स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि
गाड़ी एक देल ठोकर माइर
सोचल एहन अभागल की हमहि ?
कतेक सताओत एकसर हमरे
कखनहुँ सोचि हम इ की देखल
सोचि - सोचि मन होइत छल बेकल
घर सँ बहार निकलल नहि जाए
बेर - बेर स्वप्न याद आबि जाए
कतेक सोचि कार्यालय गेल
अबैत काल सपना सच भेल
बाँचल मुदा सपूर्ण शरीर
थोड़ मोड़ लागि कटल इ पीर
धन्यवाद प्रभु के बेर - बेर
पुनि दुर्दिन नहि देखाबहिं फेर।
--- संजय झा "नागदह"
१३/०२/२०१५
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