगोलकपोल।
नाभिलम्बित हार नित लिपटे वस्त्र अमोल।]
एहि सब देश मे जे नृत्य गीत सभक कला साहित्यवधू देखेलन्हि ओकर नाम 'सात्वतीवृत्ति' आ ओहिठामक बोलचालक नाम भेल 'पांचाली रीति' जाहिमे समासक प्रयोग कम होइत अछि।
ओहिठाम सँ अवन्ति गेलाह। जेमहर अवन्ती - वैदिश - सुराष्ट्र - मालव - अर्बुद - भृगुकच्छ इत्यादि देश छैक। ओहिठामक वृत्तिक नाम भेल 'सात्वकी - कैशिकी'। एहि देशक भेषभूषामे पांचाल आ दक्षिण देशक मिश्रण अछि। अर्थात् एहिठामक स्त्रिलोकनिक वेशभूषा दक्षिण दिसक स्त्री जकाँ --- आ पुरुष लोकनिक पांचलवासी सनक छल। एहिठामक प्रवृतिक नाम 'आवन्ती' भेल।
अवन्ती सँ सब कियो दक्षिण दिस गेलाह -- जाहिठाम मलय - मेकल - कुन्तल - केरल - पालमञ्जर - महराष्ट्र - गंग - कलिंग इत्यादि देश अछि। ओहिठामक स्त्रीक वेषभूषाक वर्णन ऋषि लोकनि एहि तरहेँ केलन्हि –

आमूलतो वलितकुन्तल चारुचूड --
श्चूर्णालकप्रचयलांञ्छितभालभागः।
कक्षानिवेशनिविडीकृतनीविरेष
वेषश्चिरं जयति केरलकामिनीनाम् ।।
[बाँधे केश सुवेश नित बुकनी रंञ्जित भाल ।
नीवी कच्छा में कसी, विलसित दक्षिणबाल ।।]

एहिठामक प्रवृतिक 'दाक्षिणात्य वृत्ति' नाम भेल। साहित्यबधू एहिठाम जाहि नृत्य गीतकलाक उपयोग केलन्हि तकरनाम 'कैशिकी' भेल। बोलचालक रीतिक नाम 'वैदर्भी' भेल जाहिमे अनुप्रास होइत छैक, समास नहि होइत छैक।
'प्रवृति' कहल जाइछ वेषभूषाकेँ, 'वृत्ति' कहल जाइछ नृत्य गीत कला-विलासकेँ - आ 'रीति' कहल जाइछ बोलचालक क्रमकेँ। देश त' अनन्त अछि मुदा एहि चारि विभागसँ सभकेँ विभक्त कएल जाइछ - प्राच्य - पांचाल - अवन्ती --दक्षिणात्य। एहि सभक सामान्य अछि 'चक्र - वर्तिक्षेत्र' जे दक्षिण समुद्रसँ ल' क' उत्तर दिस 1000 योजन (4000 कोस) धरि पसरल अछि। एहि देश मे जेहन वेशभूषा कहल गेल अछि ओहने हेबाक चाहीयैक। एकरे अन्तर्गत एकटा विदर्भ देश छैक जाहि ठाम कामदेवक क्रीड़ास्थल वत्सगुल्म नामक नगर छैक। ओही नगरमे पहुँच क' काव्यपुरुष अपन विवाह साहित्यवधूक संग केलन्हि आ लौट क' हिमालय अएलाह जाहिठाम गौरी आ सरस्वती हिनका लोकनिक प्रतीक्षा करैत छलीह। इ सब वधू आ वरकेँ वर (आशीर्वाद) देलन्हि कि सदैव कवि लोकनिक मानसमे निवास करथि।
इ छल काव्यपुरुषक कथा।

© संजय झा 'नागदह'

सरस्वतीजीक कृपा होइ त'- कवि रहस्य अंश

शिष्य तीन तरहक होइत अछि -- (1) बुद्धिमान् (2) आहार्यबुद्धि (3) दुर्बुद्धि। जे स्वभावसँ बिना ककरो दोसराक सहायताक बिना अभ्यास क' शास्त्र ग्रहण क' सकय ओकरा 'बुद्धिमान' कहल जाइछ। जकरा शास्त्रज्ञान शास्त्रक अभ्याससँ होइत अछि ओकरा 'आहार्यबुद्धि' कहल जाइछ। एहि दुनूक अतिरिक्त 'दुर्बुद्धि' अछि। इ समान्यरूपेँ शिष्यक बिभाग भेल। काव्यशिष्यक विभागक निरूपण कविकण्ठाभरणक मोताबिक आगा भेटत।

