सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

रावण कियाक नहि मरैत अछि ?


रामलीलाक आयोजनक तैयारी पूर्ण भ' गेल छल तहन ई प्रश्न उठल जे रावणक पुतला केना आ कतेक मे ख़रीदल जाए ? ओना रामलीला आयोजनक सचिव रामप्रसाद छल तैं इ भार ओकरे पर द' देल गेल। भरिगर जिम्मेदारी छल। रावण ख़रीदबाक छल। संयोग सँ एकटा सेठ एहि शुभकार्य लेल अपन कारी कमाई मे सँ पांच हजार टाका भक्ति भाव सहित ओकरा द' देलक। मुदा एतबे सँ की होएत ? नीक आयोजन करबाक छलै। चारि गोटा कहलक चन्दा के रसीद बनबा लिअ। जल्दिये टाका भ' जाएत। सैह भेल। चंदाक रसीद छपबा क' छौड़ा सबके द' देल गेल। छौड़ा सब बानर भ' गेल। एकटा रसीद ल' क' रामप्रसाद सेहओ घरे- घर घूम' लागल।
घुमैत - घुमैत एकटा आलीशान बंगलाक सामने ओ रुकल। फाटक खोलि क' कॉल वेळक बटन दबेलक। भीतर स' कियो बहार नहि निकलल। ( आलीशान घर मे रह' बला आदमी ओहुना जल्दी नहि निकलैत अछि ) रामप्रसाद दोहरा क' कॉलवेळ बजेलक - ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग एहि बेर तुरन्त दरबाजा खुजल आ एकटा साँढ़ जकाँ 'सज्जन' दहाड़इते बाजल - की छै ? की चाही ? ( गोया प्रसाद पुछलक - भिखाड़ी छैं ? ) 
'' हं .... हं , हम रावणक पुतला जडेबाक लेल चन्दा एकत्रित क' रहल छी " रामप्रसाद कने सहमिते बाजल। 
" हूँ ........ चन्दा त' द' देबउ मुदा ई कह रावण कतेक साल स' जड़बैत छैं ?
" सब साल जड़बै छियै। '' रामप्रसाद जोरदैत बाजल। 
" जखन सब साल जड़बै छैं त' आखिर रावण मरै कियाक नहि छौ ? सब साल कियाक जीब जाई छौ ? कहियो सोचलहिन ? " 
" ई त' हम नहि सोचलहुँ। " रामप्रसाद एहि प्रश्न कने प्रभावित भ' गेल।
“त' आखिर कहिया सोचबै ? एह कारण छौ जे रावण कहियो मरिते नहि छौ। . . . . . . ठीक छै रसीद काटि दे।"
" ठीक छै , की नाम लिखु ? "
" लिख - - - रावण। "
" रावण ? ? ? " रामप्रसाद कने बौखलायल ।
" हँ, हमर नाम रावण अछि। की सोचैं छैं की राम राम हमरा मारि देने छल ? नहि, यहां नहि छै। दरअसलमे रामक तीर हमर ढ़ोढ़ी पर जरूर लागल छल। लेकिन हम वास्तव मे मरल नहि रहि। केवल हमर शरीर मरल छल, आत्मा नहि। गीता तू पढ़ने छैं ? हमर आत्मा कहियो नहि मरि सकैत अछि। "
"त' कि आहाँ सच्चे मे रावण छी ? हमरा विश्वास नहि होइत अछि।" रामप्रसाद भौंचक होइत बाजल।
