शनिवार, 16 जनवरी 2016

कल्पना के कल्पना

सदिखन रहैत छी 
कल्पना कें कल्पना में 
कखनो याद मे
त कखनो ख्याल मे
सोचैत छि सुतियो रहि 
ओकरे कल्पना मे

मोन त करैया दौड़ जाई 
कल्पना स उठि क'
भेंट क ली सद्यः 
करू कि ? विडम्बना एहन अछि 
जकड़ी गेल छी  बिना बेड़ी के 
ऐना, 
जेना, स्वामी में विरह में 
प्रति - पल आरती जकां जरैत
किनको पत्नी अपन पति के भला
ऐना - केना बिसरि जेती 
जेना, रात्रि भेला पर सूर्य आकाश सं
विलीन भ जाइत छथि
अवस्था हमर ओहू सं बेसी ख़राब अछि
कारन, 
हाल एहन अछि 
जेना, अजायब घर में राखल प्रतिमा 
ने हिल सकैत छि, ने डोईल
सब किछु समा गेल अछि 
कल्पना के कल्पना में ।

संजय कुमार झा "नागदह" 
दिनांक: 03/09/2013







      

आप कब आओगे ?

रास्ते चलते - चलते आँख अपना काम तो वेहीचक करता ही है, चाहे कुछ अच्छा दिखे या बुरा । आँख तो देखने का ही काम करता है, देखने मात्र से तो कुछ नहीं होता, होता है तो तब, जब देखने के बाद जब ये मन और ह्रिदय को छू जाती है । चाहे कुछ अतिसुंदर,बदसूरत, ख़राब,घटना, दुर्घटना, कुछ भी  दिखे असर तो सब में ही होता है । इसमें आँख का दोष क्या ? किसी भी घटना का जिम्मेदार कोई स्थान नहीं होता, होता है तो इसका रखवार,इसका देखभाल करने बाला। वैसे आजकल सभी नगर और महानगर में , पार्क के आस-पास, सड़क पर ,कार में , दू पहिया वाहन पर , और यहाँ तक की पब्लिक पैलेस पर भी युगल जोड़ी एक -दुसरे से ऐसे चिपके रहते हैं की आँख पड़ने मात्र की देर है । फिर शालीन से शालीन लोगो  की भी आँख देखते ही देखते रह जाती है , और मन ही मन अपने नजरिये से आलोचना करते हुए निकल जाते है । ऐसे में युगल जोड़ी भी खतरे में और राही/दर्शक भी, लेकिन संभालना किसे है । जोड़ी को या राही को? किसको समझाए दोनों के पास मन ही तो है जो काबू में नहीं है, ऐसे में दुर्घटना का होना तो स्वाभाविक ही है । पर ऐसा भी नहीं की सडको पर दुर्घटना सिर्फ इसी तरह के कारण से होता है, और भी अनेक कारण हो सकता है। क्या सभी युगल जोड़ी एकांत हो जाय तो घटना रूक जायेगा? नहीं , ऐसा संभव नहीं है ।
 बहुत सी ऐसी सुन्दर बाग़, इमारत, सुंदर चीजे, सुन्दरी, दिखाई देती है जिससे लोगो का ध्यान भंग होता है, ठीक इसके विपरीत अगर कोई बदसूरत, कुरूप, अधिक मोटा-मोटी, घटना और दुर्घटना भी रास्ते में दिखती है जिससे ध्यान भंग होता है, जिसके कारण दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है । जरुरत है सड़क पर एकाग्रता की , सड़क पर ध्यान रखने की , परिवहन के नियमो का पालन करने की जिससे आप सकुशल घर पहुँच सकते है । क्योकि घर पर आपका कोई इंतज़ार करता है ,और मन ही मन पुकारता रहता है , आप कब आओगे ?
संजय कुमार झा "नागदह" 

Dated : 07/08/2013

एक जुट होउ मिथिलावासी, तखनहि बनत मिथिला राज्य

एक जुट होउ मिथिलावासी, तखनहि बनत मिथिला राज्य 
आ नहीं, त अपने में होईत रहु विभाज्य ।  

आ करैत रहु, हमरा चाही मिथिला राज्य 
हमरा चाही मिथिला राज्य, हमरा चाही मिथिला राज्य। 

मिथिला के भविष्य त, उठाये लेने छथि जगदीश 
आबो त सब मिलि - जुलि क, हाथ जोड़ी नवाऊ शीश । 