बुद्धिमान तीन प्रकारक होइत अछि -- स्मृति, मति, प्रज्ञा। अतीत वस्तुक ज्ञान जाहिसँ होइक ओ भेल 'स्मृति' । वर्तमान वस्तुक ज्ञान जाहिसँ होइक से भेल 'मति' । आ आगामी (भविष्यत्) वस्तुक ज्ञान जाहिसँ होइक से भेल 'प्रज्ञा'। तीनू प्रकारक बुद्धिसँ कवि लोकनिकेँ मददि भेटैत छनि। शिष्यसबहु मे जे 'बुद्धिमान' छथि ओ उपदेश सुनबाक इच्छासँ -- ओकरा सुनैत छथि --- ओकरा ग्रहण करैत छथि -- ओकरा अपनाबैत छथि -- ओकर विज्ञान (विशेष रूपसँ ज्ञानक) सम्पादन करैत छथि -- ऊह (तर्क) करैत छथि -- अपोह (जे बात मोन मे नहि जचैत छनि ओकर परित्याग ) करैत छथि -- तकरा बाद तत्व पर स्थिर भ' जाइत छथि। 'आहार्यबुद्धि' शिष्यक सेहओ एहने व्यवहार होइत छैक। मुदा ओकरा मात्र उपदेष्टाक आवश्यकता नहि छैक -- ओकरा एकटा प्रशास्ताक (शासन केनिहार, हरदम देख-भाल केनिहार ) आवश्यकता रहैत छैक। प्रतिदिन गुरुक उपासना दुनू तरहक शिष्यक प्रकृष्ट गुण समझल जाइत छैक। एह उपासना बुद्धिक विकासमे प्रधान साधन होइत अछि। एहि तत्वज्ञानप्रक्रियाकेँ संग्रह एहि तरहेँ कएल गेल अछि --
(1) प्रथयति पुरः प्रज्ञाजोतिर्यथार्थपरिग्रहे
(2) तदनु जनयत्यूहापोहक्रियाविशदं मनः ।
(3) अभिनिविशते तस्मात् तत्त्वं तदेकमुखोदयं
(4) सह परिचयो विद्यावृद्धैः क्रमादमृतायतै ।।
(1) पहिले अर्थसभक यथावत् ज्ञानक योग्य प्रज्ञा उत्पन्न होइत छैक --
(2) ओकरा बाद ऊहापोह (तर्क - वितर्क) करबाक योग्यता मोनमे उत्पन्न होइत छैक -- (3) तकराबाद एकान्त वस्तुतत्वमात्रमे मन लागि जाइत छैक --- (4) ज्ञानवृद्ध सज्जनक परिचय क्रमेण अमृत भ' जाइत छैक।
'बुद्धिमान' शिष्य तत्व जल्दिये समझि - बुझि लैत अछि। एक बेर सुनि लेला मात्रसँ ओ इ बात समझि लैत अछि। एहन शिष्यके कवि मार्गक (कविक की मार्ग होएबाक चाही तकर) खोजमे गुरुक समीप जएबाक चाही। 'आहार्यबुद्धि' शिष्य एक त' पहिले समझैत नहि अछि -- आ फेर समझएबा पर सेहओ नाना तरहक संशय रहि जाइत छैक। एकरा लेल उचित हेतैक जे ओ अज्ञात वस्तुके जनबाक लेल आ संशय दूर करबा लेल आचार्यक समीप जाए। जे शिष्य 'दुर्बुद्धि' अछि ओ सबतरि उलटे समझत। एकर तुलना कारी कपड़ाक संग कएल गेल अछि -- जाहि पर दोसर रंग नहि चढ़ि सकैत अछि। एहन मनुक्खकेँ यदि ज्ञान भ' सकैत अछि तँ मात्र सरस्वतीक प्रसादें बुझू।