" हँ ! त' कि तोरा आश्चर्य होइत छौ ? हेबाको चाही। मुदा सत्यके नकारल नहि जा सकैत छैक। जहिया तक संसारक कोनो कोण मे अत्याचार, साम्राज्यवाद, हिंसा आ अपहरण आ की प्रद्युमन एहन ( जे गुड़गांवक रेयान इंटरनेशन स्कूल मे भेल ) जघन्य अपराध होइत रहत तहिया तक रावण जीविते रहत। " तथाकथित रावण बाजल। ": से त' छै , मुदा - - - - ।" रामप्रसाद माथ पर स' पसीना पोछैत बाजल। " मुदा की ? रे मुर्ख ! राम त" एखनो जीविते छै। ओहो हमरे जकाँ अमर छै। ओकर नीक आ हमर अधलाहक मध्य द्वन्द त' सदैव चलैत रहत। हम जनैत छी, ने नीकक अंत हेतै आ ने अधलाहक। एहि तरहेँ तोरो चन्दा के खेल चलिते रहतौ। अच्छा आब रसीद काट। "
" अच्छा जे से कतेक लिखू ? " रामप्रसाद डेराइते बाजल। लिख, पाँच हजार। की, ठीक छौ ने ? हमर भाय धन कुबेर अछि। लाखो रुपया विदेश सँ भेजैत अछि। हमरा रुपयाक की कमी ? एकटा सोनाक लंका जड़ि गेल त' की भ' गेलै ? जयवर्धनक लंका मे एखन तक अत्याचार चलिते छै ? ई ले पाँच हजारक चेक। " रावण चेक काटि रामप्रसाद के द' देलक आ दहाड़ईत बाजल --- " चल आब भाग एतय स'।"
रामप्रसाद डेराइते बंगला सँ बाहर भागल। बाहर देखैत अछि एकटा कार ठाढ़ छै आ दू टा खूंखार गुण्डा एकटा असहाय लड़कीके खिंचैत रावणक आलिशान बंगला दिस ल' ;जा रहल छै। रामप्रसाद घबरा गेल। ओ पाँच हजार रुपयाक चेक फेर सँ जेबी स' निकालि देखलक आ सोच' लागल कि ई सच्चे रावण छल की ओकर प्रतिरूप छल ? ओकरा किछ समझ मे नहि आएल। ओ ओत' स' लंक लागि भागल ओहि मे ओकरा अपन भलाई बुझना गेलैक।
रामलीला आयोजनक अध्यक्षके जखन एहि बातक पता चलल कि रामप्रसाद लग दसहजार रुपया इकट्ठा भ' गेल त' ओ दौड़ल - दौड़ल रामप्रसाद लग गेल आ कहलक ----- " रे भाई रामप्रसाद, सुनलियौ जे चन्दा मे दसहजार रुपया जमा भ' गेलौ ? चल आई राति सुरापान कएल जाए। की विचार छौ ?"
" देखु अध्यक्ष महोदय ! ई रुपया रावणक पुतला ख़रीदबाक वास्ते अछि। हम एकरा फ़ालतूक काज मे खर्च नहि क' सकैत छी। " रामप्रसाद विनम्र भाव सँ कहलक।
अध्यक्ष गरम भ' गेलाह। बजलाह --- " वाह रे हमर कलयुगी राम ! रावण जड़ेबाक बड्ड चिन्ता छौ तोरा ? चल सबटा रुपया हमरा हवाला करै, नहि त' ठीक नहि हेतौ। "
" ख़बरदार ! जे रुपया मंगलौं त' ! आहाँके लाज हेबाक चाही। इ रुपया मौज - मस्ती के लेल नहि बुझू आहाँ ? रामप्रसाद बिगड़ैत बाजल। एतै छै चन्दाक रसीद ल' क' घूम' बला छौड़ा सभक वानर सेना। चारु कात सँ घेर क' ठाढ़ भ' गेल। रामक जीत भेल। अध्यक्ष ( जे रावणक प्रतिनिधि छल ) ओहिठाम सँ भागल। 
