Friday, 15 January 2016

ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन

ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन
आब बुझैया भारतक हालत, भ गेल छै कंगाल सन 
चुनाव लड़ई लेल ठाढो होई छै, सबटा चोर उच्चका सन 
ककरा राखु, ककरा छोरु, विधिना भ गेल वाम सन 
मोन त होईया, तेना हटाबी, मडुआ सन किछु पटुआ सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

स्वतंत्रत भेला पर देश ख़ुशी भेल, ख़ुशी होयते फेर दुखी भेल 
नहि बितल किछुओ दिन, देश दू भाग तत्क्षण बटी गेल
बटिते देरी खून खारापा, कतेक मरि गेल कतेक कटी गेल 
ख़ुशी के आँशु दुखी में बटी गेल, कतेक घर के नामोनिशान जे मिटी गेल 
देश के किछु भागक हालत, भ गेल छल श्मशान सन 
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

माछ भात के बात त छोडू, सागक नै अछि कोनो जोगार
देशक हालत एहन अछि केने, मंहगी चढ़ल अछि बीचे कपार
बाज़ार आ हाटक नामे सुनि क, पकडैत छि अपन कपार 
नेता आ राजनेता सब के, नै छनि किनको एकर विचार 
इ सब सोची माथ काज नै करैया, भ गेल छि सुन्न अकान सन  
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

पहिले जे छल देशक हितगर, नाम ओकर छल सेनानी 
आब कियो छथि एही तरहक ? जकर होई कियो दीवानी 
हिनकर सबहक हालत देखि क, मोन करैया खूब कानी 
अपना लेल इ सब खूब कमेला, जनता चाहे भरै पानी 
आब कहु मोन केहन लगैया ? लगैया उजरल बांग सन
ककरा कहबई के सुनतै, सब लागई बहिर अकान सन ।

संजय कुमार झा "नागदह" 
दिनांक : 04/09/2013


published in appan mithila jan 2014

अप्पन मिथिला, पत्रिका , फरवरी -२०१४ में छपल अछि १. कविता - ककरा कहबई के सुनतै सब लागइ बाहिर अकान सन,  आ २. पाग सम्मान नहि अपितु संस्कारो  ,Written By: Sanjay Kumar Jha "Nagdah" (ME)




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2014-03-02
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