एकर प्रसंग मे एकटा कथा कालिदासक मिथिलामे बड्ड प्रसिद्ध अछि। कालिदास ओहने शिष्यमेसँ छलाह जिनकर परिगणन 'दुर्बुद्धि' क श्रेणी मे होइत छलन्हि। गुरूकुल (गुरुक चौपाड़ी) मे रहैत त' छलाह मुदा बोध एक अक्षरक नहि छलन्हि। केबल खड़िया ल' क' जमीन पर घिसल करथि -- अक्षर एकोटा नहि बननि। मिथिला मे एकटा प्राचीन देवीक मन्दिर उच्चैठ गाँव मे अछि। ओहि ठाम एखन धरि जंगल एहन छैक ( आब पूर्णरूपसँ रचल - बसल गाँव अछि - अनुवादक) । कालिदास जाहिठाम पढ़बा लेल पठाओल गेल छलाह ओ गुरुकूल (चौपाड़ी) एहि मन्दिरकेँ कोस - दू - कोसक आस पासे कतहु छल। एक राति बड्ड अन्हार छल - पाइन खूब बरसि रहल छल। विद्यार्थी सबहुमे शर्त होमए लागल जे यदि कियो एहि भयंकर रातिमे कियो देवीक दर्शन क' आबए त' ओकरा सब मिल क' या त' स्याही (रोसनाइ) या कागज (कागत ) बना देत। [ स्याही बनेबाक प्रक्रिया त' एखनो देहातमे चलैत अछि से त' सबके बुझले हएत। विद्यार्थी सब कागज़ केना बनबैत छल तकर प्रक्रिया आब एखन 30, 40 बरखसँ लोकसब नहि देखने हएत। नेपालमे बाँससँ एक प्रकारक कागज़ बनैत अछि। इ बड्ड पातर होइत छैक -- आ बड्ड मजगूत सेहओ। पातर बेसी होएबाक कारणेँ पुस्तक लिखबा योग्य नहि होइत छैक। तखनो आर सब तरहक कागजी कारवाई एखन धरि नेपाल मे ओहिसँ चलैत छैक। एहि कागजकें पोथी लिखबा योग्य बनेबाक प्रक्रिया एहन छल। बाल्यावस्थामे हमहुँ एहि प्रक्रियामे मददि करैत छलहुँ ताहि हेतु नीक जकाँ स्मरण अछि। चावलक मांड बना क' कागज़ ओहि मे डूबा देल जाइत अछि -- अक्सर मांडमे हरताल छोड़ि दैत अछि -- जाहिसँ कागजक रंग सुन्दर पियर भ' जाइत छैक आ कागज़ मे कीड़ा लगबाक सम्भावना सेहओ काम भ' जाइत छैक। मांड मे कने काल रखलाक बाद कागज़ रौद (धूप) मे पसारल जाइत अछि। नीक जकाँ सुखि जएबा पर कागज़ मोट भ' जाइत छैक मुदा खरखर एतेक रहैत छैक जाहि सँ लिखब असंभव सन भ' जाइत छैक। एकर उपाए कठिन आ परिश्रमसाध्य होइत अछि। एकटा जंगली वस्तु जे कारी सन होइत अछि -- प्रायः कोनो पैघ फलक बीज -- जकरा मिथिलामे 'गेल्ही' कहल जाइछ। पीढ़ी पर कागजकें पसारि क' एहि गेल्ही सँ घण्टों रगड़लासँ कागज़ खूब चिक्कन भ' जाइत छैक। ] कोनो विद्यार्थीकेँ एहि शर्तक स्वीकार करबाक साहस नहि भेल। कालिदास उजड्ड (महामूर्ख) त' छलाहे -- कहलनि हम जाएब। फेर मन्दिर मे गेलाह - एकर प्रमाण की हएत तकर इ निश्चय भेल कि जे कियो जाएत से स्याही ल' क' जाएत आ मन्दिरक देबाल पर अपने हाथक थप्पा (छाप) लगा क' आओत। कालिदास गेलाह। मुदा मन्दिरक अन्दर जएबा पर हुनका इ सन्देह भेलन्हि जे कहीं देबाल पर हाथक थप्पा लगादेब त' कदाचित पाइनक बौछारसँ मेटा ने जाए। एहि डरसँ ओ इ निश्चय केलनि की कियाक नै देवीक मूर्तिक मुँहें मे स्याहीक थप्पा लगा देल जाए त' ठीक रहत। जहिना हाथ बढ़ेला तहिना मूर्ति घुसक' लागल। कालिदास पाछा केलनि। अन्ततोगत्वा देवी प्रत्यक्ष भेलीह आ कहलनि ' तू की चाहैत छैं ?' भगवतीक दर्शनसँ कालिदासक आँखि फुजलनि, आ कहलाह -- ' हमरा विद्या दिअ हम इएह चाहैत छी।' देवी कहलनि -- ' ठीक छै' --- तूं एखन जाक' राइत भरिमे जतेक ग्रन्थ उलटबएं सबटा तोरा याद भ' जएतौक।' कालिदास जा क' विद्यार्थी के त' जे से गुरूजी सबकेँ सेहओ जतेक पोथी छल सबटाके पन्ना - पन्ना उलटि देलनि। आ परम पण्डित भ' गेलाह।
दुर्बुद्धिक लेल अहिं तरहेँ यदि सरस्वतीजीक कृपा होइ त' से छोड़ि आर कोनो उपाय नहि छैक।


