शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

विद्वद्विभूति - सर्वतंत्रस्वतंत्र पण्डित बच्चा (धर्मदत्त) झा (1860-1921)

सर्वतंत्रस्वतंत्र पण्डित बच्चा (धर्मदत्त) झा (1860-1921)

 [1] मिथिलामे न्यायकें धारा ईसा पश्चात् नवम शताव्दीमे जे प्रवाहित भेल कोनो ने कोनो रूपमे एखनो धरि बहैत आबि रहल अछि। मिथिलामे एहि शताव्दीक प्रतिनिधि छलाह सर्वतन्त्रस्वतंत्र पण्डित धर्मदत्त झा जे बच्चा झाक सँ विख्यात भेलाह। 

बच्चा झा मिथिलाक कोरामे स्थित दरभंगा जिलाकलवाणी (नवानी)  नामक गाँवमे 1917 वैक्रममे (1860 ई०)  चैत्र शुक्ल नवमी ' उत्पन्न भेल छलाह। हिनक पितामहक नाम पण्डित रत्नपाणि झा छलन्हि। पण्डित रत्नपाणि दरभंगाधीश्वर श्रीमान रुद्रसिंह महाराज के राजपण्डित छलाह। हिनक आचरण शुद्ध स्मार्त साहित्यकेँ पाण्डित्यक कारणेँ  दरभंगामे 'महर्षि' कोटिमे परिणित होइत छलन्हि। किछु स्मार्त निबंध सबहुक रचना सेहओ कएने छलाह।  पण्डित रत्नपाणिकेँ एकहिंटा पुत्ररत्न भेलन्हि - पण्डित दुर्गादत्त झा, जे हमर चरित्र नायकक पिता छलाह। हिनक नाम ' धर्मदत्त राखल गेलन्हि मुदा माय - बाबू दुलारसँ  हिनका बाल्यहिंकालसँ जे ' बच्चा' आख्या देलन्हि से बादमे सर्वत्र प्रचलित ' गेल।

    पण्डित बच्चा झाक प्रारम्भिक अध्ययन अपने घरसँ भेलन्हि। कालान्तरमे ' ठाढ़ी' गामक निवासी विद्वमुर्धन्य  पण्डित विश्वनाथ झा सँ पढ़बा लेल गेलाह। पण्डित विश्वनाथ झा एकटा लब्धप्रतिष्ठित विद्वान् छलाह। बच्चा झाक महानताक सूत्रपात अहिठामसँ  भेलन्हि। पण्डित विश्वनाथ झा, बनैली, नरहन, आदि राजधानी सबहुमे  सेहओ बजाओल जाइत छलाह ताहि कारणेँ अध्यापन - कार्य लेल यथेष्ट समय हिनका नहि भेट पबैत छलन्हि। तैं  हेतु अन्यत्र जेबाक मोन नहियो रहला उत्र बाध्य ' ' पण्डित  बच्चा झाकेँ पढ़बाक लेल दोसर ठाम जाए पड़लन्हि।  ओहि समय मे नैयायिक प्रवर पण्डित बबुजन झाक प्रसिद्धि दर्शन शास्त्रक अध्यापनमे छलन्हि।  अतएव पण्डित बच्चा झा न्यायदर्शन पण्डित बबुजन झा सँ पढ़लाह। एकर पश्चात मीमांसा, वेदान्त आदि अन्य दर्शन शास्त्र सबहुक अध्यन काशीमे स्वामी विशुद्धानन्द सरस्वतीक चरण - कमलक नजदीकमे बैस केलन्हि। 

एहि तरहेँ अध्यन समाप्तोपरांत जखन गाम एलाह ' अपन गाममे मिथिले नागरिक प्राचीन परम्पराक मोताबिक घरे पर एकटा पाठशाला स्थापित ' छात्र लोकनिकेँ पढ़ायब  शुरू ' देलन्हि। हिनक विद्वता अध्यापनक कुशलताक प्रशंसा सुनि अपन प्रान्तक के कहै, भारतक कोने - कोनसँ छात्रगण बड्ड बेसी संख्यामे आबि पढ़ए लगलाह। कालिदास जे अध्यापनक मापदण्ड स्थिर कएने छलाह ओहिसँ पूर्णरूपेँ सफल भेलाह। महाकविक मोताबिक ओहने अध्यापक सफल ' सकैत छथि जे प्रथमतः पाण्डित्यक आगार होथि ओकरा संग हुनकामे विद्यासंक्रान्त करबाक कला होइन्ह। दुनू बात पण्डित बच्चा झामे विलक्षणरूपेँ छलन्हि। ताहिहेतु हिनक ख्याति शीघ्रहिं चहुँदिशि पसरि गेलन्हि। एतय धरि जे द्वारिकापीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वयं हिनकासँ अध्ययन करबा लेल हिनका ससम्मान बजौलखिन शिक्षा ग्रहण केलाह। एहि तरहेँ पण्डित बच्चा झाकेँ शंकराचार्यक शिक्षक बनबाक अद्वितीय श्रेय प्राप्त भेलन्हि। सूरतमे आयोजित अखिलभारतीय पंडितमहासभामे हिनके मुख्य बनाओल गेल छलन्हि।  

