शुक्रवार, 1 अगस्त 2025

महामहोपाध्याय गंगानाथ झाक “कवि रहस्य’क मैथिली अनुवाद : भास्करानन्द झा भास्कर

भूमंडलीकरण एवं मीडियाक प्रभावक कारण आजुक समयमे अनुवाद, विशेषत: अनुवाद साहित्यक महत्व  किछु बेसी बढि  गेल अछि कोनो भाषा, साहित्य संस्कृतिकें जीबंत विकासोन्मुखी बनाकए रखबाक लेल अनुवाद वस्तुत: एकटा सशक्त माध्यम बनि गेल अछि वैश्विक ग्रामक संकल्पना संसारक समस्त साहित्यकें अनुवाद केर माध्यमसँ  एक दोसराकें सम्पर्कमे आनि रहल अछि   वैश्विक स्तर पर अनुवादक बढैत लोकप्रियताकें देखैत आई समस्त विश्वविद्यालयमे अनुवाद अध्ययन एकटा विषय / डिसीप्लीनक रुपमे पढाओल जा रहल अछि साहित्यिक अनुवादक  क्षेत्रमे साहित्य अकादमी, नेशनल बुक ट्रस्ट, केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर, नेशनल ट्रांस्लेशन मिशन आदि सहित  कैकटा अनुवाद संस्थान सेहो कार्य रहल अछि

 मैथिलीमे चन्दा झा द्वारा विद्यापतिक "पुरुष परीक्षा" अनुवाद सँ  मैथिलीमे अनुवाद कार्यक शुभारंभ मानल जाइत अछि मैथिलीमे अन्य  भाषाक तुलनामे अनुवाद साहित्य बहुत कम अछि मुदा शनै शनै मैथिलीक अनुवाद साहित्य पल्लवित रहल अछि विभिन्न क्षेत्रमे काज केनिहार मैथिली अनुरागी मैथिली सँ अंग्रेजी एवं अन्य भाषामे तथा अन्य भाषाक लोकप्रिय साहित्यकें मैथिलीमे आनुवाद कार्यमे लागल छैथ एहने युवा लेखकसभक मध्य एकटा नाम अछि संजय झा 'नागदह'

 सम्प्रति तंजानियामे कार्यरत मिथिला-मैथिलीक सेवामे निरंतर लागल संबंधित गतिविधिसभ सँ जुरल संजय  झा 'नागदह' मैथिली लेखनमे बेस सक्रिय छैथ तकर सफल परिणाम स्तुत्य प्रमाण अछि महामहोपाध्याय गंगानाथ झाककवि  रहस्य" हुनक मैथिली अनुवाद नवारंभसँ प्रकाशित मैथिलीमे अनुदित पोथी संजयजीक अनुवाद कौशलक गवाही रहल अछि पोथीक शुभाशंसामे प्रख्यात लेखिका शेफालिका वर्मा ठीके लिखने छथि- ‘ एहि कवि रहस्य केर मैथिली अनुवाद विलक्षण भेल अछि

 कवि रहस्यवर्ष  1928-29 ईक मध्य देल गेल प्रख्यात विद्वान महामहोपाध्याय गंगानाथ झाक सारगर्भित विशद व्याख्यानक संकलन अछि   एहि पोथीमे दुटा खंड अछि - कवि-रहस्य कविचर्या- राजचर्या


 कवि-रहस्यक अंतर्गतवांग्मय  स्वरुप, ‘काव्यपुरुष, साहित्य-वधु-संयोग , ‘शिष्य  भेद , ‘काव्य उत्पत्ति, ‘कविलक्षण भेद , ‘शब्दस्वरुप , ‘काब्यपढक ढंग , ‘काव्यार्थ मूल, ‘साहित्य विषय आदि जेहन महत्वपूर्ण विषय पर विचार उपस्थापित कएल गेल अछि दोसर खंडक अंतर्गतकवि कर्तव्य ,’कवित्व- शिक्षा , ’राजा कर्तव्य, ‘चोरी,  ‘कविक समय, ‘ देश-विभाग, ‘काल-समय, ‘नानाशास्त्र- परिचय उल्लेखनीय अछि  