शनिवार, 2 अगस्त 2025

बीहनि कथा - देह जड़ैए

कतेक सुन्नर वातावरण छल, दरबज्जा पर धीया-पुता सब अपना धुनमे खेल रहल छल। बेरोजगारक एकटा टोली तास खेलबामे व्यस्त आ चारुकात सँ अन्य लोक हां हां ठि ठि मे व्यस्त छल।  आ की उठलै गर्दमिसान दु भाईक मध्य। छोटका कहथि - इ सबटा हँसोथि लेने छथि । आ बड़का कहथि बाज तँ की सब हँसोथि लेने छियौ ? बजबंय तहन ने तोरा हँसोथलाहा द'  देबौ। ओहिठाम एकटा प्रकांड विद्वान उपस्थित छलाह जिनका बुझल छलन्हि जे इ छोटका सबटा फुंसि बजैया, जेठाकाकेँ अनेरे फिरिसान करैए। एहि मध्य छोटका डिरिया - डिरिया क' कहैत हिनका देखिते हमरा देहमे आगि लागि जाइया -- ई बात सुनैत-सुनैत जखन ओ अकच्छ भ' गेलाह तँ बड्ड ओरियाकँ ओकरा कहैत छथि --- हौ, जकरा देहमे आगि लगैत छै सैह ने जड़ैया ! 

@संजय झा 'नागदह'

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता) -पाठकीय


पोथी दिनांक 30 नवम्बर 2024 क' बुराड़ी विद्यापति समारोह स्थल सँ मैत्रियी प्रकाशनक स्टॉल सँ खरीदल। सबसँ पहिल बात जे लेखिका सँ एक दिनक भेंट आ हिनक विद्वता सँ कने परिचित छलहुँ तैं मोनमे भेल जे हिनक लिखल पोथी आ ताहूमे उर्मिलाक मन - कल्पनाक भावना पर केन्द्रित पोथी अवश्य पढ़ि जाहि सँ हमरो किछु ज्ञान मार्जन होए।
आइए कने समय भेटल तँ प्रारम्भ कएल । एहि पोथी पर आशीर्वचन श्रीमान भीमनाथ झा देने छथि।
भूमिकाक स्थान पर प्रयुक्त शब्द पुरोवाक् देखल। हम प्रायः पोथी पढ़बाक शुरुआत एहिठाम सँ करैत छी।
पोथीक भूमिका श्रीमान योगानन्द झा, लहेरियासराय जाहि तरहेँ लिखने छथि ताहि तरहक भूमिका अनन्य मैथिली पोथी सबहुँमे बिरलैके अभरैत अछि। कहैत छथि " प्रस्तुत कथाकाव्य 'बजितथि जँ उर्मिला' रामकथाक एक गोट विशिष्ट पात्रीक कल्पनाप्रसूत व्यथा- कथा पर आधारित अछि। एहिमे उर्मिलाक माध्यमे रामकथाक वाचन कराओल गेल अछि। अत्यन्त संक्षिप्त होइतहुँ ई काव्य सहृदय हेतु मर्मस्पर्शी अछि आ ब्रम्हानंद सहोदरक भुक्तिक संगहि भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य संसाधन अछि। ई काव्य आभा झाकेँ अपन दिव्य ओ भव्य संस्कृतिक संरक्षिकाक रूपमे अवश्य प्रतिष्ठापित करतन्हि"। हम तँ अल्पज्ञ छी तथापि हिनक कथन सँ सहमति रखैत छी।
जिज्ञासा बढ़ैत गेल। श्रीमती आभा झाक भावांजलि होइत आरम्भ कएल 'बजितथि जँ उर्मिला' क पाठ ।
किछु उद्धरण देखल जाए..
आन जीव बस सुख-दुःख
भावेटा सँ, व्यक्त करै ई तथ्य
अश्रु धेनु केर, कानब श्वानक
पीड़ा किन्तु न प्रकटित कथ्य।
तदपि मनुजमे भेद बहुत अछि
वृत्ति गुणें ओ पाबय मान
हित समष्टि जे त्यागय निजसुख
कालातीत ओकर सम्मान।
जे समाज कल्याणक वेदी
पर निज सुख कएलनि उत्सर्ग
युग पर युग बीतय बरु तनिकर
अमल यशक कायम उत्कर्ष।
एतय किन्तु प्रख्यात नै छथि जे
टोही हुनको मनकेँ आइ
राजभवन नहि, अन्तः पुर-
वासिनीक मनमे की औनाइ।
हम सुनयना, जनक केर
औरस सुता छी उर्मिला
प्रथम पुत्री होइतहुँ
छी ख्यात हम सीतानुजा।
द्विरागमनक अवसर पर, जखन चारु बहिन जनकपुर एलीह...
किंतु सुख वेला क्षणिक
त्रुटि किछु समंधक मूल छल
किंवा विदा केर बेरमे
अतिशय प्रबल दिक्शूल छल।
राज्याभिषेकक समयक के भाव व्यक्त क' रहलीह, से देखु....
छथि भरत दुइ भाई नहि
एहि सुखद अवसर खेद अछि
योग राजक शुभ एखन
नक्षत्र - ग्रह - गति तेज अछि।
धड़फड़ीमे कएल निर्णय
नहि सुखद कहियो रहल
राम सन युवराज कोमल
काननक कष्टे सहल !