वृत्यर्थ अध्यापन करब हिनक प्रवृतिक प्रतिकूल छलन्हि।  मुदा दरभंगाधिराज श्रीमान रमेश्वरसिंह जीक अतिशय अनुरोध पर किछ दिनक लेल धर्मसमाज संस्कृत कॉलेज, मुजफ्फरपुर के प्रधानाचार्यक पद स्वीकार केलन्हि। दुर्भाग्यसँ  एकहिं बरखमे हिनक देहावसान ' गेलन्हि।

अध्यापनक संग- संग अनेक टीकात्मक मौलिक ग्रन्थक रचना कयलनि। दर्शनक पठन - पाठनमे ओहि समय प्रचलित प्रायः सब ग्रन्थ पर अपन टिपण्णी केलन्हि। मात्र दार्शनिक - साहित्य नहि अपितु विशुद्ध साहित्य सबहुक रचना सेहओ कएलन्हि। मुदा हिनक प्रतिभा मूलतः भावयित्री होएबाक कारणेँ हिनकर काव्यमे पाण्डित्यक सेहओ प्रकाशन होइत छल। हिनक ग्रन्थ 'सुलोचना माधवचम्पू' दुर्भाग्यवश अद्यावधि अप्रकाशित छन्हि। 

ओहिमे एकटा श्लोक अछि -

श्यामेयं सुषमेन्धनं सुरभिणा सन्धुक्षितं वायुना।

कुर्वन्तं जगदुज्ज्वलं प्रसृतया सज्जयोत्स्रया धूम्यया।

सम्पाद्यातनुमग्रि मुज्ज्वलविधु भ्राष्ट्रअङ्गकपोलेS घ्वग -

प्राणान भर्जतऋक्षलाजनिकरो यद् दृश्यते खेंगने।।  

 भावार्थ - वसन्तक चन्द्रिका - चर्चित रजनी एकटा भड़भूँजाक दूकान अछि। रजनीए भूँज' वाली अछि। ओकर शोभे ओकर खोराक छै। सुरभि वसातकेँ फूँकि रहल अछि। ओकर लपटसँ सब दिशा उज्जवल ' गेल छैक। एहि भट्ठीमे कामाग्नि आगा (प्रस्तुत) कएल गेल छैक। चन्द्रमे ' पात्र छैक जाहिमे विरहविधुर व्यक्ति सबहुक प्राणकेँ राखी ' भूजल जएतैक। सम्पूर्ण नभ मण्डलमे जगह - जगह पर छिटकल वियोगी सबहुक प्राणरूप अन्नक अधन लागल छैक। हिनक कवित्ताक विषयमे मंगखककेँ श्लोक उदधृत ' देब यथेष्ट रहत:-

 नो शक्य एव परिहृत्या दृढां परीक्षा ज्ञातुं मितस्य महतश्च कवेर्विशेषः

को नाम तीव्रपवनागममंतरेण  भेदेन वेति शिखिदीप मणिप्रदीपौ ।।

'मालविकाग्निमित्र' मे परिवाजिकक कहब छनि जे आचार्यक परीक्षा विद्यार्थी सभक योग्यताकेँ माध्यमसँ होइत अछि। पण्डित बच्चा झाक अत्यन्त विख्यात शिष्य परम्परा हिनक यशपाताकाकेँ अद्यावधि फहरा रहल छन्हि।

