चाहे होथि धनाढ्यक संतति
वा कि निर्धनकेँ होए
अनुशासन बिना शिक्षाकेँ
एक रति नञि मोल।
अशिक्षितों संस्कार संग
भेटत जखन ठाढ़
मोन देखि होइत अछि पुलकित
हृदय उठैत अछि सिनेहक बाढ़ि।
शिक्षाक संग संस्कारोमे
देल करु उचित मात्रामे नून
तखन देखब कियो नञि कहत
सभा मध्य अहाँकेँ मधनून।
@ संजय झा 'नागदह’
30-12-2024
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