वन गमनक उपरान्त दशरथ प्राण तेजल, तकर संदर्भमे देखू...
हाय! भेलै एहि अवधमे
दृष्टि शनि केर घोर कारी
पुत्र- पुत्र करैत भूपति
वरण कएलनि मृत्यु भारी।
चारि सुत, नहि एक ल'गमे
भाग्य की एकरे कहै छै
वा कुमार श्रवण पिता केर
शाप एहि तरहेँ फलै छै ?
उद्धरण अनेक अछि... अन्तमे उर्मिला कहैत छथि ...
बहुत बजलहुँ, बहुत दिनसँ
छल हृदय पर भार
जमल हिम् पघिलब शुरू अछि
अन्त नहि तैं धार।
आइ हमहुँ एकर पाठ कएल, विश्वास अछि जाहि तरहेँ श्रीमान योगानन्द जी कहला जे इ निश्चय भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य साधन अछि तकर किछु फलाफल तँ हमरो भेटबाक चाही।
अस्तु !

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता)
लेखिका : आदरणीया श्रीमती आभा झा
प्रकाशक : मैत्रेयी प्रकाशन,दिल्ली।
दाम: 150 टाका।
संजय झा 'नागदह'

कवि रहस्य - पाठक लोकनिक संक्षित टिप्पणी


श्री विनोद नारायण झा आ संजय झा नागदह
सर गंगानाथ झाक प्रसिद्ध आ अतिगंभीर पोथी मे सँ एक पोथी 'कवि रहस्य'क मैथिली अनुवाद साहित्यकार श्री संजय झा "नागदह" कएलनि अछि। मधुबनी मे भेंट क' अनुवादित पोथी देलनि आ बहुत रास मिथिला- मैथिली पर विमर्श भेल..!!
संजय जी ई पोथी हुनकर उच्चकोटि क चिंतन-मनन क दिशा उद्घोषित करैत अछि ...!! शुभकामना....

श्री संजय जी भारत सँ बाहर रहितहुँ मैथिली भाषा के लेल बहुत रास काज क' रहला अछि से देख बहुत आह्लादित भेलहुँ..!!
श्री विनोद नारायण झा , पूर्व मंत्री, विधायक बेनीपट्टी