(सन्दर्भ दोसर ) महाराज लक्ष्मीश्वर सिंहक सिंहासनारोहणक बहुत दिन बाद धरि धौत परीक्षा नहि भेल छल। परीक्षा दरभंगा राजक संस्थापक श्री महेश ठाकुर द्वारा प्रारम्भ कएल गेल छल एहिमे मौखिक परीक्षा द्वारा श्रेष्ठ पंडितक चयन कएल जाइत छल। महाराज रमेश्वर सिंह एकर आयोजन करबओलन्हि श्री गंगानाथ झाकेँ एकर दायित्व देल गेलन्हि श्री गंगानाथ झा परीक्षार्थीक रूपमे सेहो आवेदन कएने छलाह। महाराज परीक्षाक  हेतु लिखित पद्धतिक आदेश देने छलाह। प्रश्निक नियुक्त्त भेलाह श्री बच्चा झा श्री शिव कुमार मिश्र। दुनू गोटे क्लिष्ट प्राश्निक कृपण परीक्षक मानल जाइत छलाह। मुदा ताहि पर श्री गंगानाथ झाकेँ 200 मे 197 अंक भेटलन्हि। महाराज पुरान परम्पराक अनुसार हिनका धोती तँ देलखिन्ह, मुदा नवीन पद्धतिक अनुसार दुशाला नहि देलखिन्ह, कारण संस्कृतक विद्वान् होयतहुँ श्री गंगानाथ झाक झुकाव अंग्रेजी प्रति सेहओ छलन्हि श्री बच्चा झा प्रकाण्ड पण्डित छलाह। महाराष्ट्र काशीक पण्डितक प्रसंगमे कहैत छलाह जे शब्द खण्डक प्रसंगमे सभ किछु नहि जनैत छलाह। ओहि समयमे महामहोपाध्याय दामोदर शास्त्री काशीक एकटा प्रसिद्ध वैयाकरण छलाह। विद्वान लोकनिक सुझाव पर दरभंगा महाराज गुरुधाममे एकटा पंडित सभाक आयोजन कएलन्हि। एहिमे हथुआ महाराज विशिष्ट अतिथि छलाह। काशीक सभ प्रमुख विद्वान एहिमे उपस्थित छलाह। प्रतियोगी छलाह पं.बच्चा झा .. दामोदर शास्त्री भरद्वाज। निर्णायक छलाह पं.कैलाश शिरोमणि भट्टाचार्या ..पं शिव कुमार मिश्र। एकटा सरल समस्यासँ शास्त्रार्थ प्रारम्भ भेल। एकर नैय्यायिक पक्ष लेलन्हि बच्चा झा व्याकरण पक्ष पं दामोदर शास्त्री।

दामोदर शास्त्री अपन जवाब अत्यंत सरल शब्दमे वैयाकरणिक आधार पर देलन्हि। आब बच्चा झाक बेर आयल। बच्चा झा गहन परिष्कार प्रारम्भ कएलन्हि। विद्वान लोकनिमे विवाद भेलन्हि जे हुनकर प्रश्न प्रासंगिक छन्हि वा नहि। निर्णायक लोकनि एकरा प्रासंगिक मानलन्हि। जौँ-जौँ बच्चा झा आगू बढ़ैत गेलाह हुनकर उत्तर दामोदर शास्त्री निर्णायक लोकनिक हेतु अबोधगम्य होइत गेलन्हि। मध्य रात्रि तक चलल। अन्ततः अनिर्णीत राखि कए सभा विसर्जित भेल।

सन् 1886 . केर गप छी। एकटा पुष्करिणीक उद्घाटनक उत्सवमे दामोदर शास्त्री जी काशीसँ मिथिलाक राघोपुर ग्राममे निमंत्रित भेल छलाह। ओतय हुनकर शास्त्रार्थ परम्परानुसार बच्चा झाक विद्यागुरु ऋद्धि झासँ भेल छलन्हि। एहिमे ऋद्धि झा परास्त भेल छलाह। गुरुक पराजयक प्रतिशोध लेबाक हेतु सन् 1889 मे बच्चा झा काशी गेलाह। बच्चा झाक उम्र ओहि समयमे 29 वर्ष मात्र छलन्हि। प्रायः दामोदर शास्त्रीकेँ लक्ष्य करैत छलाह, जे काशीक वैय्याकरणिक पण्डित लोकनिकेँ शब्द-खण्डक कोनो ज्ञान नहि छन्हि।बच्चा झा समस्त काशीक विद्वान् लोकनिकेँ शास्त्रार्थक हेतु ललकारा देलन्हि। दामोदर शास्त्रीसँ भेल शास्त्रार्थक वर्णन पछिला अंकमे कएल जाचुकल अछि। शास्त्रार्थ तीन दिन धरि चलल। शास्त्रार्थ सन्ध्यासँ शुरू होइत छल, मध्य रात्रि धरि चलैत छल।शास्त्रार्थक तेसर दिन दामोदर शास्त्री तर्क कएनाइ बन्न कए देलन्हि, श्रोताक रूपमे बच्चा झाक तर्क सुनैत रहलाह। पं शिवकुमार शास्त्री कैलाशचन्द्र शिरोमणि दू टा निर्णायक छलाह। शिरोमणिजीक दृष्टिमे वादी श्री बच्चा झाक पक्ष न्यायशास्त्रक दृष्टिसँ समुचित छल। शिवकुमारजीक सम्मतिमे प्रतिवादी श्री दामोदरशास्त्रीक पक्ष व्याकरणक मंतव्यानुसार औचित्यसम्पन्न छलन्हि।दुनू पण्डितक शास्त्रार्थ कलाक संस्तुति कएल गेल दुनू गोटेकेँ अपन सिद्धान्तक उत्कृष्ट व्यवस्थापनक लेल विजयी मानल गेल।

