अगर मिथिला राज्य क्यों ? तो फिर भारत में अनेको राज्य और केंद्रशाषित प्रदेश क्यों ? सम्पूर्ण भारत एक क्यों नहीं ? भारत में तो ऐसे - ऐसे राज्य है जो कि ८-१० जिला को मिलाकर राज्य बनाया गया है । जबकि मिथिला का मांग तो २८-३० जिला को एक करके माँग किया जा रहा है जिलाओं का अगर गिनती करे तो इस प्रकार है - मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार, समस्तीपुर, मुज़फ्फरपुर, बेगुसराय, खगरिया, वैशाली, भागलपुर, बांका, गोड्डा, साहेबगंज, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, देवघर, दुमका, पाकुर, जामतारा, जमुई, लक्खीसराय और शेखसराय । मिथिला आज से नहीं वरन कई युगों से अपने नाम से जाने जानेवाली धरोहर है । ख़ास कर जो लोग हिन्दू धर्म से जुड़े है वह तो वेद, पुराण और रामायण जैसे ग्रन्थ में मिथिला नाम का जाप तो कर ही चुके हैं और कर ही रहे हैं । मिथिला के लोग जो कि बहुत ही सभ्य है जिसको ब्रिटिश इंडिया से लेकर स्वत्रंत भारत होने के के वावजूद भी किसी ने मिथिला के ऊपर उस दृष्टि से नहीं देखा, जिस तरह अन्य राज्यों को देखा गया ।
आधुनिक समय में १८५७ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज देश को खंडित और कमजोर करने में काफी सक्रीय था । उसी समय नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच युद्ध भी हुआ था । इसी यद्ध (१८१४ -१८१६) के बाद अंग्रेज अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए ०४ मार्च १८१६ को सुगौली संधि किया, जिसमे भारत का मिथिला क्षेत्र का भू - भाग करीब पांच हज़ार वर्गमील नेपाल को दे दिया । ये संधि 'ईस्ट इंडिया कम्पनी और नेपाल का गोरखा राजा के बीच हुआ था । ये अन्याय तो आधुनिक समय में सबसे पहले अंग्रेज ने किया, और मिथिला कि तेजस्वी भूमि को दो देशो में विभक्त कर दिया, सम्भवतः उसको यहाँ से भागने में ये पाप भी सहायक हुआ होगा । नेपाल में जो मैथिली भाषी जिला है वो इस प्रकार है – परसा, बारा, रौतहत, सरलाही, महोत्तरी, धनौसा, सिरहा, सप्तारी, सुनसारी, मोरंग और झापा इसमें से कुछ जिला का भाग सुगौली संधि के समय ब्रिटिश इंडिया ने नेपाल को दे दिया था । उस समय भी एक भाषीय परिवार को अंगेज ने तोड़ कर दो टुकड़ा कर दिया । ये अन्याय भी मिथिलावासी बर्दास्त कर अंग्रेजो को भगाने में भारत को स्वतंत्रत करने और करवाने के लिए एकजूट हो स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े ताकि देश के और टुकड़े -टुकड़े अंग्रेज न कर सकें ।
१९१७ ई० में जो भी भारत का साहित्यिक भाषा था उसको अनिवार्य रूप से कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति स्वर्गीय सर आशुतोष मुखर्जी जी ने प्रतिष्ठित किया । जिसके परिणाम स्वरुप हिंदी, बंगला, मणिपुरी और आसामी के साथ - साथ मैथिली को भी मेट्रिक से लेकर स्नातक तक का विषय बनाया गया । साथ साथ मात्र पाँच साहित्यिक भाषा को एम० ए० का मुख्य विषय के रूप में स्वीकृति मिला जिसके मध्य मैथिली भी था । मैथिली कि अपनी लिपि भी है जिसे मिथिलाक्षर के रूप में जाना जाता है । मैथिली भाषा का बहुत ठोस आधार है । माना जाता है कि जिस भाषा का अपना लिपि अपना व्याकरण और अधिकाधिक बोला जाता हो उसी को ठोस भाषा के रूप स्थापित किया जाता है, जिसको सर्व प्रथम कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा मातृभाषा के रूप सम्मानित किया जा चुका है । बंगला, मणिपुरी, आसामी सबको अपना - अपना राज्य मिल गया, पर शांत मिथिला न्यायिक ग्रन्थ लिखनेबाला मिथिला का किताब पढ़ दूसरों को अधिकार तो दे दिया गया परन्तु न्याय दर्शन पढ़कर भी मिथिला का उपेक्षा किया गया । ये कैसा न्याय है ?
