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सर्वतंत्रस्वतंत्र पण्डित बच्चा (धर्मदत्त) झा (1860-1921) |
[1] मिथिलामे न्यायकें धारा ईसा पश्चात् नवम शताव्दीमे जे प्रवाहित भेल ओ कोनो ने कोनो रूपमे एखनो धरि बहैत आबि रहल अछि। मिथिलामे एहि शताव्दीक प्रतिनिधि छलाह सर्वतन्त्रस्वतंत्र पण्डित धर्मदत्त झा जे बच्चा झाक सँ विख्यात भेलाह।
बच्चा झा मिथिलाक
कोरामे स्थित दरभंगा
जिलाक ‘लवाणी’ (नवानी) नामक गाँवमे
1917 वैक्रममे (1860 ई०) चैत्र शुक्ल
नवमी क'
उत्पन्न भेल
छलाह। हिनक पितामहक
नाम पण्डित
रत्नपाणि झा
छलन्हि। पण्डित
रत्नपाणि दरभंगाधीश्वर
श्रीमान रुद्रसिंह
महाराज के
राजपण्डित छलाह। हिनक आचरण
शुद्ध आ
स्मार्त साहित्यकेँ
पाण्डित्यक कारणेँ
दरभंगामे
'महर्षि' क
कोटिमे
परिणित होइत
छलन्हि। इ
किछु स्मार्त
निबंध सबहुक
रचना सेहओ
कएने छलाह। पण्डित रत्नपाणिकेँ
एकहिंटा पुत्ररत्न
भेलन्हि - पण्डित
दुर्गादत्त झा,
जे हमर
चरित्र नायकक
पिता छलाह।
हिनक नाम
' धर्मदत्त राखल
गेलन्हि मुदा
माय - बाबू
दुलारसँ हिनका बाल्यहिंकालसँ
जे ' बच्चा'
क आख्या
देलन्हि से
बादमे सर्वत्र
प्रचलित भ'
गेल।
पण्डित बच्चा
झाक प्रारम्भिक
अध्ययन अपने
घरसँ भेलन्हि।
कालान्तरमे इ
' ठाढ़ी' गामक
निवासी विद्वमुर्धन्य पण्डित विश्वनाथ
झा सँ
पढ़बा लेल
गेलाह। पण्डित
विश्वनाथ झा
एकटा लब्धप्रतिष्ठित
विद्वान् छलाह।
बच्चा झाक
महानताक सूत्रपात
अहिठामसँ
भेलन्हि। पण्डित
विश्वनाथ झा,
बनैली, नरहन,
आदि राजधानी
सबहुमे
सेहओ बजाओल
जाइत छलाह
ताहि कारणेँ
अध्यापन - कार्य
लेल यथेष्ट
समय हिनका
नहि भेट
पबैत छलन्हि।
तैं
हेतु अन्यत्र
जेबाक मोन
नहियो रहला
उत्र बाध्य
भ' क'
पण्डित
बच्चा झाकेँ
पढ़बाक लेल
दोसर ठाम
जाए पड़लन्हि। ओहि समय
मे नैयायिक
प्रवर पण्डित
बबुजन झाक
प्रसिद्धि दर्शन
शास्त्रक अध्यापनमे छलन्हि। अतएव पण्डित
बच्चा झा
न्यायदर्शन पण्डित
बबुजन झा
सँ पढ़लाह।
एकर पश्चात
इ मीमांसा,
वेदान्त आदि
अन्य दर्शन
शास्त्र सबहुक
अध्यन काशीमे स्वामी
विशुद्धानन्द सरस्वतीक
चरण - कमलक
नजदीकमे बैस
केलन्हि।
एहि तरहेँ
अध्यन समाप्तोपरांत
जखन गाम
एलाह त'
अपन गाममे
मिथिले नागरिक
प्राचीन परम्पराक
मोताबिक घरे
पर एकटा
पाठशाला स्थापित
क' छात्र
लोकनिकेँ पढ़ायब शुरू क'
देलन्हि। हिनक
विद्वता आ
अध्यापनक कुशलताक
प्रशंसा सुनि
अपन प्रान्तक
के कहै,
भारतक कोने
- कोनसँ छात्रगण
बड्ड बेसी
संख्यामे
आबि पढ़ए
लगलाह। कालिदास
जे अध्यापनक
मापदण्ड स्थिर
कएने छलाह
ओहिसँ इ
पूर्णरूपेँ सफल
भेलाह। महाकविक
मोताबिक ओहने
अध्यापक सफल
भ' सकैत
छथि जे
प्रथमतः पाण्डित्यक
आगार होथि
आ ओकरा
