Saturday, 16 January 2016

क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत

अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत 
चाहे बाट चलु
या हाट रहु
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनका बारे में फोन करि
कखनो हुनका - कखनो हुनका
कियो चिंतित
कियो बेखबर 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
कियो ऐना , कियो ओना कहथि
कियो कहथि फुइस अछि 
प्रेम अहाँक 
कियो कहथि किया ऐना डुबल छी ? 
कि ओ अहाँके एकसर छी ?
हम चौंक गेलहुँ 
इ कि कहला ?
कहला त' सत्य
अपितु किछु नहि
मुदा करू क़ी ?
किछु नहि सूझि रहल 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनके धरती पर जनमल छी 
हुनके कोरा में पलल छी 
भाषा सेहो - अछि हुनके 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि अंतिम इच्छा एतवे हम्मर 
जौं प्राण देह सँ कखनो निकलय
माँ मैथिलीके हमरे सप्पत 
हुनके कोरा में प्राण छुटय
अछि अभिलाषा सदिखन एहने 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत....

संजय झा "नागदह" 
27 /07 /2014

No comments:

Post a Comment