अनुवाद ओहो साहित्यिक अनुवाद  अत्यंत  चुनौतीपूर्ण  कठिन काज थिक साहित्यिक अनुवाद भाषाक नहि भावक होयत अछि  ताहि लेल अनुवादकमे भाषिक विलक्षणताक संग संग भावभूमिक भरल पूरल चास होयबाक चाही समीक्षगत पोथीमे दुनु गुण विशेषता संजयजीमे परिलक्षित रहल अछि हुनक  अनुवादक भाषा शैली प्रभाव्य अछि दर्शन, काव्य आदि संबंधी संकल्पनाक दुरूह अभिव्यंजनाकें अतेक सहज सुंदर  ढंगसँ अभिव्यक्त कयने छथि जे लगैत अछि कि  हम मैथिलीक कोनो मूल पोथी पढि रहल छी

 क्लासिक 'कवि रहस्यक' काव्यात्मक, दार्शनिक, भाषिक, वैचारिक आदिक रहस्यकें अपन भाषा मैथिलीक माध्यमसँ मैथिल जन धरि  पहुँचेबाक लेल संजयजीकें बहुत बहुत धन्यवाद। अनुवादक क्षेत्रमे संजयजीसँ बेसी सँ बेसी अनुवाद कार्यक अपेक्षा रखैत साहित्य सृजनक कामना करैत छियैन। शुभमस्तु!

 


पोथी- कवि रहस्य

अनुवादक- संजय झा 'नागदह'

प्रकाशक- नवारंभ

मूल्य- 200 टका

 

समीक्षक : भास्करानन्द झा भास्कर

चलंत : 09432386278

कुक्कुर बिलाड़ि

 कुक्कुर बिलाड़िमे  देखल झगड़ा कत्तेक बेर 
झपटि उठै छल कूक्कुर एक टुकड़ी रोटी लेल 
गरदनि टुटब डरे सुट्ट दS भागय छल बिलाड़ि 
आब की अपने सब देख पबैत छी एहन लड़ाई ?

केना भेलै से जानि नहि एकर पंचैती 
कोन पंच केलक केना फरियौलक से के कहत 
बुझना जाइया कहने हेतै घर ओकर आ बाहर तोहर 
जहिया धरि इ फतबा मानबै,
ततबे दिन धरि पंचायती के रहतौ मोजर 

कए दशक सं देख रहल छी सूझ - बूझ 
कुक्कुरक पिब रहल अछि बिलाड़ि दूध 
सूझ बूझ आ बुधियारीमे भS  रहलै आगा 
मनुखक बुधियारीमे नहि जानि छै की बाधा !

@संजय झा 'नागदह'


गुरुवार, 31 जुलाई 2025

छैठ परमेश्वरी

प्रायः लोक पुछि बैसथि, के छथि छठि मैया ?
चट बुझाए कही हुनका सँ 
षष्ठी तिथि स्त्रीक रूपमे छथि छैठ परमेश्वरी मैया।

इ मैया छथि परम दयालु - करथि सभक मनोरथ पुर 
पूजा करू पुनीत श्रद्धा सँ होयब नहि आहाँ कखनो झूर। 

इ व्रतक छैक बड्ड विधान - पंचमी युक्त षष्ठी छैक वर्जित
मुदा होइ जौं सप्तमी युक्त षष्ठी, तखनो भेल इ उपयुक्त

उदय काल जौं पड़ल षष्ठी, पहिल अर्घ ओहि दिन दी
आ प्रातः जखन सप्तमी तिथि हो, भोरका अर्घ तखनहि दी। 

इ पूजा थिक सूर्यक पूजा पहिल अर्घ भेल साँझमे 
प्रातः जखन लालिमा निकलय दोसर अर्घ दी भोरमे। 

आदित्य देव मुख्य रूप सँ पुजल जाइछ आरोग्य लेल
नहि अछि एहिमे कोनो बाधा स्त्री आओर पुरुष लेल। 

जाति-पाती के बाते छोड़ू - एकर नहि छैक कोनो विचार
भगवान भास्कर पुरवथि मनोरथ - सबके लेल एक्कहि विचार। 

@संजय झा 'नागदह'

सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

रावण कियाक नहि मरैत अछि ?