बच्चा झाजीकेँ समालोचकगण किछु उदण्ड अभिमानी मनबाक गलती करैत रहलाह अछि। मुदा एकटा उदाहरण हमरा लगमे एहन अछि, जाहिसँ गलत सिद्ध होइत अछि।

घटना एहन सन अछि। मुजफ्फरपुर धर्मसमाज संस्कृत विद्यालयमे बच्चा झा प्रधानाचार्य/अध्यक्ष पद पर छलाह, हुनकर शिष्य पं बालकृष्ण मिश्र ओतय प्रध्यापक छलाह। ओहि समय काशीक पण्डित-पत्रमे गंगाधर शास्त्रीक एकटा श्लोकक विषयमे बच्चा झा कहलन्हि, जे एहि श्लोकमे एकहि पदर्थ वारिधर एक बेर मृदंग बजबय बला चेतन व्यक्त्तिक रूपमे दोसर बेर वैह अम्बुद- जवनिकारूपी अचेतन रूपमे वर्णित अछि। एतय पदार्थाशुद्धि अछि। एहि पर हुनकर शिष्य बालकृष्ण टोकलखिन्ह- गुरुजी ! एहिमे कोनो दोष नहि अछि। किएक तँ वारिकेँ धारण करए बला मेघ (वारिधर) केर स्थिति आकाशमे ऊपर होइत अछि, अम्बु (जल) केँ देबय बला मेघ (अम्बुद) केर स्थिति नीचाँ होइत अछि।अतः दुनूमे स्थानक भिन्नता अछि। वारिधर वारिद एहि दुनू शब्दसँ दू भिन्न अर्थ ज्ञात होइत अछि। ताहि हेतु एतय पदार्थक अशुद्धि नहि अछि।

श्लोक निम्न प्रकारे छल:-

मृदुमृदङ्गनिनादमनोहरे, ध्वनित वारिधरे चपला नटी।

वियति नृत्यति रङ्ग इवाम्बुदे, जवनिकामनुकुर्वति सम्प्रति॥

     (पुनः सन्दर्भ एकसँ) हिनक किछु विशेष शिष्य सभक नामावली एहिठाम प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।

स्वामी पूर्णानन्द, स्वामी परमानन्द, महामहोपाध्याय पण्डित बालकृष्ण मिश्र, पण्डित शशिनाथ झा ( मिथिला विद्यापीठ दरभंगा मे दर्शनविभागक अध्यापक ), पण्डित लक्ष्मीनाथ झा ( काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमे दर्शनविभागक प्रधानाध्यापक), पण्डित  हरनाथ शास्त्री, पण्डित षष्ठिनाथ मिश्र आदि।

हिनक रचना

1.  व्याप्तिपंचक की टीका। 

2.  अवच्छेदकत्वनिरुक्ति विवेचन।

3.  व्युत्पत्तिवादगूढ़ार्थतत्वालोक।

4.  सक्यभिचारटिप्पण।

5.  खण्डनखण्डखाद्यटिप्पण।      

6.  न्यायभाष्यटीका।

7.  सिद्धान्तलक्षणविवेचन।

8.  व्याप्त्यनुगमविवेचन।

9.  शक्तिवादटिप्पण।

10.    सत्प्रतिपक्ष टिप्पण।

11.    कुसुमान्जलिवर्धमानटिप्पण।

12.    अद्वैतसिद्धिचन्द्रिकाटिप्पण आदि।     

 

संकलन - संजय झा "नागदह"

 

दिनांक: 12 /12 /2017

मैथिल समाज, रहिकाक मिथिला विभूति पर्व समारोह वर्ष 2021 क स्मारिकामे छपल छल। इ समारोह 24 -25 -26 मार्च 2021 सम्पन्न भेल छल।  श्री उदय चंद्र झा 'विनोद' जी  एकरा  स्मारिकामे जगह देने छलाह ताहि हेतु हिनका बहुत बहुत धन्यवाद।  

महामहोपाध्याय गंगानाथ झाक “कवि रहस्य’क मैथिली अनुवाद : भास्करानन्द झा भास्कर

भूमंडलीकरण एवं मीडियाक प्रभावक कारण आजुक समयमे अनुवाद, विशेषत: अनुवाद साहित्यक महत्व  किछु बेसी बढि  गेल अछि कोनो भाषा, साहित्य संस्कृतिकें जीबंत विकासोन्मुखी बनाकए रखबाक लेल अनुवाद वस्तुत: एकटा सशक्त माध्यम बनि गेल अछि वैश्विक ग्रामक संकल्पना संसारक समस्त साहित्यकें अनुवाद केर माध्यमसँ  एक दोसराकें सम्पर्कमे आनि रहल अछि   वैश्विक स्तर पर अनुवादक बढैत लोकप्रियताकें देखैत आई समस्त विश्वविद्यालयमे अनुवाद अध्ययन एकटा विषय / डिसीप्लीनक रुपमे पढाओल जा रहल अछि साहित्यिक अनुवादक  क्षेत्रमे साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर, नेशनल ट्रांस्लेशन मिशन आदि सहित  कैकटा अनुवाद संस्थान सेहो कार्य रहल अछि

