Friday, 15 January 2016

छी कोन अपने जाति विशेष ?

सब सँ पहिने हम मन्नुख छी 
त'हन कोनो जाति 
भने मन्नुखक गुण हो वा नहि 
किन्चिद् नहि परजाति।
एक मनुष्य में सब जाति समाहित 
तखनहि जीवन धन्य 
एक जाति के मात्र जौं गुण अछि 
जीवन भ' जाएत शून्य।
ब्राम्हण सँ पांडित्यक गुण ली 
शूद्र सँ सिखु सेवा भाव 
क्षत्रिय बनि करू निज रक्षा 
वैश्यक गुण सँ हाट - बाजार।
स्वह्रिदय झाँकि क' देखु 
कोन गुण अछि अपनेक विशेष 
मोने - मोने अपने सोचि लेब 
छी कोन अपने जाति विशेष ? 


----- संजय झा " नागदह" 
01/09/2015

एहि कविता के सन्दर्भ में फसेबूक पर आयल किछु टिप्पणी ....
Manoj Shandilya कर्म-प्रधान जीवन अर्थपूर्ण...जातिक कोनो अर्थ नहि...नीक रचना। साधुवाद smile emoticon
Binay Thakur sundar vichar
Sanjay Jha मनोबल उत्साहित करबा लेल बहुत - बहुत आभार Manoj Shandilya chacha ji
Asha Jha पहिने के शूद्र सेवा भावयुक्त रहथि, आब त.....॥ से सैह। ओना कविता नीक छ बौआ।
Sanjay Jha pranam Asha Jha - babi
Shefalika Verma बहुत नीक कविता संजय मनुख के मनुखे बनवा में बड़ परेसानी।
Gangesh Gunjan संजय जी, प्रसिद्ध शाइर मिर्ज़ा ग़ालिबक एक टा बहुत प्रसिद्ध शे-र छनि:
'बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना ।।
ई तँ अहाँ केँ पढ़बाक लेल लिखलौं। कहबाक ई अछि जे कोनो कविता, मात्र मनुक्खक लेल सदाशयता आ कामना राखि-कहि क' कविता नहि भ' पबैत छैक।पूर्ण कविता तँ निश्चित नहि। तेँ एहन संसार-समाज मे जखन 'मनुक्ख केँ मनुक्ख होएबाक भाग्य नहि छैक ताहि मे अहाँ एकटा मुनष्यताक युवा कविक संकल्प कें सराहना तँ कएल जा सकैत अछि मुदा कविता केँ अपन औरो सब समकालीन सामाजिक चिन्ता आ समाधानक संकेत वला कविता गुण विकसित कर' पड़तै।
छुटिते हमहूँ अहाँक कविताक प्रशंसा क' द' सकैत छलहुँ। मुदा से हमर ईमानदारी नै होइत। अहाँ हमर 'भविष्यक कवि-पीढ़ी' । तेँ हमर दायित्व जे अहाँ आ अहीं लाथे समस्त नव कवि-रचनाकार केँ सचेत क' दिअनि। जे प्रशंसनीय से तँ अहाँ लोकनि कइए रहल छी। तकरा वास्ते हमहूँ आश्वस्त भाव सँ अपन शुभकामना दैते रहैत छी। 'समाज' शब्द मात्र नहि थिक। जेना 'लोक' मात्र एकलअदद आदमी नहि। बहुआयामी-राजनीति, अर्थनीति, विश्व दृष्टि आ बजार आ शिक्षित-उच्च शिक्षित बेरोज़गारी, बढ़ैत गरीबी, युवा समाजक नित 'स्वप्न भंग', फलस्वरूप दिशाहीन ऊर्जा स्खलन, जाति-धर्मक विवाद आदि अनेकायामी दबाव में मनुक्ख कतेक 'साबुत' बाँचल अछि, ई सब किछु बुद्ध्या नै, संवेदना अंग 'हृदय' बाटे अनभूत -अभिव्यक्त करबाक साधक वला अभ्यास करैत छी हमरा लोकनि । करहि पड़ैतलछैक । कविताक बाट छैक ई। हड़बड़ी मे
हमर बात नकारात्मक नै लेब । नै रुचय, तथापि।
सस्नेह,
Asha Jha संजय खुश रहू। ईश्वरक कृपा सदैव बनल रहय।
Sanjay Jha परमादरणीय Gangesh Gunjan सर सबसँ पहिने चरण स्पर्श क' प्रणाम। हम त' मोने मोन अपनेक स्नेह आ ज्ञान स्वरुपक टिप्पणी देखि गद - गद छी , जे अपने सनक विद्वद जन सँ एहि तरहें सुझाव भेटल। हमर ज्ञान नगण्य अछि , मोन सँ उपजल भाव के कोनो तरहेँ राखि दैत छी। अपनेक स्नेहरूपी अंगपोछा सँ जे हमरा आ हमरा सनक नव - लिखनिहार कें अग्यानताक गर्दा जे पोछल की ताहि लेल कि नकारात्मक सोच राखल जा सकैछ ? हाँ सम्भव छैक जौं गर्दा नहि पोछयल होई। मुदा बुझा रहल अछि हमरा में एतेक रास गर्दा नहि जमल अछि। ज्ञान रूपी अमृत केना नहि पचत , हम त' सदैब लालायित छी। आग्रह एतवे जखन - जखन एहन तरहक गर्दा बुझना जाए एक बेर अपन ज्ञान रुपि गमछा के जोर सँ पटकि देबै,आस्ते - आस्ते ठीक भ' जेतैक। सत्य बजबाक दुःसाहस हमर ग्रामीण बाबा, स्वर्गीय डॉ सुभद्र झा करैत छलाह जिनका अपन पुस्तक "नातिक पत्रक उत्तर" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार - मैथिली भेटलन्हि त' कतेको के कहने फिरथी जे कहु त' एहि में एहन की छैक जे …… त' बस आर्शीवाद बनौने रहु जाहि सँ ज्ञानक मार्जन होइत रहय। प्रणाम।

Sanjay Jha आदरणीय Shefalika Verma जी चरण स्पर्श , अपने सबहक़ स्नेक जौ भेट जाइत अछि त' बुझु फूलि क' खेसारी भ' जाईत छी। आ तहन फेर की नीक आ की वेजाय। जे मोन में उपजल से ठामे पटकि दैत छी , ताहि मे किछु - नीको आ बेजाओ। बस आशीर्वाद आ अपन सुझाव बिना मंगनहु द' ज्ञान मार्जन करैत रहि , बस एतवे। प्रणाम।

Sanjay Jha
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