खैर ! रावणक पैघ विशालकाय पुतला खरीद क' आनल गेल आ विजयादशमी सँ एक दिन पहिनहि राईत क' मैदान मे ठाढ़ क' देल गेल। अगिला दिन खूब धूमधाम सँ झाँकी निकालल गेल। सड़क आ गली - कूची सँ होइत राम आ हुनकर सेना मैदान मे पहुँचल। जाहिठाम दस हजारक दसमुखी रावण मुस्कुराइत ठाढ़ छल। रावणक मुस्कुराहट एहन लागि छल बुझू ई कहि रहल हो कि " राम कहिया तक हमरा मारब' हम त' सब दिन जीबिते रहब। राम रावणक मुस्कुराहट नहि देख रहल छलाह। ओ त' जनताक उत्साह देखैत प्रसन्न मुद्रा मे धनुष पर तीर चढ़ौने रावणक पेट पर निशाना लगबक लेल तत्पर भ' रहल छलाह। कखन आयोजकक संकेत भेटत आ ओ तीर चलोओता। मुदा कमीना मुख्य अतिथि एखन तक नहि आएल छल। (ओहिना जेना भारतीय रेल सब दिन देरिये भ' जाएल करैत छैक ) आयोजक लोकनि सेहओ परेशान छलाह। आधा घंटा बीत गेल। अतिथि एलाह। आयोजकक संकेत भेल। आ ----- राम तुरन्त अपन तीर रावण दिस छोड़ि देलाह। तीर हनहनाईत पेट पर नहि छाती पर जा लागल। आ एहिकसँग धमाकाक सिलसिला शुरू भ' गेल, त' मोसकिल सँ पाँच मिनट मे सुड्डाह। बेसी रोशनीक संग रावण स्वाहा भ' गेल। ओकरा जगह पर एकटा लम्बा बाँस एखनो ठाढ़ छल। किछ लोक छाऊर उठा - उठा क' अपन घर ल' जाए लागल। (पता नै जाहि रावणके लोक जड़ा दैत छैक ओहि रावणक छाऊर के अपना घर मे कियाक रखैत अछि ?)
किछ लोक बाँस आ खपच्ची लेबक लेल सेहओ लपकल। ओहिमे एकटा रामप्रसाद सेहओ छल। लोक सब बाँस आ लकड़ी तोइर - तोइर क' बाँटि लेलक आ अपन घर दिस बिदा भ' गेल। रामप्रसाद बाँसक खपच्ची ल' क' रस्ता पर चलल जाइत छल कि एकाएक एकटा कार ओकरा लग रुकल आ एक आदमी ऊपर मुँह बाहर निकालि क' अट्टहास करैत बाजल - - - " की रावण जड़ा क ' आबि गेलौं ? एहि बेर ओ मरल की नहि ? हा - - - हा - - - हा - - - । " ओ वैह आदमी छल जे अपना आपके रावण कहैत पाँच हजार रुपयाक चेक देने छल। रामप्रसादक मुँह बन्न। घबराईते बाजल - - " जी - - - हाँ - - - हाँ - - - हाँ - - - , जड़ा देलियै। "
" मुदा ई बाँस आ खपच्ची कियाक ल' क' जा रहल छै ? रावण बाजल। " हँ , कहल जाईत छैक जे एहिसँ दुश्मन के मारला सँ ओकर हानि होइत छैक। " रामप्रसाद बाजल। " ठीक, त' एहि सँ लोक अपन बुराई के कियाक नहि अन्त क' दैत छैक ? एकरा घर मे रैखिक' तू सब रावणके जान मे जान आनि दैत छहक। तैं त' हम कहैत छी कि हम मरियो क' जीवित केना भ' जाएत छी ! रावण बाजल। ई सुनिते रामप्रसाद बाँस आ खपच्ची स' ओकरा हमला करबाक लेल लपकल, मुदा रावण कार चलबैत तुरन्त भागि गेल। ओ एखनो जीविते अछि।
कहानी का नाम : रावण मरता क्यों नहीं ?
लेखक : संजय स्वतंत्र 
पुस्तक का नाम : बाप बड़ा न भइया सबसे बड़ा रुपइया 
प्रकाशक : कोई जानकारी पुस्तक पर उपलब्ध नही
अनुदित भाषा : मैथिली 
अनुदित कर्ता : संजय झा "नागदह" 
दिनांक : 29/10 / 2017 , समय : 02 :11 am
कहानीक अनुदित नाम : रावण कियाक नहि मरैत अछि ?

शनिवार, 18 जून 2016

जगाओ जगाओ !!

जगाओ जगाओ 
पर किसे ?
किसी और को नहीं
अपने सपनो को 
अपने आप को
अपने आश को
अपने रोम - रोम को
खुद जाग जाओगे
तो
जिसने तुम्हारी जगा हुआ
जोश को
होश को
उन्नत और उद्दत रूप को
देख लेगा
तब तक नहीं 
सो पायेगा
जब तक तुम्हारी 
तरह जग नहीं जाएगा ।


----संजय झा "नागदह"

गुरुवार, 21 जनवरी 2016

क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

ईद-उल-जुहा (बकरीद) मुबारक हो।
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कुर्बानी गर देना चाहो 
देकर देखो एक बार 
काम, क्रोध, मद, मोह और हिंसा 
नहीं जरुरत पड़ेगा मौला
बकरे का फिर बार - बार।

जान हमारा लेकर तुम 
कहते देते हम कुर्वानी 
एक बार पूछो मौला से 
क्या ये है सच्ची कुर्वानी ?

बन खुदा के नेक बन्दे 
कर्म,धर्म और ईमान से 
हराम जिसे पसन्द न मौला 
क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

संजय झा "नागदह" 

दिनांक : 25/09/2015

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

आज (18/08/2015) दो संदिग्ध लोगों को पुलिस की तत्काल हिरासत में देने में सफल हुआ ।

आज दो संदिग्ध लोगों को पुलिस की तत्काल हिरासत में देने में सफल हुआ । कैसे ?
आज अस्वस्थ होने के कारन कार्यालय नहीं जा सका। दो लोग पैंट ,टी सर्ट पहने चंदा मांगने आये। मेरी पत्नी से कहा की यहाँ भंडारा हो रहा है ,आप अपना सहयोग दीजिये किसी ने हजार दिया है तो कोई इतना, कोई उतना , इस तरह बोल कर रहा था। मैं एक कमरे लेटा हुआ था , बोली कोई चंदा माँगने आया है जरा देखिये कौन है ? मैंने कहा आप ने दरवाजा क्यों खोला ? बोली आप घर में थे इसलिए। देखिये कौन है ?
मैं दरवाजे पर गया पूछा - जी बताइये क्या है ?
संदिग्ध - भंडारा करवा रहे है ,इसलिए सहयोग चाहिए।
मैं - कहाँ ?
संदिग्ध - यहीं जिन्दल रोड पर।
मैं - कौन करवा रहा है ?
संदिग्ध - (छणिक मौन होकर) शिव शक्ति बाले हैं।
मैं - कौन हैं ये शिव - शक्ति बाले ?
संदिग्ध - दो भगवान की फोटो देते हुए , ये
मैं - ये क्या है ? ये तो फोटो है। यहाँ ऐसा प्रायः कोई नहीं है जो इस तरह काम करे और मुझे पता न हो ? नाम बताओ कौन करबा रहे है ?
संदिग्ध - फिर उसने एक विजिटिंग कार्ड निकालकर दिया। (कार्ड पर लिखा था "प्राचीन श्री शिव शक्ति शिशु आश्रम अन्नक्षेत्र भंडार (रजि ०) ,ऋषिकेश रोड, हरिद्वार। )
मैं - तो आपका ये सस्था तो हरिद्वार की है , आप कह रहे हो की जिंदल रोड पर भंडारा कराओगे , चलो मेरे साथ बताओ कहाँ भंडारा करोगे ? यहाँ ऐसा शायद कोई नहीं है जो इस तरह का नेक कार्य करे और मेरे जानकारी में न हो। फिर मैंने पूछा - कहाँ रहते हो ?
संदिग्ध - शाहदरा।
मैं - (दूसरे संदिग्ध से ) और तुम ?
संदिग्ध - (दूसरा संदिग्ध पहले से ) तुम ही बता दो।
संदिग्ध - (पहला संदिग्ध ) यहीं रहते है।
मैं - (मुझे इसी बात पर संदेह हो गया ) मैंने कहा - रुको पहले चौकी फोन करता हूँ। (और मैं फोन लेने घर के अंदर आया )
फिर जैसे ही गेट पर जाता हूँ दोनों फरार। चारो तरफ ढूंढा कही दिखाई नहीं दिया। फिर अपने पडोसी मित्र श्री राजेश गुप्ता जी को आवाज दिया, वो भी आज किसी कारन वश घर में ही थे। फिर दोनों मिलकर ढूंढा , अगल - बगल से पूछा कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। मुझे लगा की वो घर के पीछे से एक रास्ता है उधर से निकल गया। फिर हमदोनो ने सोचा की चौकी को इस बात से अवगत कराया जाय। दोनों चौकी गए और चौकी इंचार्च श्री राठौर जी को पूरी कहानी सुनाया। चौकी इंचार्च श्री राठौर जी ने तत्काल पी सी आर को सुचना दिया की इस तरह के दो व्यक्ति कही दिखे तो उसे पकड़ कर चौकी ले आना। फिर हमलोग वापिस हो गए। रास्ते में दोनों हमदोनों ने सोचा की एक बार पूरा कॉलोनी जहाँ तक संभव हो खोजते है मिल जाएगा तो ठीक रहेगा। हम दोनों ने अपने अनुमान के अनुसार उसे ढूंढना शुरू किया और वो दोनों मिल गया। फिर हमने तुरंत पी सी आर को कॉल किया और पी सी आर वैन एक मिंनट में हाजिर हो गया। दोनों को पी सी आर वैन में बिठा चौकी बिदा किया और हमदोनो भी पीछे -पीछे चौकी गए। चौकी में श्री राठौर जी थे ही और उन्होंने पूछताछ करना शुरू कर दिया ,मगर जबाब संतोषप्रद नहीं था। इसलिए दोनों को चौकी की हिरासत में आगे तहकीकात के रख लिया गया।
हमलोग घर आ गए , अब चौकी की कार्रवाई अपने हिसाब से होगा, जैसा पुलिस पूछताछ के अनुसार सही हो। पर हमने एक जिम्मेवार और सतर्क नागरिक होने का अपना धर्म निभाया।

संजय झा "नागदह" 
दिनांक :18/08/2015

सोमवार, 18 जनवरी 2016

17 जनवरी 2016 को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी जिसमे मैंने भाग लिया !

17 जनवरी 2016  को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी ! जिसमें मैथिली के लेखक ब्लॉगर एवं कई विद्वान की मौजूदगी में अगले महीने के 21 फरवरी को मैथिली साहित्य महासभा का एक सुन्दर भव्य कार्यक्रम होना प्रस्तावित किया गया।  
विभय झा,विजय झा,पंकज प्रसून,संजय झा 'नागदह', हेमन्त झा आ.........।


हेमन्त झा,विजय झा,संजय झा 'नागदह',..........,पंकज प्रसून,ललितेश रौशन,विभय झा आ संजीव झा ।

ललितेश रौशन , विजय झा,विमल जी मिश्र,संजीव झा और संजय झा 'नागदह' । 


 मनीष झा 'बौआ भाई' क संग।  


 विजय झा क संग। 


बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

रातुक बारह बजे कनियां सं फोन पर बतियाइत छत पर गेलौं कि देखैत छी आगि लागल। जोर सं हल्ला कैल हौ तेजन हौ तेजन रौ हेमन .. अपन पित्तियौत भैयारी स...

आहाँ सभक बेसी पसन्द कएल - आलेख /कविता /कहानी