रविवार, 17 जनवरी 2016

जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि

जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि - कनि ध्यान सँ पढब.
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एक दिन दू आदमी के झगड़ा होइत रहैक।  जकर गलती रहइ से ओहि ठाम उपस्थित लोक के कहय - जे एकर बात पर (जकरा सँ झगड़ा होइत रहैक तकरा बारे में ) हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि।  ओहि लोकक बीच में एकटा पंडीजी सेहो रहथि , ओ कहनलनि बौआ जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि।  इ बात इ कतेको बेर कहलाह आ जिनका कहथि ओ बेर बेर एकेटा बात कहथि - हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि।  पंडीजी बाद में ओहि ठाम सँ चलि गेलाह।

                                             ------------संजय झा "नागदह"
                                                               05/07/2014

ओहिना नै होइत छैक

ओहिना नै होइत छैक 
अन्हरिया में इजोत करबाक लेल 
दिया में तेल आ बाती के 
संगे जरय पड़ैत छैक 
किछु पाबक लेल 
किछु त्याग करहे पड़ैत छैक
ओहिना नै होइत छैक

भारतो आज़ाद भेल 
कियो देखनहुँ हेताह
कियो सुनलो हेताह 
लोक एकजुटता लेल 
हल्ला करहे पड़ैत छैक 
किछु पावक लेल 
ओकरा पाछा परहे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

देखने हेबैक प्रायः सब गोटा
भिखमंगो के खाली कटोरा में 
भीखो कियो नहि दैत छैक 
ओकरो पहिले कटोरा में 
किछु राखहे पड़ैत छैक 
मिथिला राज्यक बात के लेल 
अलख जगाबहे पड़त
सरकार के देखाबहे पड़त 
मंगला सँ नहि 
आई- काल्हि छीन्हे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

संजय झा "नागदह"
Date - 20/07/2014

अछि हिम्मत त' देखा दिय

अछि हिम्मत त' देखा दिय
मिथिला राज्य बना दिय
नए बेसी त' अलखे जगा दिय 
जंतर मंतर पर एक आध- लाख मैथिली जुटा दिय 
अहींक गरदनि में पहिरयाब 
माला गुलाब के 
गाँव गाँव में मैथिल के अपन अधिकार के लेल 
जगा दिय 
मिथिलाक अस्तित्व अहीं त' बचा लिय

27/07/2014

क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत

अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत 
चाहे बाट चलु
या हाट रहु
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनका बारे में फोन करि
कखनो हुनका - कखनो हुनका
कियो चिंतित
कियो बेखबर 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
कियो ऐना , कियो ओना कहथि
कियो कहथि फुइस अछि 
प्रेम अहाँक 
कियो कहथि किया ऐना डुबल छी ? 
कि ओ अहाँके एकसर छी ?
हम चौंक गेलहुँ 
इ कि कहला ?
कहला त' सत्य
अपितु किछु नहि
मुदा करू क़ी ?
किछु नहि सूझि रहल 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनके धरती पर जनमल छी 
हुनके कोरा में पलल छी 
भाषा सेहो - अछि हुनके 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि अंतिम इच्छा एतवे हम्मर 
जौं प्राण देह सँ कखनो निकलय
माँ मैथिलीके हमरे सप्पत 
हुनके कोरा में प्राण छुटय
अछि अभिलाषा सदिखन एहने 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत....

संजय झा "नागदह" 
27 /07 /2014

मुलाकात नहीं हो रहे हैं

जैसे ही मैं निकल रहा था 
आप सबसे मिलने
की "दस्त" ने 
दस्तक दे दी 
कहा 
कहाँ चले मेरे रहते ?
मैंने हाथ जोड़ दिया
कहा 
जी हुजूर 
मुझ में इतना 
हिम्मत कहाँ ?
उन्ही से 
निपटने लगा हूँ 
आप चाहे तो 
निपटने का 
कुछ नुस्खा बताएं 
इनसे मैं 
कब से कह रहा हूँ 
मुझे और न सताएं 
पर क्या करूँ ?
ये जाने का नाम 
नहीं ले रहें हैं 
यही वजह है 
की
आप से मुलाकात 
नहीं हो रहे हैं
धन्यवाद
14/08/2014

समयक हस्ताक्षरः शेफालिका वर्मा

  आज मेरे पास एक अद्वितीय पुस्तक आई है—*समयक हस्ताक्षरः शेफालिका वर्मा* (मैथिली संस्करण), जिसे संकलित किया है श्रीमती कुमकुम झा एवं श्री राज...

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