सुनकर मुझको
कंपन सी हो जाती है
जब कंपकाए होठों से
दादी मेरी कहती थी
दादा तेरा मुझे छोड़कर
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।
सुन धैर्य से उनकी बातें
हृदय हुआ करता था घायल
फिर डपट कर बड़े प्यार से
कहता बुढ़िया तूं है पागल
बोल तुझे किस कष्ट ने मारा
हम सब हैं न तेरा सहारा।
दादी फिर सहम कर बोली
है तो नहीं कष्ट कुछ मुझको
लेकिन तुम नादान है पोता
नहीं समझ सकोगे इसको।
मैने कहा तुम चिंता मत कर
कुछ भी हो कहो तुम डटकर
भरोस रख तूं बुढ़िया मुझपर
कष्ट नहीं फटकेगी तुझ पर।
दादी को मैं खास रखने को
सबको अक्सर कहता था
अच्छी कपड़े अच्छा बिस्तर
सब कुछ अच्छा रखता था।
पर फिर भी एक बात वो अक्सर
रोक नहीं पाती थी..
खुद से बातें करके बोलती
खुद तो हंसकर चले गए
रहा नहीं मै किसी काम की
इधर उधर हैं भटक रहें।
कष्ट उसे जब कभी देखता
किसी कारण गर होता था
झूठ नहीं, कसम राम की
मेरा मन तो रोता था।
दादी पोता का संबंध
बड़ी अटूट सा होता है
जब छोड़ी वो अंतिम सांस
मैं फुट फूट कर रोया था।
@संजय झा नागदह'
26-12-2024
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