शनिवार, 2 अगस्त 2025

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता) -पाठकीय


पोथी दिनांक 30 नवम्बर 2024 क' बुराड़ी विद्यापति समारोह स्थल सँ मैत्रियी प्रकाशनक स्टॉल सँ खरीदल। सबसँ पहिल बात जे लेखिका सँ एक दिनक भेंट आ हिनक विद्वता सँ कने परिचित छलहुँ तैं मोनमे भेल जे हिनक लिखल पोथी आ ताहूमे उर्मिलाक मन - कल्पनाक भावना पर केन्द्रित पोथी अवश्य पढ़ि जाहि सँ हमरो किछु ज्ञान मार्जन होए।
आइए कने समय भेटल तँ प्रारम्भ कएल । एहि पोथी पर आशीर्वचन श्रीमान भीमनाथ झा देने छथि।
भूमिकाक स्थान पर प्रयुक्त शब्द पुरोवाक् देखल। हम प्रायः पोथी पढ़बाक शुरुआत एहिठाम सँ करैत छी।
पोथीक भूमिका श्रीमान योगानन्द झा, लहेरियासराय जाहि तरहेँ लिखने छथि ताहि तरहक भूमिका अनन्य मैथिली पोथी सबहुँमे बिरलैके अभरैत अछि। कहैत छथि " प्रस्तुत कथाकाव्य 'बजितथि जँ उर्मिला' रामकथाक एक गोट विशिष्ट पात्रीक कल्पनाप्रसूत व्यथा- कथा पर आधारित अछि। एहिमे उर्मिलाक माध्यमे रामकथाक वाचन कराओल गेल अछि। अत्यन्त संक्षिप्त होइतहुँ ई काव्य सहृदय हेतु मर्मस्पर्शी अछि आ ब्रम्हानंद सहोदरक भुक्तिक संगहि भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य संसाधन अछि। ई काव्य आभा झाकेँ अपन दिव्य ओ भव्य संस्कृतिक संरक्षिकाक रूपमे अवश्य प्रतिष्ठापित करतन्हि"। हम तँ अल्पज्ञ छी तथापि हिनक कथन सँ सहमति रखैत छी।
जिज्ञासा बढ़ैत गेल। श्रीमती आभा झाक भावांजलि होइत आरम्भ कएल 'बजितथि जँ उर्मिला' क पाठ ।
किछु उद्धरण देखल जाए..
आन जीव बस सुख-दुःख
भावेटा सँ, व्यक्त करै ई तथ्य
अश्रु धेनु केर, कानब श्वानक
पीड़ा किन्तु न प्रकटित कथ्य।
तदपि मनुजमे भेद बहुत अछि
वृत्ति गुणें ओ पाबय मान
हित समष्टि जे त्यागय निजसुख
कालातीत ओकर सम्मान।
जे समाज कल्याणक वेदी
पर निज सुख कएलनि उत्सर्ग
युग पर युग बीतय बरु तनिकर
अमल यशक कायम उत्कर्ष।
एतय किन्तु प्रख्यात नै छथि जे
टोही हुनको मनकेँ आइ
राजभवन नहि, अन्तः पुर-
वासिनीक मनमे की औनाइ।
हम सुनयना, जनक केर
औरस सुता छी उर्मिला
प्रथम पुत्री होइतहुँ
छी ख्यात हम सीतानुजा।
द्विरागमनक अवसर पर, जखन चारु बहिन जनकपुर एलीह...
किंतु सुख वेला क्षणिक
त्रुटि किछु समंधक मूल छल
किंवा विदा केर बेरमे
अतिशय प्रबल दिक्शूल छल।
राज्याभिषेकक समयक के भाव व्यक्त क' रहलीह, से देखु....
छथि भरत दुइ भाई नहि
एहि सुखद अवसर खेद अछि
योग राजक शुभ एखन
नक्षत्र - ग्रह - गति तेज अछि।
धड़फड़ीमे कएल निर्णय
नहि सुखद कहियो रहल
राम सन युवराज कोमल
काननक कष्टे सहल !

वन गमनक उपरान्त दशरथ प्राण तेजल, तकर संदर्भमे देखू...
हाय! भेलै एहि अवधमे
दृष्टि शनि केर घोर कारी
पुत्र- पुत्र करैत भूपति
वरण कएलनि मृत्यु भारी।
चारि सुत, नहि एक ल'गमे
भाग्य की एकरे कहै छै
वा कुमार श्रवण पिता केर
शाप एहि तरहेँ फलै छै ?
उद्धरण अनेक अछि... अन्तमे उर्मिला कहैत छथि ...
बहुत बजलहुँ, बहुत दिनसँ
छल हृदय पर भार
जमल हिम् पघिलब शुरू अछि
अन्त नहि तैं धार।
आइ हमहुँ एकर पाठ कएल, विश्वास अछि जाहि तरहेँ श्रीमान योगानन्द जी कहला जे इ निश्चय भवरोगसँ मुक्तिक सुसेव्य साधन अछि तकर किछु फलाफल तँ हमरो भेटबाक चाही।
अस्तु !

पोथी : बजितथि जँ उर्मिला ( मैथिली दीर्घ कविता)
लेखिका : आदरणीया श्रीमती आभा झा
प्रकाशक : मैत्रेयी प्रकाशन,दिल्ली।
दाम: 150 टाका।
संजय झा 'नागदह'

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