संग हुनकामे
विद्यासंक्रान्त करबाक
कला होइन्ह।
इ दुनू
बात पण्डित
बच्चा झामे विलक्षणरूपेँ
छलन्हि। ताहिहेतु
हिनक ख्याति
शीघ्रहिं चहुँदिशि
पसरि गेलन्हि।
एतय धरि
जे द्वारिकापीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वयं
हिनकासँ अध्ययन
करबा लेल हिनका
ससम्मान बजौलखिन
आ शिक्षा
ग्रहण केलाह।
एहि तरहेँ
पण्डित बच्चा
झाकेँ शंकराचार्यक
शिक्षक बनबाक
अद्वितीय श्रेय
प्राप्त भेलन्हि।
सूरतमे
आयोजित अखिलभारतीय
पंडितमहासभामे हिनके
मुख्य बनाओल
गेल छलन्हि।
वृत्यर्थ अध्यापन
करब हिनक
प्रवृतिक प्रतिकूल
छलन्हि।
मुदा दरभंगाधिराज
श्रीमान रमेश्वरसिंह
जीक अतिशय
अनुरोध पर
किछ दिनक
लेल धर्मसमाज
संस्कृत कॉलेज,
मुजफ्फरपुर के
प्रधानाचार्यक पद
स्वीकार केलन्हि।
दुर्भाग्यसँ
एकहिं बरखमे हिनक
देहावसान भ'
गेलन्हि।
अध्यापनक संग-
संग इ
अनेक टीकात्मक
ओ मौलिक
ग्रन्थक रचना
कयलनि। दर्शनक
पठन - पाठनमे ओहि
समय प्रचलित
प्रायः सब
ग्रन्थ पर
अपन टिपण्णी
केलन्हि। मात्र
दार्शनिक - साहित्य
नहि अपितु
विशुद्ध साहित्य
सबहुक रचना
सेहओ कएलन्हि।
मुदा हिनक
प्रतिभा मूलतः
भावयित्री होएबाक
कारणेँ हिनकर
काव्यमे
पाण्डित्यक सेहओ
प्रकाशन होइत
छल। हिनक
ग्रन्थ 'सुलोचना
माधवचम्पू' दुर्भाग्यवश
अद्यावधि अप्रकाशित
छन्हि।
ओहिमे एकटा श्लोक
अछि -
श्यामेयं सुषमेन्धनं सुरभिणा सन्धुक्षितं वायुना।
कुर्वन्तं जगदुज्ज्वलं प्रसृतया सज्जयोत्स्रया धूम्यया।
सम्पाद्यातनुमग्रि मुज्ज्वलविधु भ्राष्ट्रअङ्गकपोलेS घ्वग -
प्राणान भर्जतऋक्षलाजनिकरो यद् दृश्यते खेंगने।।
को नाम
तीव्रपवनागममंतरेण
भेदेन वेति
शिखिदीप मणिप्रदीपौ
।।
'मालविकाग्निमित्र'
मे परिवाजिकक
कहब छनि
जे आचार्यक
परीक्षा विद्यार्थी
सभक योग्यताकेँ
माध्यमसँ होइत
अछि। पण्डित
बच्चा झाक
अत्यन्त विख्यात
शिष्य परम्परा
हिनक यशपाताकाकेँ
अद्यावधि फहरा
रहल छन्हि।
(सन्दर्भ दोसर ) महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक सिंहासनारोहणक बहुत दिन बाद धरि धौत परीक्षा नहि भेल छल। ई परीक्षा दरभंगा राजक संस्थापक श्री महेश ठाकुर द्वारा प्रारम्भ कएल गेल छल आ’ एहिमे मौखिक परीक्षा द्वारा श्रेष्ठ पंडितक चयन कएल जाइत छल। महाराज रमेश्वर सिंह एकर आयोजन करबओलन्हि आ’ श्री गंगानाथ झाकेँ एकर दायित्व देल गेलन्हि । श्री गंगानाथ झा परीक्षार्थीक रूपमे सेहो आवेदन कएने छलाह। महाराज परीक्षाक हेतु लिखित पद्धतिक आदेश देने छलाह। प्रश्निक नियुक्त्त भेलाह श्री बच्चा झा आ’ श्री शिव कुमार मिश्र। ई दुनू गोटे क्लिष्ट प्राश्निक आ’ कृपण परीक्षक मानल जाइत छलाह। मुदा ताहि पर श्री गंगानाथ झाकेँ 200 मे 197 अंक भेटलन्हि। महाराज पुरान परम्पराक अनुसार हिनका धोती तँ देलखिन्ह, मुदा नवीन पद्धतिक अनुसार दुशाला नहि देलखिन्ह, कारण संस्कृतक विद्वान् होयतहुँ श्री गंगानाथ झाक झुकाव अंग्रेजी प्रति सेहओ छलन्हि । श्री बच्चा झा प्रकाण्ड पण्डित छलाह। महाराष्ट्र आ’ काशीक पण्डितक प्रसंगमे ओ’ कहैत छलाह जे शब्द खण्डक प्रसंगमे ओ’ सभ किछु नहि जनैत छलाह। ओहि समयमे महामहोपाध्याय दामोदर शास्त्री काशीक एकटा प्रसिद्ध वैयाकरण छलाह। विद्वान लोकनिक सुझाव पर दरभंगा महाराज गुरुधाममे एकटा पंडित सभाक आयोजन कएलन्हि। एहिमे हथुआ महाराज विशिष्ट अतिथि छलाह। काशीक सभ प्रमुख विद्वान एहिमे उपस्थित छलाह। प्रतियोगी छलाह पं.बच्चा झा आ’ म.म. दामोदर शास्त्री भरद्वाज। निर्णायक छलाह पं.कैलाश शिरोमणि भट्टाचार्या आ’ म.म.पं शिव कुमार मिश्र। एकटा सरल समस्यासँ शास्त्रार्थ प्रारम्भ भेल। एकर नैय्यायिक पक्ष लेलन्हि बच्चा झा आ’ व्याकरण पक्ष पं दामोदर शास्त्री।
दामोदर शास्त्री अपन जवाब अत्यंत सरल शब्दमे वैयाकरणिक आधार पर द’ देलन्हि। आब बच्चा झाक बेर आयल। बच्चा झा गहन परिष्कार प्रारम्भ कएलन्हि। विद्वान लोकनिमे विवाद भेलन्हि जे हुनकर प्रश्न प्रासंगिक छन्हि वा नहि। निर्णायक लोकनि एकरा प्रासंगिक मानलन्हि। जौँ-जौँ बच्चा झा आगू बढ़ैत गेलाह हुनकर उत्तर दामोदर शास्त्री आ’ निर्णायक लोकनिक हेतु अबोधगम्य होइत गेलन्हि। मध्य रात्रि तक ई चलल। अन्ततः अनिर्णीत राखि कए सभा विसर्जित भेल।
सन् 1886 ई. केर गप छी। एकटा पुष्करिणीक उद्घाटनक उत्सवमे दामोदर शास्त्री जी काशीसँ मिथिलाक राघोपुर ग्राममे निमंत्रित भेल छलाह। ओतय हुनकर शास्त्रार्थ परम्परानुसार बच्चा झाक विद्यागुरु ऋद्धि झासँ भेल छलन्हि। एहिमे ऋद्धि झा परास्त भेल छलाह। गुरुक पराजयक प्रतिशोध लेबाक हेतु सन् 1889 मे बच्चा झा काशी गेलाह। बच्चा झाक उम्र ओहि समयमे 29 वर्ष मात्र छलन्हि। ओ’ प्रायः दामोदर शास्त्रीकेँ लक्ष्य करैत छलाह, जे काशीक वैय्याकरणिक पण्डित लोकनिकेँ शब्द-खण्डक कोनो ज्ञान नहि छन्हि।बच्चा झा समस्त काशीक विद्वान् लोकनिकेँ शास्त्रार्थक हेतु ललकारा देलन्हि। दामोदर शास्त्रीसँ भेल शास्त्रार्थक वर्णन पछिला अंकमे कएल जा’ चुकल अछि। शास्त्रार्थ तीन दिन धरि चलल। ई शास्त्रार्थ सन्ध्यासँ शुरू होइत छल, आ’ मध्य रात्रि धरि चलैत छल।शास्त्रार्थक तेसर दिन दामोदर शास्त्री तर्क कएनाइ बन्न कए देलन्हि, आ’ श्रोताक रूपमे बच्चा झाक तर्क सुनैत रहलाह। पं शिवकुमार शास्त्री आ’ कैलाशचन्द्र शिरोमणि दू टा निर्णायक छलाह। शिरोमणिजीक दृष्टिमे वादी श्री बच्चा झाक पक्ष न्यायशास्त्रक दृष्टिसँ समुचित छल। शिवकुमारजीक सम्मतिमे प्रतिवादी श्री दामोदरशास्त्रीक पक्ष व्याकरणक मंतव्यानुसार औचित्यसम्पन्न छलन्हि।दुनू पण्डितक शास्त्रार्थ कलाक संस्तुति कएल गेल आ’ दुनू गोटेकेँ अपन सिद्धान्तक उत्कृष्ट व्यवस्थापनक लेल विजयी मानल गेल।
बच्चा झाजीकेँ समालोचकगण किछु उदण्ड आ’ अभिमानी मनबाक गलती करैत रहलाह अछि। मुदा एकटा उदाहरण हमरा लगमे एहन अछि, जाहिसँ ई गलत सिद्ध होइत अछि।
ई घटना एहन सन अछि। मुजफ्फरपुर धर्मसमाज संस्कृत विद्यालयमे बच्चा झा प्रधानाचार्य/अध्यक्ष पद पर छलाह, आ’ हुनकर शिष्य पं बालकृष्ण मिश्र ओतय प्रध्यापक छलाह। ओहि समय काशीक पण्डित-पत्रमे गंगाधर शास्त्रीक एकटा श्लोकक विषयमे बच्चा झा कहलन्हि, जे एहि श्लोकमे एकहि पदर्थ वारिधर एक बेर मृदंग बजबय बला चेतन व्यक्त्तिक रूपमे आ’ दोसर बेर वैह अम्बुद- जवनिकारूपी अचेतन रूपमे वर्णित अछि। एतय पदार्थाशुद्धि अछि। एहि पर हुनकर शिष्य बालकृष्ण टोकलखिन्ह- गुरुजी ! एहिमे कोनो दोष नहि अछि। किएक तँ वारिकेँ धारण करए बला मेघ (वारिधर) केर स्थिति आकाशमे ऊपर होइत अछि, आ’ अम्बु (जल) केँ देबय बला मेघ (अम्बुद) केर स्थिति नीचाँ होइत अछि।अतः दुनूमे स्थानक भिन्नता अछि। वारिधर आ’ वारिद एहि दुनू शब्दसँ दू भिन्न अर्थ ज्ञात होइत अछि। ताहि हेतु एतय पदार्थक अशुद्धि नहि अछि।
ई श्लोक निम्न प्रकारे छल:-
मृदुमृदङ्गनिनादमनोहरे, ध्वनित वारिधरे चपला नटी।
वियति नृत्यति रङ्ग इवाम्बुदे, जवनिकामनुकुर्वति सम्प्रति॥
स्वामी पूर्णानन्द,
स्वामी परमानन्द,
महामहोपाध्याय पण्डित
बालकृष्ण मिश्र,
पण्डित शशिनाथ
झा ( मिथिला
विद्यापीठ दरभंगा
मे दर्शनविभागक
अध्यापक ), पण्डित लक्ष्मीनाथ
झा ( काशी
हिन्दू विश्वविद्यालयमे
दर्शनविभागक प्रधानाध्यापक),
पण्डित
हरनाथ शास्त्री,
पण्डित षष्ठिनाथ
मिश्र आदि।
हिनक रचना –
1. व्याप्तिपंचक की
टीका।
2. अवच्छेदकत्वनिरुक्ति विवेचन।
3. व्युत्पत्तिवादगूढ़ार्थतत्वालोक।
4. सक्यभिचारटिप्पण।
5. खण्डनखण्डखाद्यटिप्पण।
6. न्यायभाष्यटीका।
7. सिद्धान्तलक्षणविवेचन।
8. व्याप्त्यनुगमविवेचन।
9. शक्तिवादटिप्पण।
10.
सत्प्रतिपक्ष टिप्पण।
11.
कुसुमान्जलिवर्धमानटिप्पण।
12.
अद्वैतसिद्धिचन्द्रिकाटिप्पण आदि।
संकलन - संजय
झा "नागदह"
दिनांक: 12 /12 /2017
मैथिल समाज, रहिकाक मिथिला विभूति पर्व समारोह वर्ष 2021 क स्मारिकामे छपल छल। इ समारोह 24 -25 -26 मार्च 2021 सम्पन्न भेल छल। श्री उदय चंद्र झा 'विनोद' जी एकरा स्मारिकामे जगह देने छलाह ताहि हेतु हिनका बहुत बहुत धन्यवाद।
आग्रह - पढ़लाक बाद अपन विचार अवश्य टिप्प्णीक माध्यमे पठाउ।
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