 मैथिलीमे चन्दा झा द्वारा विद्यापतिक "पुरुष परीक्षा" अनुवाद सँ  मैथिलीमे अनुवाद कार्यक शुभारंभ मानल जाइत अछि मैथिलीमे अन्य  भाषाक तुलनामे अनुवाद साहित्य बहुत कम अछि मुदा शनै शनै मैथिलीक अनुवाद साहित्य पल्लवित रहल अछि विभिन्न क्षेत्रमे काज केनिहार मैथिली अनुरागी मैथिली सँ अंग्रेजी एवं अन्य भाषामे तथा अन्य भाषाक लोकप्रिय साहित्यकें मैथिलीमे आनुवाद कार्यमे लागल छैथ एहने युवा लेखकसभक मध्य एकटा नाम अछि संजय झा 'नागदह'

 सम्प्रति तंजानियामे कार्यरत मिथिला-मैथिलीक सेवामे निरंतर लागल संबंधित गतिविधिसभ सँ जुरल संजय  झा 'नागदह' मैथिली लेखनमे बेस सक्रिय छैथ तकर सफल परिणाम स्तुत्य प्रमाण अछि महामहोपाध्याय गंगानाथ झाककवि  रहस्य" हुनक मैथिली अनुवाद नवारंभसँ प्रकाशित मैथिलीमे अनुदित पोथी संजयजीक अनुवाद कौशलक गवाही रहल अछि पोथीक शुभाशंसामे प्रख्यात लेखिका शेफालिका वर्मा ठीके लिखने छथि- ‘ एहि कवि रहस्य केर मैथिली अनुवाद विलक्षण भेल अछि

 कवि रहस्यवर्ष  1928-29 ईक मध्य देल गेल प्रख्यात विद्वान महामहोपाध्याय गंगानाथ झाक सारगर्भित विशद व्याख्यानक संकलन अछि   एहि पोथीमे दुटा खंड अछि - कवि-रहस्य कविचर्या- राजचर्या


 कवि-रहस्यक अंतर्गतवांग्मय  स्वरुप, ‘काव्यपुरुष, साहित्य-वधु-संयोग , ‘शिष्य  भेद , ‘काव्य उत्पत्ति, ‘कविलक्षण भेद , ‘शब्दस्वरुप , ‘काब्यपढक ढंग , ‘काव्यार्थ मूल, ‘साहित्य विषय आदि जेहन महत्वपूर्ण विषय पर विचार उपस्थापित कएल गेल अछि दोसर खंडक अंतर्गतकवि कर्तव्य ,’कवित्व- शिक्षा , ’राजा कर्तव्य, ‘चोरी,  ‘कविक समय, ‘ देश-विभाग, ‘काल-समय, ‘नानाशास्त्र- परिचय उल्लेखनीय अछि  

अनुवाद ओहो साहित्यिक अनुवाद  अत्यंत  चुनौतीपूर्ण  कठिन काज थिक साहित्यिक अनुवाद भाषाक नहि भावक होयत अछि  ताहि लेल अनुवादकमे भाषिक विलक्षणताक संग संग भावभूमिक भरल पूरल चास होयबाक चाही समीक्षगत पोथीमे दुनु गुण विशेषता संजयजीमे परिलक्षित रहल अछि हुनक  अनुवादक भाषा शैली प्रभाव्य अछि दर्शन, काव्य आदि संबंधी संकल्पनाक दुरूह अभिव्यंजनाकें अतेक सहज सुंदर  ढंगसँ अभिव्यक्त कयने छथि जे लगैत अछि कि  हम मैथिलीक कोनो मूल पोथी पढि रहल छी

 क्लासिक 'कवि रहस्यक' काव्यात्मक, दार्शनिक, भाषिक, वैचारिक आदिक रहस्यकें अपन भाषा मैथिलीक माध्यमसँ मैथिल जन धरि  पहुँचेबाक लेल संजयजीकें बहुत बहुत धन्यवाद। अनुवादक क्षेत्रमे संजयजीसँ बेसी सँ बेसी अनुवाद कार्यक अपेक्षा रखैत साहित्य सृजनक कामना करैत छियैन। शुभमस्तु!