१९२० ई० में कोंग्रेस का नागपुर अधिवेसन में राज्य निर्माण के लिए भाषा को प्राथमिक महत्व दिया गया और आगे चलकर इसी आधार पर कई राज्य बने भी जैसे उड़ीसा, आंध्रा प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मद्रास वर्त्तमान का चेन्नई और आसाम तो प्रथम राज्य है जो कि भाषा के आधार पर ही बनाया गया । १९२१ ई० में असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप जब राष्ट्रिय भावना का उद्भव हुआ उस समय हिंदी का खूब प्रचार किया जा रहा था । खास कर अंग्रेजी को बहिष्कार करने के लिए, जबकि हिंदी राष्ट्र भाषा का स्थान पा चूका था, फिर भी काका कालेलकर मैथिली भाषीय क्षेत्र दरभंगा में बिना धन्यबाद लिए ही अपना सम्भाषण मंच छोड़कर चले गए थे, सिर्फ इसलिए कि उन्होंने ये कह दिया था कि ये हिंदी भाषीय क्षेत्र है और उस पर उनको शांतिपूर्वक विरोध कर दिया गया था कि ये हिंदी भाषीय नहीं बल्कि मैथिली भाषीय क्षेत्र मिथिला है ।
सर जॉर्ज़ गियर्सन के माध्यम से भारत के सभी भाषा का सर्वेक्षण भी किया गया और उन्होंने सबसे पहला मैथिली व्याकरण का किताब भी लिखा जो कि १९२७ ई० प्रकाशित था । परन्तु भाषाई आधार पर राज्य बनाने बाले भारतीय प्रतिनिधि को इस तरफ ध्यान कौन ले जाता ? १९३७ ई० में कलकत्ता के अधिवेशन में इसी नीति को फिर से दोहराया भी गया परन्तु अभी तक मिथिला के तरफ किसी का ध्यान केंद्रित नही हो सका । १९४७ ई० में भारत स्वतंत्र हो गया और १९५० से १९५६ तक भाषा को मुख्य आधार मानते हुए कई राज्य बनाया गया । परन्तु मिथिला कहाँ ? किसी ने भी इसका खोज - खबर नहीं लिया, इस बात को देखते हुए मिथिलावासी को काफी चोट पहुंचा और १९५० -१९५२ आते - आते छोटा -मोटा आंदोलन होने लगा ।
१९७२ -७३ में जब डॉ अमर नाथ झा बिहार लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष बने तब मैथिली को आयोग का एक विषय के रूप में प्रस्ताव का स्वीकृति हुआ । लेकिन ये प्रस्ताव तब तक स्वीकृत प्रस्ताव रहा जब तक स्वर्गीय ललित नारायण मिश्र के भारत में प्रतिष्ठा का उदय नहीं हुआ था । उस समय का मुख्य मंत्री स्वर्गीय केदार पाण्डेय जी थे और उन्ही के अथक प्रयास से मैथिली का एक मुख्य केंद्र मिथिला विश्वविद्यालय का स्थापना किया गया साथ ही लोकसेवा आयोग में मैथिली एक ऐच्छिक विषय के रूप में आरम्भ किया गया । १९९२ में जब श्री लालू प्रसाद यादव जी मुख्य मंत्री थे ,मैथिली विषय को बिहार लोकसेवा आयोग से हटा दिया गया । इससे पुनः मिथिलावासी और ज्यादा आक्रोशित हो गए और मैथिली को भारतीय संबिधान कि अष्टम सूची में रखने के साथ साथ राज्य आंदोलन की गति भी पकड़नी शुरू हो गई । फिर २००३ में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने मैथली आंदोलन को स्वीकार किया और मैथिली को संविधान की अष्टम सूचि में स्थान देकर मिथिलावासी के ऊपर बड़ा ही उपकार किया ।
मिथिला राज्य आंदोलन की मुख्य भूमिका 'अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद्,' मिथिला राज्य निर्माण सेना और 'संयुक्त मिथिला राज्य संघर्ष समिति' कर रही है जब से 'मिथिला राज्य निर्माण सेना' ने मिथिला राज्य का आंदोलन में अपना कदम बढ़ाया है ये आंदोलन जन जन तक आग की लपट की तरह फ़ैल रहा है । वो दिन दूर नहीं जब मिथिलावासी अपना 'मिथिला' राज्य यथा सम्भव शीघ्र ही देख पाएंगे । बिहार सरकार के साथ - साथ भारत सरकार भी मिथिला क्षेत्र के तरफ अपना ध्यान हटा चूका है, जिसके फलस्वरूप कई समस्या बढ़ गई, कुछ नया समस्या सामने आया और कुछ पौराणिक ऐतिहासिक चीजे विलुप्त हो गई और होने के कगार पड़ है । जिसको बचाने के लिए मिथिलावासी को मिथिला राज्य के अलावा और कोई चारा दिखाई नहीं दे रहा है । मिथिला राज्य की मांग सिर्फ भाषा के आधारपर ही नहीं किया जा रहा है बल्कि इसके और भी बहुत आधार है जैसे -
संवैधानिक अधिकार सम्पन्नता के लिए, संस्कृति आ सभ्यता का संरक्षण के लिए, विशिष्ट पहचान 'मैथिल' का संरक्षण के लिए, पलायन और प्रवासी होने का खतरा से मिथिला का रक्षा लिए, आर्थिक पिछडापण और उपेक्षा विरुद्ध स्वराज्यसम्पन्न विकास के लिए, स्वरोजगार संयंत्र - उन्नत कृषि - औद्योगिक विकास के लिए, बाढ़ का स्थायी उपचार के लिए, शिक्षा का गिरता स्तर में सुधार लिए, मुफ्त शिक्षा और शत-प्रतिशत साक्षरता के लिए, गरीबी उन्मुलन - हर व्यक्ति के लिए रोजी, रोटी और वस्त्र लिए, जातिवादिता का आग से जल रहे समाज में सौहार्द्रता के लिए, ऐतिहासिक संपन्नता प्राप्त धरोहर का संरक्षण के लिए, पर्यटन केन्द्र का स्थापना, विकास और संरक्षण के लिए, जल-स्रोत का समुचित बहाव को व्यवस्थित करने के लिए, मिथिला विशेष कृषि उत्पाद का व्यवसायीकरण के लिए, जल-विद्युत परियोजना - जल संचार परियोजना के लिए, मिथिला विशेष शिक्षा पद्धति (तंत्र ओ कर्मकाण्ड सहित अन्य कला ) का अध्ययन केन्द्र के लिए, पौराणिक मिथिला देश के समान आर्थिक संपन्नता के लिए, पौराणिक न्याय प्रणाली समान उन्नत सामाजिक न्याय व्यवस्था के लिए, जन-प्रतिनिधि द्वारा वचन आ कर्म में एकता के लिए, भ्रष्ट आ सुस्त-निकम्मा प्रशासन तथा जनविरोधी शोषण को दमन करने के लिए, मुफ्त बिजली, पेयजल, शौच, गंदगी का बहाव व्यवस्थापन के लिए, मिथिला दूसरे देश के सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारन विशेष सुरक्षा के लिए, मिथिला में कई बड़े बड़े नदी है महानंदा , कोसी , गंडक , कमला , बालन ,बूढी गंडक , गंगा इस नदी का भी नुकसान के अलाबा फयदा नहीं हुआ, इतनी नदी होने के बादजूद हम बिजली पानी कि समस्या से परेशान है, इसलिए इन सबकी रक्षा और इनसे सुरक्षा के लिए ।
मिथिलावासी लगा रहे हैं नारा ……..
मिथिला होगा राज्य हमारा, मिथिला होगा राज्य हमारा ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, जो मिथिला में, मैथिल भाई ।
भीख नहीं अधिकार चाहिए, हमको मिथिला राज्य चहिए ।
बस एक संलकप ध्यान में, मिथिला राज्य हो संविधान में ।
थोड़े में बताने का एक छोटा-सा प्रयास किया है, कि मिथिला राज्य क्यों ?
लेखक : संजय कुमार झा "नागदह "
डी०एल० एफ० अंकुर विहार,
लोनी , गाज़ियाबाद
Edited By Rajneesh K Jha on गुरुवार, 23 जनवरी 2014
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