सब सँ पहिने हम मन्नुख छी
त'हन कोनो जाति
भने मन्नुखक गुण हो वा नहि
किन्चिद् नहि परजाति।
एक मनुष्य में सब जाति समाहित
तखनहि जीवन धन्य
एक जाति के मात्र जौं गुण अछि
जीवन भ' जाएत शून्य।
ब्राम्हण सँ पांडित्यक गुण ली
शूद्र सँ सिखु सेवा भाव
क्षत्रिय बनि करू निज रक्षा
वैश्यक गुण सँ हाट - बाजार।
स्वह्रिदय झाँकि क' देखु
कोन गुण अछि अपनेक विशेष
मोने - मोने अपने सोचि लेब
छी कोन अपने जाति विशेष ?
----- संजय झा " नागदह"
01/09/2015
एहि कविता के सन्दर्भ में फसेबूक पर आयल किछु टिप्पणी ....
एहि कविता के सन्दर्भ में फसेबूक पर आयल किछु टिप्पणी ....
Sanjay Jha परमादरणीय Gangesh Gunjan सर सबसँ पहिने चरण स्पर्श क' प्रणाम। हम त' मोने मोन अपनेक स्नेह आ ज्ञान स्वरुपक टिप्पणी देखि गद - गद छी , जे अपने सनक विद्वद जन सँ एहि तरहें सुझाव भेटल। हमर ज्ञान नगण्य अछि , मोन सँ उपजल भाव के कोनो तरहेँ राखि दैत छी। अपनेक स्नेहरूपी अंगपोछा सँ जे हमरा आ हमरा सनक नव - लिखनिहार कें अग्यानताक गर्दा जे पोछल की ताहि लेल कि नकारात्मक सोच राखल जा सकैछ ? हाँ सम्भव छैक जौं गर्दा नहि पोछयल होई। मुदा बुझा रहल अछि हमरा में एतेक रास गर्दा नहि जमल अछि। ज्ञान रूपी अमृत केना नहि पचत , हम त' सदैब लालायित छी। आग्रह एतवे जखन - जखन एहन तरहक गर्दा बुझना जाए एक बेर अपन ज्ञान रुपि गमछा के जोर सँ पटकि देबै,आस्ते - आस्ते ठीक भ' जेतैक। सत्य बजबाक दुःसाहस हमर ग्रामीण बाबा, स्वर्गीय डॉ सुभद्र झा करैत छलाह जिनका अपन पुस्तक "नातिक पत्रक उत्तर" पर साहित्य अकादमी पुरस्कार - मैथिली भेटलन्हि त' कतेको के कहने फिरथी जे कहु त' एहि में एहन की छैक जे …… त' बस आर्शीवाद बनौने रहु जाहि सँ ज्ञानक मार्जन होइत रहय। प्रणाम।
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