Saturday, 16 January 2016

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि
गाड़ी एक देल ठोकर माइर
सोचल एहन अभागल की हमहि ?
कतेक सताओत एकसर हमरे 
कखनहुँ सोचि हम इ की देखल 
सोचि - सोचि मन होइत छल बेकल 
घर सँ बहार निकलल नहि जाए 
बेर - बेर स्वप्न याद आबि जाए
कतेक सोचि कार्यालय गेल 
अबैत काल सपना सच भेल 
बाँचल मुदा सपूर्ण शरीर 
थोड़ मोड़ लागि कटल इ पीर 
धन्यवाद प्रभु के बेर - बेर 
पुनि दुर्दिन नहि देखाबहिं फेर।  

--- संजय झा "नागदह"
१३/०२/२०१५ 

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