धुमसुरिक चोट सन आखर लिखल
मनुक्ख, कुक्कुड़, बेंग, भाषा ओ संस्कृति समेटल
आंदोलनकारी पर कए प्रहाड़
बाजू अपने की सब भेटल ?
जेहने बुझू तेहने उगल
भलें स्वार्थ सँ हो डूबल
विद्वत् जनक आभाव कहियो नहि
की तैयो सब मैथिल मिलि क'
अष्टम सूची लेल एक भ' जुटल ?
भने भोजन कए बैसल अनशन पर
ध्यान दियौ मात्र ओकर कर्म पर
नहि अपने सन पड़ल घरमे
कनिया संग अछि पलंग पर सुतल
घर सुतल सपनहि घुमि आबथि
दिल्ली,मुंबई ओ कलकत्ता
नहि जाएब हम कोनो दल संग
भलें लोक हो कतबो जुटल
अछि जौं दाबा अपना के बड्ड
हम छी सब सँ होशगर
सिद्ध करू मैथिल जन मे
हम छी सब सँ बुद्धिगर
मन क्रम वचन सँ टांग नहि खिचु
जोड़ लागू पाछा सँ
नहि त' कहियो अपनों सोचब
एहि अदखोई - बदखोई सँ की भेटल ?
-------संजय झा "नागदह"
२५/०२/२०१५
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