शनिवार, 2 अगस्त 2025

शीघ्र आबि रहल अछि - 'प्रकृति' मैथिली कविता संग्रह

 शीघ्र आबि रहल, स्नेहाशीषक आकांक्षी।


दादी - पोता

वो एक करुण स्वर
सुनकर मुझको
कंपन सी हो जाती है

जब कंपकाए होठों से
दादी मेरी कहती थी
दादा तेरा मुझे छोड़कर
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।


सुन धैर्य से उनकी बातें 
हृदय हुआ करता था घायल
फिर डपट कर बड़े प्यार से
कहता बुढ़िया तूं है पागल

बोल तुझे किस कष्ट ने मारा
हम सब हैं न तेरा सहारा।

दादी फिर सहम कर बोली
है तो नहीं कष्ट कुछ मुझको
लेकिन तुम नादान है पोता 
नहीं समझ सकोगे इसको।

मैने कहा तुम चिंता मत कर
कुछ भी हो कहो तुम डटकर
भरोस रख तूं बुढ़िया मुझपर
कष्ट नहीं फटकेगी तुझ पर।

दादी को मैं खास रखने को 
सबको अक्सर कहता था
अच्छी कपड़े अच्छा बिस्तर
सब कुछ अच्छा रखता था।


पर फिर भी एक बात वो अक्सर 
रोक नहीं पाती थी..
खुद से बातें करके बोलती
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।

कष्ट उसे जब कभी देखता
किसी कारण गर होता था
झूठ नहीं, कसम राम की
मेरा मन तो रोता था।

दादी पोता का संबंध 
बड़ी अटूट सा होता है
जब छोड़ी वो अंतिम सांस
मैं फुट फूट कर रोया था।


@संजय झा नागदह'  
26-12-2024

उठनि पित्ताशय दर्द

परार तँ सभदिन ठानए
जतेक भ' सकैए राड
अपन तँ अपने लोक
बेबक्त करथि अरारि।
रहनि सदैब दुरा दरबज्जा
बरु कतबो बेपर्द
आस पड़ोस उपयोग कनेको
उठनि पित्ताशय दर्द।
आनक गाइड़ माइर
एहन लोककेँ लागनि मिट्ठ
अपन लोकक सिनेह सेहो
लागनि गनपसारनि सन तीत।
अपन मुंह कतेक छन्हि फूजल
ताहि पर हो नञि कोनो बात
दोसरा मुदा सदैब लगा राखै
अपना पर सदिखन टाट।

@संजय झा 'नागदह' 

29-12-2024

शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

अनुशासन

चाहे होथि धनाढ्यक संतति
वा कि निर्धनकेँ होए
अनुशासन बिना शिक्षाकेँ
एक रति नञि मोल।
बिना नूनकेँ तीमन तरकारी
जहिना रहैछ बेसुआद
तहिना अनुशासन ओ संस्कार बिन
शिक्षितोंमें देखना जाइत अभाव।
अशिक्षितों संस्कार संग
भेटत जखन ठाढ़
मोन देखि होइत अछि पुलकित
हृदय उठैत अछि सिनेहक बाढ़ि।
शिक्षाक संग संस्कारोमे
देल करु उचित मात्रामे नून
तखन देखब कियो नञि कहत
सभा मध्य अहाँकेँ मधनून।
@ संजय झा 'नागदह’

30-12-2024

चरिपतिया

चेतन अवस्था मे रहितहुँ
चेतनासँ दूर मनुक्ख
जीवन भरि अचेते
अवस्था मे रहैत अछि।

@संजय झा 'नागदह' 

02-Jan-2020

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी