
आब एकटा असाधरण व्यक्तित्व के चर्चा करैत छी जिनका मिथिला के कहय सम्पूर्ण भारत मे शायदे कियो हैत जे हिनका नहि जनैत होयत ओ छथि म० महो० उपाध्याय डा० सर गङ्गा नाथ झा। हिनक एक समय मे देल गेल तीन टा व्याख्यान ( १९२८-२९ ) के संकलित कय एकटा हिंदी भाषा मे पोथी आयल जकर नाम छल कवि रहस्य।
आब एकटा तेसर व्यक्तित्व के चर्चा करै छी जे प्रत्यक्ष रूप सँ त अहि पोथी सँ जुड़ल नहि छथि मुदा अहि पोथी ( अनुदित ) मे सर्वत्र विद्यमान छथि आ से छथि मिथिलाक विद्वत धाराक एकटा महत्वपूर्ण स्तम्भ डा० सुभद्र झा। संजय झा हिनके गाम नागदह के छथि आ बचपन मे हिनक नेह छोह प्राप्त कयने छथि।
संजय झा अहि पुस्तक कवि रहस्य के मैथिली अनुवाद कयने छथि। अनुवाद मे जाहि प्राञ्जल मैथिली भाषाक व्यवहार भेल अछि तकर आधारभूत भाव के धार डा० सुभद्र झा सँ आबैत अछि आ संजय जी पूरा प्रयास कयने छथि यथा सम्भव सक्क भरि ओकर निर्वहन करैथ। कतहु कतहु असफल सेहो भेल हेता किएक त समयक प्रभाव भाषा पर पड़ने बिना रहि नहि सकैत अछि।
किताब के अनुवाद पर गप करी त अनुवाद के सार्थकता अही मे अछि जे अनुवादक अपना केँ अपन विचार केँ आ अपन सोच केँ विषय वस्तु सँ अलग राखथि आ जे जेना छै तकरा तहिना एक भाषा सँ दोसर भाषा मे भाषांतरण क दैथ। हमरा जतेक पढ़ि क अनुभव भेल ताहि आधार पर कहि सकै छी जे अनुवादक अपन काज मे काफी हद तक सफल भेल छथि।
विषय वस्तु के चर्चा नहि करब त अहि काजक औचित्य पूरा नहि होयत। ई अनुदित पोथी दू भाग मे बँटल अछि। पहिल भाग काव्य आ कवि के उत्पत्ति स सम्बद्ध अछि आ दोसर भाग कवि चर्या अर्थात कवि कर्म सँ सम्बंधित अछि।
सर गङ्गा नाथ झा अपन व्याख्यान मे वेद पुराण आ विभिन्न संस्कृत ग्रंथक उदाहरणक आश्रय लय काव्य के उत्पत्ति आ विकास के सोझा रखने छथि। कवि के कर्म ओकर ज्ञान ओकर अध्य्यन क्षेत्र ओकर पहिचान चिह्न आदि के विशद व्याख्या कयने छथि आ अकर अनुवाद सेहो संजय जी बहुत नीक सँ होझा ल आयल छथि।
सस्कृत के श्लोक आदि अहि अनुदित पोथी मे अपन मूल रूप मे अछि आ व्याख्या अनुदित मैथिली मे।
आब एकटा महत्वपूर्ण प्रश्न उठैत अछि जे आखिर हिंदी कोनो एहन भाषा त नहि अछि जकरा मैथिली भाषा भाषी जनैथ नहि होथि तहन एहन श्रम साध्य काज करबा आखिर की औचित्य अथवा उद्देश्य। हमरा लगैत अछि अकर दू टा कारण रहल होयत पहिल कि ई पोथी बहुत पुरान अछि आ करीब करीब लुप्त प्राय अछि तैँ अकर उपयोगिता देखैत नव कलेवर मे अकर आयब जरूरी लागल होयतन। आ दोसर जे सर्वाधिक महत्वपूर्ण अछि जकर चर्चा करैत अपन अहि पोथी मे डा० सर गङ्गा नाथ झा स्वीकारय छथिन्ह जे जहन हिंदी मे हुनका सँ व्याख्यान देबय कहल जाइ छन्हि त हुनका लाज होइ छन्हि कारण जे हिंदी हुनक मातृभाषा नहि। हुनक मातृभाषा अछि मैथिली आ संजय झा के सम्पुर्ण पुस्तक केँ मात्र ई एकटा पाँति अकर मैथिली अनुवाद करय लेल विवश क देने हैतैन।
पुस्तक मे नगण्य त्रुटि के प्रयास रहितो किछु अवश्य रहि गेल अछि तथापि संजय झा संगे हुनक प्रकाशन नवारम्भ के अजित जी अकर प्रकाशन मे बहुत मेहनति कयने छथि। पुस्तक के भाषा आ आइ काल्हि जे प्रचलित भाषा अछि ताहि पर दुनू मे बहुत घमर्थन भेल होयतन से लगैत अछि। मुदा अनुवादक भाषा पर सुभद्र झा के प्रभाव बहुत हद तक बाँचल रहि गेल अछि तैं अनुवाद मे मैथिली भाषाक नीक स्वरूप के दर्शन होइत अछि।
एकटा आग्रह कवि लोकनि सँ जे अहि पोथी के अवश्य पढ़ी ताकि काव्य कर्म के औदार्य आ औचित्य समझि सकी। जानि सकी जे कवि के आखिर समाज मे आइओ अतेक प्रतिष्ठा प्राप्त अछि से किए आर की करी जे ई प्रतिष्ठा अक्षुण्ण रहि सकय। जे पाठक छथि से यदि अहि पुस्तक के पढ़ता त हुनक साहित्यिक समझ के परिष्करण निश्चित रूपेण हेतैन।
अनुवादक : संजय झा ‘नागदह’
प्रकाशक : नवारम्भ प्रकाशन
पृष्ठ संख्या : 104
मूल्य : 200/- टका ( भारतीय )
अहि पोथीक लेल मित्र संजय झा के बहुत बहुत शुभकामना। मैथिलीक लेल अहिना काज करैत रहथु।
-------- अश्विनी कुमार तिवारी ( 03/07/2021 )
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