 


पोथी- कवि रहस्य

अनुवादक- संजय झा 'नागदह'

प्रकाशक- नवारंभ

मूल्य- 200 टका

 

समीक्षक : भास्करानन्द झा भास्कर

चलंत : 09432386278

कुक्कुर बिलाड़ि

 कुक्कुर बिलाड़िमे  देखल झगड़ा कत्तेक बेर 
झपटि उठै छल कूक्कुर एक टुकड़ी रोटी लेल 
गरदनि टुटब डरे सुट्ट दS भागय छल बिलाड़ि 
आब की अपने सब देख पबैत छी एहन लड़ाई ?

केना भेलै से जानि नहि एकर पंचैती 
कोन पंच केलक केना फरियौलक से के कहत 
बुझना जाइया कहने हेतै घर ओकर आ बाहर तोहर 
जहिया धरि इ फतबा मानबै,
ततबे दिन धरि पंचायती के रहतौ मोजर 

कए दशक सं देख रहल छी सूझ - बूझ 
कुक्कुरक पिब रहल अछि बिलाड़ि दूध 
सूझ बूझ आ बुधियारीमे भS  रहलै आगा 
मनुखक बुधियारीमे नहि जानि छै की बाधा !

@संजय झा 'नागदह'


गुरुवार, 31 जुलाई 2025

छैठ परमेश्वरी

प्रायः लोक पुछि बैसथि, के छथि छठि मैया ?
चट बुझाए कही हुनका सँ 
षष्ठी तिथि स्त्रीक रूपमे छथि छैठ परमेश्वरी मैया।

इ मैया छथि परम दयालु - करथि सभक मनोरथ पुर 
पूजा करू पुनीत श्रद्धा सँ होयब नहि आहाँ कखनो झूर। 

इ व्रतक छैक बड्ड विधान - पंचमी युक्त षष्ठी छैक वर्जित
मुदा होइ जौं सप्तमी युक्त षष्ठी, तखनो भेल इ उपयुक्त

उदय काल जौं पड़ल षष्ठी, पहिल अर्घ ओहि दिन दी
आ प्रातः जखन सप्तमी तिथि हो, भोरका अर्घ तखनहि दी। 

इ पूजा थिक सूर्यक पूजा पहिल अर्घ भेल साँझमे 
प्रातः जखन लालिमा निकलय दोसर अर्घ दी भोरमे। 

आदित्य देव मुख्य रूप सँ पुजल जाइछ आरोग्य लेल
नहि अछि एहिमे कोनो बाधा स्त्री आओर पुरुष लेल। 

जाति-पाती के बाते छोड़ू - एकर नहि छैक कोनो विचार
भगवान भास्कर पुरवथि मनोरथ - सबके लेल एक्कहि विचार। 

@संजय झा 'नागदह'

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

रावण कियाक नहि मरैत अछि ?


