Friday, 15 January 2016

खैर, छोड़ू

पूजा, पाठ, विवाह, जनेऊ 
जनम - मरण 
सब में होइत छैक
कुशक प्रयोजन 
एखनो होइत छैक
खैर, छोरु .. 
पहिले बेसी काल 
लोक गरिया दैत छल   
तोरा कुश उखाडय बाला 
कियो नहि रहतौ 
आब 
आब त' रहितो नै उखाडय छै 
खैर, छोरु ...... 
एखनो पुरना लोक 
नहि जाए चाहैत छथि 
मिथिला के छोइर क'
कोनो देश आ विदेश 
कियाक ?
सब दिन सेबलहुँ मिथिला
आब जाउ परदेश
जौं
धोखाधड़ी में 
छुटि जायत प्राण 
गंगा स्नान त' कात
बिजली पर जरायत
कि बबूर आ अक्कट सँ 
से कहि नहि 
खैर, छोड़ू  ...... 
सब गोटा के याद होएत 
पावनि - तिहार
निपल
आँगन आ घर 
आँगन अविते 
सुन्दर खुसबू 
बुझाइत छल 
आई कोनो खास दिन 
नवका चूल्हा 
आ दाय - माय व्यस्त 
आजुक दिन बुझा रहल मस्त 
आबो बुझाइया ?
खैर, छोड़ू   ... 
गामक दुर्गा पूजा में 
दू मॉस पहिने सँ
नाटकक तैयारी 
सब साल उभरि रहल  
नवका - नवका कलाकार 
कि, एखनो होइया ?
पहिल पूजा सँ यात्राक दिन तक 
बच्चा जवान स मरवा लेल व्यग्र तक 
मंदिर के प्रांगण में 
क ' रहलाह पूजा आ पाठ 
साँझ परिते 
बच्चा आ जवान के 
कहियो काल 
भ' जाइत छल दू - दू हाथ 
हमहू एकरे कारन 
छी एखन धरि
पिताजीक आज्ञाक 
पालन में 
पूजा में गाम जाय सँ  
निष्काषित 
कि एखनो होइया ?
खैर , छोड़ू....... 
एकसर विद्यापति 
मिथिलाक पताका 
विश्व में फहरा देलाह 
कतेको व्यक्ति के 
विद्वत बना देलाह 
मिथिलिका झंडा 
वीना डंडे फहरा देलाह 
नहि कोनो विधायक 
नहि संसद में ठाढ़ भेलाह 
नहि कहियो अनसन 
नहि रैली में भाग लेलाह 
लोकक त बात छोड़ू 
महादेव
स्वयं उगना बनि
विद्यापति के पैर धेलाह
कि मिथिला के आब 
दुर्दिन नहि ?
खैर, छोड़ू....... 

संजय कुमार झा "नागदह"
दिनांक : 29/07/2014

विश्व मैथिल संघ , बुराड़ी , दिल्ली क 2015 स्मारिका में प्रकाशित। 

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