शनिवार, 16 जनवरी 2016

बाय बाय

न खुद का पता

 
न खुदा का पता 



बैठा हूँ कहाँ ?



न इसका पता 



न सोच का पता



न समझ का पता 



जैसी बजी घंटी 



मेरी फोन की 



सब कुछ हो गयी लापता 



क्योकि फोन उठाते ही 



उन्होंने बता दी अपनी पता 


अच्छा चलते है ---बाय बाय


--- संजय झा "नागदह"

दिनांक - 05/02/2015

इसी का तो नाम है जिंदगी ये हमदम .....

मन मे है विश्वास 
न ख़ुशी आराम करता है 

न गम 

वक्त गुजर जाती है

विना किये गति परिवर्तन
किस घडी को बिता रहे हो 

ध्यान करो 

क्योकि एक जायेगी 

तभी दूसरी आएगी
रास्ता की दुरी तुम्हे पता नहि 

जाने बाले दूसरे को ढूंढ 

पता भी तो बताएगी 

इस बीच 

ना ख़ुशी होगी ना गम
ये मत सोचना 

जिंदगी ऐसी रहेगी हरदम 

मत सोच ज्यादा 

ये तो आती और जाती ही रहती है 

कभी खुशी कभी गम
इसी का तो नाम है 

जिंदगी ये हमदम .....

इसी का तो नाम है 

जिंदगी ये हमदम .....

----- संजय झा "नागदह"
दिनांक - 06 /02 /2015 

डीलरक किरदानी

गाम गाम में शोर भेल अछि , डीलर अछि बेईमान 
सभक मुँहे सुनि रहल छी, डीलर अछि शैतान। 
लाबै छथि राशन जनता के नाम पर 
आ तुरंत विदा भ जाइत छथि दुकान पर।
दूकानदार सँ कनफुसकी क' क'
दस बजे रातुक समय द' क' ।
सुन दलान देखि अबीह' बौआ 
एकटा बड़का बोड़ा ल' क' ।
पाई नगद तू लेने अबीह' 
दाम में नै तू घिच - पिच करिह' ।
कियाक त' गारिक हार हमहि पहिरै छी 
जनता के श्राप हमहि लैत छी  ।
हाकिम के घुस हमहि दैत छी 
तैयो हम चोरे कहबै छी ।
गौंआँ के बुरबक बनाबी 
अपने हम हाकिम कहाबी ।
सब कियो आगा पाछा करैया
घुस में पान तमाकुल दइया । 
तैयो हम करै छी मनमानी 
ककरो कोनो बात नै मानी ।
दस बोड़ा हम चीनी रखने 
तोरे सब के लेल ।
बाँकी जे दू बोड़ा बाँचत 
जनता के ठकी लेब । 
गाम में दस टा मुँहगर कनगर 
मुंह तकर हम भरबै ।
बाँकी सब ठाम झूठ बाजी क'
चोरी हमहि करबै ।
अगिला खेपी तेल आनब 
तू तखनहि रहिह' सचेत ।
रस्ते में तू ठाढ़ रहिह' पाई टीन समेत
गाम पर अनिते देरी ।
भ' जाइया हेरा फेरी 
मुखिया जी बदमाशी करैया ।
टीन झोरा ल' एतय अबैया
दस किलो चीनी आ तेल ।
ओकरो मंगनी देबय पड़ैया
मुदा दस किलो चीनी आ तेल पर ।
मुखहिया जी सकदम 
टकरा बाद जे मोन करैया ।
करै छी अपने मन 
टकरा बाद किरानी सबके ।
झूठ बाजी छी हमहि ठकने 
लोक सब हमर किरदानी के । 
महीना में दस टा दैत अछि दरखास 
जा गांधी (पांच सौ ) द' आफिसर के 
तुरंत करा दैत छी बरखास ।
घुसक छैक एखन जमाना 
तेन ने हम छी बनल दिबाना । 
चारि साल धरि कहुना कहुना
ई कोटा चलि जाएत ।
पाँचम साल बुझह 
सीमेंट जोड़ी दू तल्ला पिटायत ।
बेसी तोरा की कहिय'
एहि में घर बैसल बड्ड नफ्फा ।
मुदा आशीर्वाद में कखनो 
घर घरायण सब सफ्फा ।

(१९९२ के डायरी सँ )
श्री शृष्टि नारायण झा 
नागदह 

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि
गाड़ी एक देल ठोकर माइर
सोचल एहन अभागल की हमहि ?
कतेक सताओत एकसर हमरे 
कखनहुँ सोचि हम इ की देखल 
सोचि - सोचि मन होइत छल बेकल 
घर सँ बहार निकलल नहि जाए 
बेर - बेर स्वप्न याद आबि जाए
कतेक सोचि कार्यालय गेल 
अबैत काल सपना सच भेल 
बाँचल मुदा सपूर्ण शरीर 
थोड़ मोड़ लागि कटल इ पीर 
धन्यवाद प्रभु के बेर - बेर 
पुनि दुर्दिन नहि देखाबहिं फेर।  

--- संजय झा "नागदह"
१३/०२/२०१५ 

हकार


हर्षक संग मैथिल जन के पठवी प्रेम हकार 

मातृभाषा दिवस पर मैथिली साहित्यक चर्चाक भेल अछि विचार 


कोना बचायब, कोना बढ़ायब मैथिलीक मान सम्मान 

एही सब बात पर चर्चा खातिर बजाओल गेल छथि मैथलीक विद्वान 


नव संस्था नव ऊर्जाक लेल जड़ाओल जाएत दीप

प्रारम्भ होयत सभाक संचाल भ' गोसाउनिक गीत 


---संजय झा "नागदह" 8010218022

बीहनि कथा - चुप्प नै रहल भेल ?

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