रामलीलाक आयोजनक तैयारी पूर्ण भ' गेल छल तहन ई प्रश्न उठल जे रावणक पुतला केना आ कतेक मे ख़रीदल जाए ? ओना रामलीला आयोजनक सचिव रामप्रसाद छल तैं इ भार ओकरे पर द' देल गेल। भरिगर जिम्मेदारी छल। रावण ख़रीदबाक छल। संयोग सँ एकटा सेठ एहि शुभकार्य लेल अपन कारी कमाई मे सँ पांच हजार टाका भक्ति भाव सहित ओकरा द' देलक। मुदा एतबे सँ की होएत ? नीक आयोजन करबाक छलै। चारि गोटा कहलक चन्दा के रसीद बनबा लिअ। जल्दिये टाका भ' जाएत। सैह भेल। चंदाक रसीद छपबा क' छौड़ा सबके द' देल गेल। छौड़ा सब बानर भ' गेल। एकटा रसीद ल' क' रामप्रसाद सेहओ घरे- घर घूम' लागल।
घुमैत - घुमैत एकटा आलीशान बंगलाक सामने ओ रुकल। फाटक खोलि क' कॉल वेळक बटन दबेलक। भीतर स' कियो बहार नहि निकलल। ( आलीशान घर मे रह' बला आदमी ओहुना जल्दी नहि निकलैत अछि ) रामप्रसाद दोहरा क' कॉलवेळ बजेलक - ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग एहि बेर तुरन्त दरबाजा खुजल आ एकटा साँढ़ जकाँ 'सज्जन' दहाड़इते बाजल - की छै ? की चाही ? ( गोया प्रसाद पुछलक - भिखाड़ी छैं ? ) 
'' हं .... हं , हम रावणक पुतला जडेबाक लेल चन्दा एकत्रित क' रहल छी " रामप्रसाद कने सहमिते बाजल। 
" हूँ ........ चन्दा त' द' देबउ मुदा ई कह रावण कतेक साल स' जड़बैत छैं ?
" सब साल जड़बै छियै। '' रामप्रसाद जोरदैत बाजल। 
" जखन सब साल जड़बै छैं त' आखिर रावण मरै कियाक नहि छौ ? सब साल कियाक जीब जाई छौ ? कहियो सोचलहिन ? " 
" ई त' हम नहि सोचलहुँ। " रामप्रसाद एहि प्रश्न कने प्रभावित भ' गेल।
“त' आखिर कहिया सोचबै ? एह कारण छौ जे रावण कहियो मरिते नहि छौ। . . . . . . ठीक छै रसीद काटि दे।"
" ठीक छै , की नाम लिखु ? "
" लिख - - - रावण। "
" रावण ? ? ? " रामप्रसाद कने बौखलायल ।
" हँ, हमर नाम रावण अछि। की सोचैं छैं की राम राम हमरा मारि देने छल ? नहि, यहां नहि छै। दरअसलमे रामक तीर हमर ढ़ोढ़ी पर जरूर लागल छल। लेकिन हम वास्तव मे मरल नहि रहि। केवल हमर शरीर मरल छल, आत्मा नहि। गीता तू पढ़ने छैं ? हमर आत्मा कहियो नहि मरि सकैत अछि। "
"त' कि आहाँ सच्चे मे रावण छी ? हमरा विश्वास नहि होइत अछि।" रामप्रसाद भौंचक होइत बाजल।
" हँ ! त' कि तोरा आश्चर्य होइत छौ ? हेबाको चाही। मुदा सत्यके नकारल नहि जा सकैत छैक। जहिया तक संसारक कोनो कोण मे अत्याचार, साम्राज्यवाद, हिंसा आ अपहरण आ की प्रद्युमन एहन ( जे गुड़गांवक रेयान इंटरनेशन स्कूल मे भेल ) जघन्य अपराध होइत रहत तहिया तक रावण जीविते रहत। " तथाकथित रावण बाजल। ": से त' छै , मुदा - - - - ।" रामप्रसाद माथ पर स' पसीना पोछैत बाजल। " मुदा की ? रे मुर्ख ! राम त" एखनो जीविते छै। ओहो हमरे जकाँ अमर छै। ओकर नीक आ हमर अधलाहक मध्य द्वन्द त' सदैव चलैत रहत। हम जनैत छी, ने नीकक अंत हेतै आ ने अधलाहक। एहि तरहेँ तोरो चन्दा के खेल चलिते रहतौ। अच्छा आब रसीद काट। "
" अच्छा जे से कतेक लिखू ? " रामप्रसाद डेराइते बाजल। लिख, पाँच हजार। की, ठीक छौ ने ? हमर भाय धन कुबेर अछि। लाखो रुपया विदेश सँ भेजैत अछि। हमरा रुपयाक की कमी ? एकटा सोनाक लंका जड़ि गेल त' की भ' गेलै ? जयवर्धनक लंका मे एखन तक अत्याचार चलिते छै ? ई ले पाँच हजारक चेक। " रावण चेक काटि रामप्रसाद के द' देलक आ दहाड़ईत बाजल --- " चल आब भाग एतय स'।"
रामप्रसाद डेराइते बंगला सँ बाहर भागल। बाहर देखैत अछि एकटा कार ठाढ़ छै आ दू टा खूंखार गुण्डा एकटा असहाय लड़कीके खिंचैत रावणक आलिशान बंगला दिस ल' ;जा रहल छै। रामप्रसाद घबरा गेल। ओ पाँच हजार रुपयाक चेक फेर सँ जेबी स' निकालि देखलक आ सोच' लागल कि ई सच्चे रावण छल की ओकर प्रतिरूप छल ? ओकरा किछ समझ मे नहि आएल। ओ ओत' स' लंक लागि भागल ओहि मे ओकरा अपन भलाई बुझना गेलैक।