श्री उदय चन्द्र झा विनोद
शास्त्रक समस्त विद्या स्थानक एकमात्र आधार काव्य थिक जे वांगमयक द्वितीय प्रभेद अछि।काव्य के एहन मानबाक कारण ई छैक जे ई गद्य पद्यमय अछि संगहि हितोपदेशक सेहो। ई काव्य शास्त्रक अनुसरण करैत अछिःः से कथा हम नहि कहैत छी , कहैत छथि मिथिलाक वरद पुत्र महामहोपाध्याय सर गंगानाथ झा अपन प्रसिद्ध भाषणक किताब कवि रहस्य मे।1928ः29 मध्य देल गेल भाषण तथा हिन्दुस्तानी एकेडमी द्वारा प्रकाशित एहि किताब पर टिप्पणी करबाक पात्रता हम निश्चिते नहि रखैत छी तथापि एतबा कहब जे ई किताब हमरा सनक लोक लेल बड उपकारक अछि तथा युवा लेखक संजय झा नागदह एकर मैथिली रूपान्तर द्वारा उपकार कयलनि अछि। प्रत्येक कवि के अवश्ये एकर पारायण करबाक चाही। एहि लेल सुन्दर अनुवादक संजय आ नवारम्भक अधिष्ठाता अजित आजाद धन्यवादक पात्र छथि।
स्वनामधन्य झा साहेब भाषणक आरम्भहि मे कहैत छथिः
जखन कखनो हमरा हिन्दी मे व्याख्यान देबाक अनुमति होइत अछि तँ हमरा बड्ड लाज होइत अछि किएक तँ असल मे हिन्दी हमर मातृभाषा नहि अछि।हमर मातृभाषा ओ मैथिली भाषा अछि जकरा दस बारह बरख पहिने तक घृणाक दृष्टि सँ नाम राखल गेल छल छीका छीकी। सर झा गछलनि अछि जे हिनक एहि भाषणक आधार रहल अछि राजशेखर कृत काव्य मीमांसा आ क्षेमेन्द्र कृत कविकंठाभरण। कविक कर्त्तव्य, कवित्व शिक्षा, कविक समय ,राजाक कर्त्तव्य, चोरी, काल समय प्रभृति नाना विषय विवेचित अछि एहि किताब मे। ठीके कहैत छथि जे कविकृत्य वेदान्तक ब्रह्म जकाँ आवागमन सगोचर होइतो सर्वव्यापी सर्वभूता न्तरात्मा अछि। स्वतःस्मरणीय झा साहेब के सादर नमन करैत संजय बाबू के एहि अनुवाद हेतु प्रशंसा करैत छी। पुस्तकक हार्दिक स्वागत।
श्री उदय चन्द्र झा विनोद 17-06-2021

श्री सुनीत ठाकुर आ संजय झा नागदह 
पचासम साहित्यिक चौपाड़ि (दिल्ली एनसीआर) 28 नवंबर 2021 (रवि दिन) सफलतापूर्वक आयोजित भेल.
हमहुँ मित्र राहुल झा जीक संग पहुँचल रही.
साहित्यिक चौपाड़ि केर हम प्रशंसक छी एवं श्रोताक रूपमे सम्मिलित हेबाक यथासंभव प्रयास करैत छी. प्रत्येक मासमें एकबेर मैथिली साहित्यानुरागी सभक संग भेंटघाॅंट सुखद रहैत अछि, एहिमे साहित्यिक चौपाड़ि खूब नीक भूमिका निभा रहल अछि.
वर्तमानमे तंज़ानिया (अफ्रिका) में कार्यरत मित्र संजय झा 'नागदह' स' हुनक बहुचर्चित पोथी "कवि रहस्य", उपहार स्वरूप प्राप्त भेल संगहि डॉ आभा झा लिखित काव्यसंग्रह "चिनबार" सेहो उपहार स्वरूप भेटल. हृदय स' आभार दुनू गोटेक, पढलाक बाद पोथीक संबंधमे किछु कहि सकब.
अशेष शुभकामना साहित्यिक चौपाड़ि केर आयोजक लोकनिके, बधाई 💐💐
श्री सुनीत कुमार ठाकुर (एडमिन - हम सब मैथिल छी)


श्री ललित नारायण झा (सम्पादक मिथिला मिरर) आ श्री अजित आज़ाद 

नवारम्भ प्रकाशनक संस्थापक श्री अजीत आजाद द्वारा महामहोपाध्याय सर गंगनाथ झाक रचित एवं अग्रज मित्र श्री संजय झा "नागदह" द्वारा अनुदित पोथी "कवि रहस्य" प्राप्त भेल। पोथी पढ़लाक बाद विशेष समीक्षा करब। बधाइ संजय बाबूकेँ!

