1. मिथिला में अगर कियो दरिद्र भ दोसर प्रदेश में जीविकोपार्जन के लेल
नहि गेल त' ओ अछि मिथिलाक डोम . जे अपन कर्म द्वारा मिथिला के
सेवा में सदैव तत्पर आ सब पावनि के डाली , चंगेरा , सूप , चालनि,
पथिया , कंसुपति, ढाकी, बियनि, इत्यादि सँ सेवा करैत छथि आ सब
पावनि तिहार के मान राखि मिथिलाक मान के सर्वोच्च बना अपन
कतेको अपमान सहैत छथि (शायद भगवान ओकरा में एहन त्यागक
भावना द एहि लोक पर पठेने हेताह )
एहि बेरक मिथिलाक यात्रा में कोनो डोम के बैसल नहि देखल सब अपन -
अपन व्यवसायिक काज में व्यस्त छल - आ हमरा त सब वर्ग आ वर्ण सँ
वेसी स्वाबलंबी बुझायल . जय मिथिला , जय मैथिली,
2. जो खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता - उसको बन्द आँख से देख
सकते है।खुली आँख सिर्फ उसे ही देख सकता है जिसको छुआ जा सके -
जबकि बन्द आँख( मन कि आँख) छुए जाने योग्य और ना छूने योग्य
दोनों को देख सकता है और यही कारन है कि आँखों से अँधा भी यहाँ
जिंदगी गुजार देता / देती है।
अतः ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि मन कि आँख कि दृष्टि
वास्तविक आँख से कई गुना बड़ी होती है।
3. "साहित्य के समुद्र में जितना डूबता हूँ उतना ही डूबने का मन करता है
और मन को उतनी ही शान्ति और आनन्द मिलता है जितना की
असहज गर्मी के मौसम में तालाब के अन्दर बैठे रहने पर सुन्दर
शीतलता "
--------------संजय झा "नागदह"
07/01/2015
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