जतेक संघ आ पार्टी, सब अपने -अपने करैत रहु तीन - पांच 
ऐना जां करैत रहब,  त कखनो नै मिळत घांच । 

बेसी हम की कहु, अपने सब छि बड्ड बुझनुक 
कनी ओहो, कनी तोंहू, कनि कनिक सब झुक । 

जे सब एहि काज में झुकबहक, तकरे नाम उठ त'
आ नहि, त सबटा कबिलपंथी घुसरि जे त' । 

एतै कियो वीर बहादुर, सब के कर जोड़ी निहोरा करत 
आ मिथिला के लोक के, एक जुट करैत, राज्य बनेबे टा करत । 

फेर पुछै छि, बात बुझै छि ? केना बनेबई मिथिला राज्य 
एक जुट होउ मिथिलावासी, तखनहि बनत मिथिला राज्य।  

संजय कुमार झा "नागदह"  

01/09/2013

ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन

ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन
आब बुझैया भारतक हालत, भ गेल छै कंगाल सन 
चुनाव लड़ई लेल ठाढो होई छै, सबटा चोर उच्चका सन 
ककरा राखु, ककरा छोरु, विधिना भ गेल वाम सन 
मोन त होईया, तेना हटाबी, मडुआ सन किछु पटुआ सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

स्वतंत्रत भेला पर देश ख़ुशी भेल, ख़ुशी होयते फेर दुखी भेल 
नहि बितल किछुओ दिन, देश दू भाग तत्क्षण बटी गेल
बटिते देरी खून खारापा, कतेक मरि गेल कतेक कटी गेल 
ख़ुशी के आँशु दुखी में बटी गेल, कतेक घर के नामोनिशान जे मिटी गेल 
देश के किछु भागक हालत, भ गेल छल श्मशान सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

माछ भात के बात त छोडू, सागक नै अछि कोनो जोगार
देशक हालत एहन अछि केने, मंहगी चढ़ल अछि बीचे कपार
बाज़ार आ हाटक नामे सुनि क, पकडैत छि अपन कपार 
नेता आ राजनेता सब के, नै छनि किनको एकर विचार 
इ सब सोची माथ काज नै करैया, भ गेल छि सुन्न अकान सन  
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

पहिले जे छल देशक हितगर, नाम ओकर छल सेनानी 
आब कियो छथि एही तरहक ? जकर होई कियो दीवानी 
हिनकर सबहक हालत देखि क, मोन करैया खूब कानी 
अपना लेल इ सब खूब कमेला, जनता चाहे भरै पानी 
आब कहु मोन केहन लगैया ? लगैया उजरल बांग सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

संजय कुमार झा "नागदह" 
दिनांक : 04/09/2013


published in appan mithila jan 2014

अप्पन मिथिला, पत्रिका , फरवरी -२०१४ में छपल अछि १. कविता - ककरा कहबई के सुनतै सब लागइ बाहिर अकान सन,  आ २. पाग सम्मान नहि अपितु संस्कारो  ,Written By: Sanjay Kumar Jha "Nagdah" (ME)




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2014-03-02
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हे माय तोरा प्रणाम

 उठ रौ बौआ , उठ रौ बेटा
भ' गेलै आब भोर 
कतेक करबै आब तु देरी 
सूर्यो भेलथि इन्होर ।

जाउ नहाउ आ जल्दी सँ आउ
जलखै भ' गेल ठंढा  
झटपट आहाँ पहिर लिअ 
पेंट, जूता ओ अंगा 

उठाऊ झोड़ा, जाउ पाठशाला 
नै त' लागत डंडा
मुँहक बोल छै कड़गर ओकर 
ह्रदय बहाई छै गंगा ।

बोली बचन जूनि पुछु, कखनो रसगुल्ला 
तँ कखनो , तितगर नीमक पात सन 
एक रति जौं कष्टमे देखत 
छड़पटाय लागत - बिन पाइनक ओ माछ सन ।

उम्र हमरो आब बहुत भेल 
भ, गेलहुँ हम जवान 
तैयो ओकरा एहने लगए छै 
इ अछि एखनो अज्ञान।

आब बुझाइया,
किया बुझैया इ हमरा अज्ञान 
ठेंसो जखन हमर पुत्रकें लागय 
निकलि जाइत अछि प्राण ।

हे माय तोरा प्रणाम !! हे माँ तोरा प्रणाम !! हे माँ तोरा प्रणाम !!!


संजय झा "नागदह"

 DATED 12/09/2014

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

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