हमर मित्र बहुत मेहनत आ तन्मयता स ई पोथी ल क आबि रहल छैथ । उम्मीद कम्मे अछि जे कवि लोकनि कवि रहस्य पर नजरि देब चाहता कारण जे सबटा रहस्य खुलि जयबाक संभावना आ डर अछि ।
ई एकटा अनुदित पोथी जे म० महो० डा० सर गंगानाथ झाक कवि रहस्य के अछि । आशा अछि जे जाहि मनोयोग सँ हमर मित्र अकरा तैयार कयने छथि ताही मनोयोग सँ साहित्यिक आ पाठक समाज अकरा पढ़त आ स्वागत करत !
--- अश्विनी कुमार तिवारी ( 14/04/2021 )

बड नीक पोथी अछि अद्भुत वर्णन अनुवाद वाह काल्हि हमरा संजय झा जी भेटि केलनि महेन्द्र मलंगिया सर आ विभूति आनन्द सर नेपालक पुर्व उप प्रधानमंत्री राजेन्द्र महतो सर आओर वरिष्ठ साहित्यकार लोकनिक जे हमरासँ भेट करै चाहैत छलखिन्ह आहो भाग्य हमर भैटघाट गपशप भेलि हिनक लोकनिक फैन हम स्वंग छी

श्री हर्ष आचार्य - १७-११-२०२१


मात्र कवि नहि , पाठक लोकनि सेहो कवि रहस्य अवश्य पढताह !! हमरा पूर्ण विश्वास अछि । हम सोझ गप बुझैत छी , नहि पढताह तँ कविता आ निंघेसमे अन्तर कोना करताह ? तैँ अवश्य पढबाक चाही 🙏 ---नीरज कुमार 'नीरज' 14-04-2021


"कवि रहस्य " पढ़ैत ...... पढ़बाक हेतु सोचब कि पोथी अहाँक लग हाजिर .... कोनो कोनमे रही ,बस एक फोन ..व्हाट्सएप्प पर्याप्त । एक नहिं अनेक युवक, प्रकाशक आब व्यावसायिक दृष्टिसँ एहि दिस झुकलाह अछि। सेवा ,व्यावसायिकताक संग ... निस्संदेह एक सफल डेग ... तैं ने हजारियोबागमे ...… अनुवादक Sanjay Jha जीकेँ बधाइ . -
हितनाथ झा 23-06-2021


महामहोपाध्याय सर गंगानाथ झा जी द्वारा लिखित "कवि रहस्य" जेकर मैथिली अनुवाद आदरणीय Sanjay Jha भैया द्वारा कैल गेल पोथी आई प्राप्त भेल। विषय-वस्तु पढ़ी अवलोकनक संग एक बेर फेर उपस्थित भs सब टा सार संक्षिप्त में प्रस्तुत करब। - रौशन मैथिल 22-07-2021




Sanjay Jha thanks for such a lovely gift, Kavi Rahasya by Sir Ganga Nath Jha a true master piece, brother you have big shoes to fill, will review soon. Good look for your future. #कविरहस्य अनुवाद बेतरीन रचना के लिए अहां के बहुत बहुत धन्यवाद। गंगानाथ जी के कवि रहस्य अपने आप में एक अद्भुत रचना छी। उनकर रचना स न्याय, अपने आप में बड़का बात छी। बहुत जल्द एकर समीक्षा प्रस्तुत करई के कोशिश करब। भविष्य लेल अहाँ के बहुत बहुत शुभकामना। - प्रवीण भरद्वाज -10-07-2021


श्रीमती आभा झा 

.
..................कवि रहस्य..................
.तर्केषु कर्कशधियो वयमेव नान्य:
.काव्येषु कोमलधियो वयमेव नान्य:
‌ .कान्तासुरंजितधियो वयमेव नान्य:
.कृष्णे समर्पितधियो वयमेव नान्य:
श्री जयदेव
भगवती भारतीक कृपा सॅं दू-चारि भाषाक क..ट...बुझैत छियैक, किछु- किछु टेढ़-बाकुल लिखियो लैत छियैक। हॅं,पढ़बाक सौख सभदिन सॅं रहल अछि,एखनहुॅं अछि।एहि क्रम मे पुस्तक सभकेॅं अकानैत रहैत छी। सोशल मीडिया-पटल पर महामहोपाध्याय सर गंगानाथ झाजीक कविरहस्यक मैथिली-अनुवाद अभरल आ श्री अजित आजादजीक प्रसादात् हस्तगत भेल।

