एक बार मैं कहीं से गुजर रहा था कि अचानक मेरी गाडी के सामने एक मोलवी साहब ने रुकने का इशारा किया। मैंने अपनी गाडी रोका पूछा बताइये जनाब क्या बात है ? उन्होंने कहा क्या आप वहां जा रहें हैं ? मैंने कहा जी जनाब। फिर उन्होंने मुझसे कहा मुझे छोड़ देंगे मैंने क्यों नहीं --जरूर... बैठिये। रास्ते में उनसे बात - चित होने लगा। मैंने पूछा क्या करते हैं? जबाब दिया मैं मदरसा में तालीम देता हूँ। मैंने कहा बहुत खूब ये तो बहुत अच्छी बात है। बात ही बात में मैंने कहा जनाब आप कोई ऐसा मुहीम चलाइये जिससे गाँव के कोई भी मुस्लिम बच्चा ऐसा न रहे जो तालीम से छूट जाए। क्योकि आज कल लोग धर्म मज़हब के नाम पर लोगो को भ्रमित कर रहें है। अगर अच्छी तालीम सभी बच्चो को मिलेगा तो कम से कम अपनी एक अच्छी सोच विचार के बाद ही कोई कदम उठाएगा। जब तक अच्छे संस्कार नहीं देंगे अच्छी तालीम नहीं देंगे तब तक वही कहाबत चलता रहेगा " मुर्ख की लाठी सीधे सर पर", अभी भी जो हिन्दू - मुस्लिम वर्ग शिक्षित हैं कहाँ लठ उठा कर आगे आते हैं ? इसलिए ध्यान रख्खे की एक भी बच्चा तालीम से न छूटे। यही इस चलते मुसाफिर से निवेदन है - मोलवी साहब ने कहा बहुत अच्छी बात कहा आपने झाजी हमारी पूरी कोशिश होगी की आपके बातों को ध्यान रख्खें। जब उनको हमने उनके मंजिल पर उतार दिया तो उन्होंने फिर ये बात दोहराते हुए हाथ हिला कर मुझे आगे जाने के लिए बिदा किया।
----संजय झा "नागदह "
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