रामलीला आयोजनक अध्यक्षके जखन एहि बातक पता चलल कि रामप्रसाद लग दसहजार रुपया इकट्ठा भ' गेल त' ओ दौड़ल - दौड़ल रामप्रसाद लग गेल आ कहलक ----- " रे भाई रामप्रसाद, सुनलियौ जे चन्दा मे दसहजार रुपया जमा भ' गेलौ ? चल आई राति सुरापान कएल जाए। की विचार छौ ?"
" देखु अध्यक्ष महोदय ! ई रुपया रावणक पुतला ख़रीदबाक वास्ते अछि। हम एकरा फ़ालतूक काज मे खर्च नहि क' सकैत छी। " रामप्रसाद विनम्र भाव सँ कहलक।
अध्यक्ष गरम भ' गेलाह। बजलाह --- " वाह रे हमर कलयुगी राम ! रावण जड़ेबाक बड्ड चिन्ता छौ तोरा ? चल सबटा रुपया हमरा हवाला करै, नहि त' ठीक नहि हेतौ। "
" ख़बरदार ! जे रुपया मंगलौं त' ! आहाँके लाज हेबाक चाही। इ रुपया मौज - मस्ती के लेल नहि बुझू आहाँ ? रामप्रसाद बिगड़ैत बाजल। एतै छै चन्दाक रसीद ल' क' घूम' बला छौड़ा सभक वानर सेना। चारु कात सँ घेर क' ठाढ़ भ' गेल। रामक जीत भेल। अध्यक्ष ( जे रावणक प्रतिनिधि छल ) ओहिठाम सँ भागल। 
खैर ! रावणक पैघ विशालकाय पुतला खरीद क' आनल गेल आ विजयादशमी सँ एक दिन पहिनहि राईत क' मैदान मे ठाढ़ क' देल गेल। अगिला दिन खूब धूमधाम सँ झाँकी निकालल गेल। सड़क आ गली - कूची सँ होइत राम आ हुनकर सेना मैदान मे पहुँचल। जाहिठाम दस हजारक दसमुखी रावण मुस्कुराइत ठाढ़ छल। रावणक मुस्कुराहट एहन लागि छल बुझू ई कहि रहल हो कि " राम कहिया तक हमरा मारब' हम त' सब दिन जीबिते रहब। राम रावणक मुस्कुराहट नहि देख रहल छलाह। ओ त' जनताक उत्साह देखैत प्रसन्न मुद्रा मे धनुष पर तीर चढ़ौने रावणक पेट पर निशाना लगबक लेल तत्पर भ' रहल छलाह। कखन आयोजकक संकेत भेटत आ ओ तीर चलोओता। मुदा कमीना मुख्य अतिथि एखन तक नहि आएल छल। (ओहिना जेना भारतीय रेल सब दिन देरिये भ' जाएल करैत छैक ) आयोजक लोकनि सेहओ परेशान छलाह। आधा घंटा बीत गेल। अतिथि एलाह। आयोजकक संकेत भेल। आ ----- राम तुरन्त अपन तीर रावण दिस छोड़ि देलाह। तीर हनहनाईत पेट पर नहि छाती पर जा लागल। आ एहिकसँग धमाकाक सिलसिला शुरू भ' गेल, त' मोसकिल सँ पाँच मिनट मे सुड्डाह। बेसी रोशनीक संग रावण स्वाहा भ' गेल। ओकरा जगह पर एकटा लम्बा बाँस एखनो ठाढ़ छल। किछ लोक छाऊर उठा - उठा क' अपन घर ल' जाए लागल। (पता नै जाहि रावणके लोक जड़ा दैत छैक ओहि रावणक छाऊर के अपना घर मे कियाक रखैत अछि ?)
किछ लोक बाँस आ खपच्ची लेबक लेल सेहओ लपकल। ओहिमे एकटा रामप्रसाद सेहओ छल। लोक सब बाँस आ लकड़ी तोइर - तोइर क' बाँटि लेलक आ अपन घर दिस बिदा भ' गेल। रामप्रसाद बाँसक खपच्ची ल' क' रस्ता पर चलल जाइत छल कि एकाएक एकटा कार ओकरा लग रुकल आ एक आदमी ऊपर मुँह बाहर निकालि क' अट्टहास करैत बाजल - - - " की रावण जड़ा क ' आबि गेलौं ? एहि बेर ओ मरल की नहि ? हा - - - हा - - - हा - - - । " ओ वैह आदमी छल जे अपना आपके रावण कहैत पाँच हजार रुपयाक चेक देने छल। रामप्रसादक मुँह बन्न। घबराईते बाजल - - " जी - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - , जड़ा देलियै। "
" मुदा ई बाँस आ खपच्ची कियाक ल' क' जा रहल छै ? रावण बाजल। " हँ , कहल जाईत छैक जे एहिसँ दुश्मन के मारला सँ ओकर हानि होइत छैक। " रामप्रसाद बाजल। " ठीक, त' एहि सँ लोक अपन बुराई के कियाक नहि अन्त क' दैत छैक ? एकरा घर मे रैखिक' तू सब रावणके जान मे जान आनि दैत छहक। तैं त' हम कहैत छी कि हम मरियो क' जीवित केना भ' जाएत छी ! रावण बाजल। ई सुनिते रामप्रसाद बाँस आ खपच्ची स' ओकरा हमला करबाक लेल लपकल, मुदा रावण कार चलबैत तुरन्त भागि गेल। ओ एखनो जीविते अछि।
कहानी का नाम : रावण मरता क्यों नहीं ?
लेखक : संजय स्वतंत्र 
पुस्तक का नाम : बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपइया 
प्रकाशक : कोई जानकारी पुस्तक पर उपलब्ध नही
अनुदित भाषा : मैथिली 
अनुदित कर्ता : संजय झा "नागदह" 
दिनांक : 29/10 / 2017 , समय : 02 :11 am
कहानीक अनुदित नाम : रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

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