काव्यक उत्पत्ति कोना होइत छैक,एहि संबंध मे आचार्य मम्मट कहने छथिन-
"शक्तिर्निपुणता लोक काव्यशास्त्राद्यवेक्षणात्
काव्यज्ञशिक्षयाभ्यास इति हेतुस्तदुद्भवे।।"
अर्थात् प्रतिभाशक्ति,लोकशास्त्रक अवेक्षण आ अभ्यास सॅं काव्यक उद्भावना स्वीकार करैत छथि , आचार्य दण्डी नैसर्गिक प्रतिभा,अभ्यास,शास्त्रक ज्ञान आ लोक व्यवहारकेॅं काव्यक उत्पत्तिक कारण बुझैत छथिन, आचार्य वामन आ भामह जन्मजात प्रतिभा सॅं काव्यक सृजन संभव मानैत छथिन आ राजशेखर प्रतिभा (कारयित्री&भावयित्री), व्युत्पत्ति आ अभ्यासकेॅं काव्यक माध्यम मानैत छथिन।
जॅं कवि जन्मजात प्रतिभेटा सॅं किं वा अभ्यासे टा सॅं होइत अछि,त' ओकर रहस्य की? एहि विषयक चिन्तन केॅं काव्यमीमांसा आ कण्ठाभरण केॅं आधार बनाए महामहोपाध्याय अपन वैदुष्यपूर्ण दृष्टि सॅं अभिव्यक्ति देलखिन आ एहि गंभीर विद्वत्तापूर्ण विषयकेॅं सर्वजन- बोधगम्य बनयबा लेल श्री संजय झा जी एकर मैथिली अनुवाद कए श्लाघ्य काज केलनि अछि। आदरणीया शेफालिका वर्माजीक शुभाशंसा आ आशीष पोथीक गरिमा बढ़ा रहल अछि।

नवारम्भ-प्रकाशन सॅं आयल ई पोथी लेखनक ओहि दिशा दिसि संकेत कए रहल अछि जे प्राचीन काव्यशास्त्रीय अवधारणाक सार्वकालिकता आ सार्वभौमिकता दिसि आकृष्ट होइत अछि आ ओतए सॅं सारतत्व लए अभिनव सृजन मे प्रवृत्त होइत अछि।
श्री संजय जीकेॅं एहि कृति लेल भूरिश: अभिनन्दन संग बधाई,सभ भाषा,सभ विधा तथा सभ शैलीक रचनाक समावेशी प्रकाशन-प्रवृत्ति लेल श्री अजित आजादजीकेॅं साधुवाद।
जयतु मैथिली
आभा झा
१५.८.२०२१

श्री अमर जी झा 
DLF निवासी श्री संजय झा जी द्वारा महामहोपाध्याय डॉ गंगा नाथ झा कृत ग्रन्थक मैथिली भाषा में अनुवादित कवि-रहस्य नामक पोथी पढि मन अत्यंत हर्षित भ गेल।
संजय जी मैथिली आ मिथिला के प्रति समर्पित छैथ। विद्वानलोकैन अनुवाद कार्य के अधिक दुरूह मानैत छथि कारण जे ओहि में अनुवादक परतंत्र आ बांहल रहैत छथि। मूल सृजनकर्ताक मनोभावक अनुसरण केनाई परिवर्तित देश काल स्थिति में सेहो अनिवार्य रहैत छैक। मौलिकता के अक्षुण्ण रखनाई आवश्यक रहैत छैक। मैथिली साहित्यक जतैक परिचय आई धरि भेटल छल, ओहि में इ पहिल काव्यशास्त्रीय वा लक्षणग्रन्थ देखल। अनुवादक विद्वान यद्यपि वाणिज्यक छात्र छैथ, मुदा अगाध साहित्य प्रेमी छैथ। हिनकर ई कृति देखि मन गदगद भ गेल। हिनकर ई अमरकृति देखि आत्मग्लानि सेहो भ रहल , जे हमरा सभ झूट्ठौं के मैथिल छी असली काज त यैह केलैन्ह ,जे दीर्घकालिक रहतै। हम सब त दैल -भात -आलूसन्ना पाबि दिन - रैत फोंफियाईत रहैत छी । संजय जी के कोटि-कोटि शुभकामना , बधाई आ प्रणाम। मां सरस्वतीक सदिखन हिनकापर कृपा बनल रहैन्ह । जय मिथिला, जय मैथिली। 🙏💐सादर @ श्री अमर जी झा
27-07-2025


श्री हेमन्त झा आ संजय झा नागदह 


श्री महेश डखरामी जी  




कविरहस्य
 केर मैथिली अनुवादक आ हमर परम मित्र श्रीमान संजय बाबू के प्रकट दिवसक ढाकिए सूपे बधाई


बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी