दुःख हरो द्वारका नाथ शरण मैं तेरी ……. !
मोबाइलक घण्टी बाजल ! स्क्रीन पर चमकै छल “ कनियाँ के फोन ” !
इग्नोरक त प्रश्ने नहि !! धरफरा क फोन उठौलौं
----- हेलौ ! .... कहु ! सब ठिक कि ने ?
---- की ठीक ! ... लंच केलौं।
----- हँ ! ..... छौड़ा सब ठिक अछि कि ने ?
------ की ठीक रहत ! ...... जखन स' दर्श स्कूल सँ आएल अछि दर्श आ रित्विक दुनू उठ्ठम पटका केने अछि,
मुदा ठीक अछि।
------ यै , हमरा त' आहाँक फोनक घण्टी सुनिकय कने काल लेल बुझू त' हृदयक गति रुकि जाइत अछि ।
होइत रहइया जे की केलक इ सब छौड़ा से नहि जानि । जा धरि आहाँ इ नहि कहि दैत छी जे ई अगत्ती सब
ठीक अछि ता धरि साँस टंगले रहैया नञि बाहर छोड़ि पबै छी आ नञि अन्दर क पबै छी । डरे बुझू प्राण
सुखायल रहैया। तैं कहैत रहैत छी जे फोन अनेरो नहि कैल करु । ( मक्खन लगेलौं )
------- त' आहाँ अपने मोने एक बेर फोन क लेब से त' होइया नहि ! ( निर्विकार बजलैन )
-------- व्यस्त रहै छी , तैं नहि क पबैत छी। ( दाब देलौं )
-------- फेसबुक पर की ऑफिसक में !!! ( कनिया टिपलैन्हि । )
-------- छोड़ू इ बात सब ......... कहु कोनो खास बात !! ( मिमियैलियन )
---------- हँ ! ( हुँकारी देलैन )
---------- से की ? ..... बाजु ! ( मन हुदबुदाय लागल )
---------- काल्हिखन छोटका बौआ सबटा फेनाइल हरा देलकै , से अबैत काल एक बोतल फेनाइल ल' लेब ।
माँछी देखाइत छल, कतवो साफ क दैत छियै तैयौ एक - आध टा आबिए जाइत छैक। ( समस्या प्रकट
केलन्हि )
---------- एकर माने ठीक सँ सफाई नै करैत हेबै । ठीक सँ कहियौ काज बाली के पोछा लगाओत । सबतरि
माँछिये लगै छै की ? ( उत्क्रोँच देलियैन )
----------- यौ अपना भरि त' ठीके सँ लगबै छै, हम ताहि द्वारे आन काज छोड़ि पोछा लगबय काल हम ओकरे
लग ठाढ़ रहै छी जे कहीं कतहुँ छोड़ि नहि दए। ( सफाई देलैन )
------------ गन्दा रहइया तैं न माँछी लगैया ? नहि त' कियै लगितै । ( टीपलहुँ )
------------ केहन गप्प कहै छी , हम त यौ बिना गन्दा के सेहो माँछी लगैत देखलियैया !!! ( कनी गर्मेली )
------------ लागि सकैत अछि जेना खाना परोसि राखी दियौ वा कोनो खाय बला सामान उघार छोड़ि दियौ ,
ओहो सब पर माँछी लागय लागत। हमरा जनैत ता एहनो भ' सकैत अछि। ( मद्धिमें बुझबय लगलहुँ )
----------- सेहो ठीक कहै छी, मुदा माछिक घर में प्रवेश बिना गन्दगी के संभव नहि। घर यदि सम्पूर्ण रूप सँ
साफ़ - सुथरा रहत त' खेनाइ दू मिनट उघारो रहि सकैत अछि , ओहि पर माँछी नहि लागsत। अहुँ के लोक आ
कि हम तावते धरि निक कहब, जा धरि स्वच्छ हृदय सँ संग रहब, आ जहिया मोन में कचरा भरि जायत
तहिया हम की आ दुनियाँ की , नुका क' वा प्रत्यक्ष , कम की बेसी, खराप त कहबे करत । ( ज्ञान देलैनि )
---------- फेनाइल लेल फोन केने छलहुँ की हमरा संग लड़य लेल। हद भ गेल मौका भेटल की टूटि पड़ै छी ।
...... ठीक छै , बड्ड काज अछि । अबैत काल याद रहत त' नेने आयब। ...... फोन धरू ! किछु भोजनो कैल
करी ... खाली हमरे माथ स काज नहि चलाबी !
जा किछु आर टिपतथि ताबैत फोन काटि धम्म स कुर्सी पर बैसि गेलहुँ आ पनिक बोतल मुँह में द देलियै ....
\गट गट ...... !!!!
-------- संजय झा "नागदह"
(प्रकाशित -
http://www.openbooksonline.com/group/maithilisahitya/forum/topics/5170231:Topic:691447)
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