रामलीलाक आयोजनक तैयारी पूर्ण भ' गेल छल तहन ई प्रश्न उठल जे रावणक पुतला केना आ कतेक मे ख़रीदल जाए ? ओना रामलीला आयोजनक सचिव रामप्रसाद छल तैं इ भार ओकरे पर द' देल गेल। भरिगर जिम्मेदारी छल। रावण ख़रीदबाक छल। संयोग सँ एकटा सेठ एहि शुभकार्य लेल अपन कारी कमाई मे सँ पांच हजार टाका भक्ति भाव सहित ओकरा द' देलक। मुदा एतबे सँ की होएत ? नीक आयोजन करबाक छलै। चारि गोटा कहलक चन्दा के रसीद बनबा लिअ। जल्दिये टाका भ' जाएत। सैह भेल। चंदाक रसीद छपबा क' छौड़ा सबके द' देल गेल। छौड़ा सब बानर भ' गेल। एकटा रसीद ल' क' रामप्रसाद सेहओ घरे- घर घूम' लागल।
घुमैत - घुमैत एकटा आलीशान बंगलाक सामने ओ रुकल। फाटक खोलि क' कॉल वेळक बटन दबेलक। भीतर स' कियो बहार नहि निकलल। ( आलीशान घर मे रह' बला आदमी ओहुना जल्दी नहि निकलैत अछि ) रामप्रसाद दोहरा क' कॉलवेळ बजेलक - ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग एहि बेर तुरन्त दरबाजा खुजल आ एकटा साँढ़ जकाँ 'सज्जन' दहाड़इते बाजल - की छै ? की चाही ? ( गोया प्रसाद पुछलक - भिखाड़ी छैं ? ) 
'' हं .... हं , हम रावणक पुतला जडेबाक लेल चन्दा एकत्रित क' रहल छी " रामप्रसाद कने सहमिते बाजल। 
" हूँ ........ चन्दा त' द' देबउ मुदा ई कह रावण कतेक साल स' जड़बैत छैं ?
" सब साल जड़बै छियै। '' रामप्रसाद जोरदैत बाजल। 
" जखन सब साल जड़बै छैं त' आखिर रावण मरै कियाक नहि छौ ? सब साल कियाक जीब जाई छौ ? कहियो सोचलहिन ? " 
" ई त' हम नहि सोचलहुँ। " रामप्रसाद एहि प्रश्न कने प्रभावित भ' गेल।
“त' आखिर कहिया सोचबै ? एह कारण छौ जे रावण कहियो मरिते नहि छौ। . . . . . . ठीक छै रसीद काटि दे।"
" ठीक छै , की नाम लिखु ? "
" लिख - - - रावण। "
" रावण ? ? ? " रामप्रसाद कने बौखलायल ।
" हँ, हमर नाम रावण अछि। की सोचैं छैं की राम राम हमरा मारि देने छल ? नहि, यहां नहि छै। दरअसलमे रामक तीर हमर ढ़ोढ़ी पर जरूर लागल छल। लेकिन हम वास्तव मे मरल नहि रहि। केवल हमर शरीर मरल छल, आत्मा नहि। गीता तू पढ़ने छैं ? हमर आत्मा कहियो नहि मरि सकैत अछि। "
"त' कि आहाँ सच्चे मे रावण छी ? हमरा विश्वास नहि होइत अछि।" रामप्रसाद भौंचक होइत बाजल।
" हँ ! त' कि तोरा आश्चर्य होइत छौ ? हेबाको चाही। मुदा सत्यके नकारल नहि जा सकैत छैक। जहिया तक संसारक कोनो कोण मे अत्याचार, साम्राज्यवाद, हिंसा आ अपहरण आ की प्रद्युमन एहन ( जे गुड़गांवक रेयान इंटरनेशन स्कूल मे भेल ) जघन्य अपराध होइत रहत तहिया तक रावण जीविते रहत। " तथाकथित रावण बाजल। ": से त' छै , मुदा - - - - ।" रामप्रसाद माथ पर स' पसीना पोछैत बाजल। " मुदा की ? रे मुर्ख ! राम त" एखनो जीविते छै। ओहो हमरे जकाँ अमर छै। ओकर नीक आ हमर अधलाहक मध्य द्वन्द त' सदैव चलैत रहत। हम जनैत छी, ने नीकक अंत हेतै आ ने अधलाहक। एहि तरहेँ तोरो चन्दा के खेल चलिते रहतौ। अच्छा आब रसीद काट। "
" अच्छा जे से कतेक लिखू ? " रामप्रसाद डेराइते बाजल। लिख, पाँच हजार। की, ठीक छौ ने ? हमर भाय धन कुबेर अछि। लाखो रुपया विदेश सँ भेजैत अछि। हमरा रुपयाक की कमी ? एकटा सोनाक लंका जड़ि गेल त' की भ' गेलै ? जयवर्धनक लंका मे एखन तक अत्याचार चलिते छै ? ई ले पाँच हजारक चेक। " रावण चेक काटि रामप्रसाद के द' देलक आ दहाड़ईत बाजल --- " चल आब भाग एतय स'।"
रामप्रसाद डेराइते बंगला सँ बाहर भागल। बाहर देखैत अछि एकटा कार ठाढ़ छै आ दू टा खूंखार गुण्डा एकटा असहाय लड़कीके खिंचैत रावणक आलिशान बंगला दिस ल' ;जा रहल छै। रामप्रसाद घबरा गेल। ओ पाँच हजार रुपयाक चेक फेर सँ जेबी स' निकालि देखलक आ सोच' लागल कि ई सच्चे रावण छल की ओकर प्रतिरूप छल ? ओकरा किछ समझ मे नहि आएल। ओ ओत' स' लंक लागि भागल ओहि मे ओकरा अपन भलाई बुझना गेलैक।
रामलीला आयोजनक अध्यक्षके जखन एहि बातक पता चलल कि रामप्रसाद लग दसहजार रुपया इकट्ठा भ' गेल त' ओ दौड़ल - दौड़ल रामप्रसाद लग गेल आ कहलक ----- " रे भाई रामप्रसाद, सुनलियौ जे चन्दा मे दसहजार रुपया जमा भ' गेलौ ? चल आई राति सुरापान कएल जाए। की विचार छौ ?"
" देखु अध्यक्ष महोदय ! ई रुपया रावणक पुतला ख़रीदबाक वास्ते अछि। हम एकरा फ़ालतूक काज मे खर्च नहि क' सकैत छी। " रामप्रसाद विनम्र भाव सँ कहलक।
अध्यक्ष गरम भ' गेलाह। बजलाह --- " वाह रे हमर कलयुगी राम ! रावण जड़ेबाक बड्ड चिन्ता छौ तोरा ? चल सबटा रुपया हमरा हवाला करै, नहि त' ठीक नहि हेतौ। "
" ख़बरदार ! जे रुपया मंगलौं त' ! आहाँके लाज हेबाक चाही। इ रुपया मौज - मस्ती के लेल नहि बुझू आहाँ ? रामप्रसाद बिगड़ैत बाजल। एतै छै चन्दाक रसीद ल' क' घूम' बला छौड़ा सभक वानर सेना। चारु कात सँ घेर क' ठाढ़ भ' गेल। रामक जीत भेल। अध्यक्ष ( जे रावणक प्रतिनिधि छल ) ओहिठाम सँ भागल। 
खैर ! रावणक पैघ विशालकाय पुतला खरीद क' आनल गेल आ विजयादशमी सँ एक दिन पहिनहि राईत क' मैदान मे ठाढ़ क' देल गेल। अगिला दिन खूब धूमधाम सँ झाँकी निकालल गेल। सड़क आ गली - कूची सँ होइत राम आ हुनकर सेना मैदान मे पहुँचल। जाहिठाम दस हजारक दसमुखी रावण मुस्कुराइत ठाढ़ छल। रावणक मुस्कुराहट एहन लागि छल बुझू ई कहि रहल हो कि " राम कहिया तक हमरा मारब' हम त' सब दिन जीबिते रहब। राम रावणक मुस्कुराहट नहि देख रहल छलाह। ओ त' जनताक उत्साह देखैत प्रसन्न मुद्रा मे धनुष पर तीर चढ़ौने रावणक पेट पर निशाना लगबक लेल तत्पर भ' रहल छलाह। कखन आयोजकक संकेत भेटत आ ओ तीर चलोओता। मुदा कमीना मुख्य अतिथि एखन तक नहि आएल छल। (ओहिना जेना भारतीय रेल सब दिन देरिये भ' जाएल करैत छैक ) आयोजक लोकनि सेहओ परेशान छलाह। आधा घंटा बीत गेल। अतिथि एलाह। आयोजकक संकेत भेल। आ ----- राम तुरन्त अपन तीर रावण दिस छोड़ि देलाह। तीर हनहनाईत पेट पर नहि छाती पर जा लागल। आ एहिकसँग धमाकाक सिलसिला शुरू भ' गेल, त' मोसकिल सँ पाँच मिनट मे सुड्डाह। बेसी रोशनीक संग रावण स्वाहा भ' गेल। ओकरा जगह पर एकटा लम्बा बाँस एखनो ठाढ़ छल। किछ लोक छाऊर उठा - उठा क' अपन घर ल' जाए लागल। (पता नै जाहि रावणके लोक जड़ा दैत छैक ओहि रावणक छाऊर के अपना घर मे कियाक रखैत अछि ?)
किछ लोक बाँस आ खपच्ची लेबक लेल सेहओ लपकल। ओहिमे एकटा रामप्रसाद सेहओ छल। लोक सब बाँस आ लकड़ी तोइर - तोइर क' बाँटि लेलक आ अपन घर दिस बिदा भ' गेल। रामप्रसाद बाँसक खपच्ची ल' क' रस्ता पर चलल जाइत छल कि एकाएक एकटा कार ओकरा लग रुकल आ एक आदमी ऊपर मुँह बाहर निकालि क' अट्टहास करैत बाजल - - - " की रावण जड़ा क ' आबि गेलौं ? एहि बेर ओ मरल की नहि ? हा - - - हा - - - हा - - - । " ओ वैह आदमी छल जे अपना आपके रावण कहैत पाँच हजार रुपयाक चेक देने छल। रामप्रसादक मुँह बन्न। घबराईते बाजल - - " जी - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - , जड़ा देलियै। "
" मुदा ई बाँस आ खपच्ची कियाक ल' क' जा रहल छै ? रावण बाजल। " हँ , कहल जाईत छैक जे एहिसँ दुश्मन के मारला सँ ओकर हानि होइत छैक। " रामप्रसाद बाजल। " ठीक, त' एहि सँ लोक अपन बुराई के कियाक नहि अन्त क' दैत छैक ? एकरा घर मे रैखिक' तू सब रावणके जान मे जान आनि दैत छहक। तैं त' हम कहैत छी कि हम मरियो क' जीवित केना भ' जाएत छी ! रावण बाजल। ई सुनिते रामप्रसाद बाँस आ खपच्ची स' ओकरा हमला करबाक लेल लपकल, मुदा रावण कार चलबैत तुरन्त भागि गेल। ओ एखनो जीविते अछि।
कहानी का नाम : रावण मरता क्यों नहीं ?
लेखक : संजय स्वतंत्र 
पुस्तक का नाम : बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपइया 
प्रकाशक : कोई जानकारी पुस्तक पर उपलब्ध नही
अनुदित भाषा : मैथिली 
अनुदित कर्ता : संजय झा "नागदह" 
दिनांक : 29/10 / 2017 , समय : 02 :11 am
कहानीक अनुदित नाम : रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

शनिवार, 18 जून 2016

जगाओ जगाओ !!

जगाओ जगाओ 
पर किसे ?
किसी और को नहीं
अपने सपनो को 
अपने आप को
अपने आश को
अपने रोम - रोम को
खुद जाग जाओगे
तो
जिसने तुम्हारी जगा हुआ
जोश को
होश को
उन्नत और उद्दत रूप को
देख लेगा
तब तक नहीं 
सो पायेगा
जब तक तुम्हारी 
तरह जग नहीं जाएगा ।


----संजय झा "नागदह"

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

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