मिथिला राज्यक मांग आ औचित्य
दिल्ली,मिथिला मिरर-संजय झाः भारत में त एहन एहन राज्य अछि जाहि में ८-१० टा जिला के मिलाक' राज्य बनल अछि । जखन कि मिथिला के मांग त' २८ -३० टा जिलाकेँ मिला क' कएल जा रहल अछि जे प्रायः एही तरहे अछि - मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार, समस्तीपुर, मुज़फ्फरपुर, बेगुसराय, खगरिया, वैशाली, भागलपुर, बांका, गोड्डा, साहेबगंज, पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, देवघर, दुमका, पाकुर, जामतारा, जमुई, लक्खीसराय, शेखसराय आ अन्य । मिथिला के पहचान कोनो आई सँ नै छैक, इ त' युग - युग सँ अपन नाम सँ जानल जाइत अछि। खास क' जे सब हिन्दू धर्म सँ छथि आ जे मुस्लिम भाई हिन्दू शास्त्र के जनैत छथि ओ सब वेद, पुराण ओ रामायण एहन ग्रन्थ में मिथिला नामक जप त कए चुकल छथि आ नित्य कए रहल छथि। मिथिला के लोक - समाज एतेक सभ्य ओ सभ्रांत भेलाक उपरान्तो ब्रिटिश इंडिया सँ ल' क' स्वतंत्र भारत भेलाक बादो मिथिलाक ऊपर ककरो नजरि उचित ढंग सँ नहि पड़ल जेना कि आन - आन राज्य पर पड़ल छल ।
१८५७ में पहिल स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज देश के खंडित आ कमजोर करबा में काफी सक्रीय छल । ओहि समय में नेपाल आ ब्रिटिश इंडिया के मध्य में जमिक' युद्ध सेहो भेल छल । एहि युद्ध (१८१४- १८१६) के बाद अंग्रेज अपन सत्ता के सुदृढ़ करबाक लेल ०४ मार्च १८१६ को सुगौली संधि केलक जाहि में भारतके मिथिला क्षेत्रक भू- भाग करीब पांच हजार वर्गमील नेपाल के दय देलक । ई संधि ' ईस्ट इंडिया कम्पनी आ नेपालक गोरखा राजा के मध्य भेल छल। मिथिलावासी पर इ अन्याय त सबसँ पहिने अंग्रेज केलक आ मिथिला के तेजस्वी भूमि के दू देश में बांटी मिथिलाक लोककेँ देशी - विदेशी कहवा पर सेहो मजबूर केलक । सम्भवतः एहि पाप के कारन माता मैथिलीक श्राप सँ ओ एही ठाम सँ भगबाक लेल बाध्य भेल होयत आ मिथिलाक स्वतंत्रता सेनानी के हमुमान जी जँका आशीर्वाद सेहो प्राप्त भेल होयत । नेपाल में जे मैथिली भाषी ओ मिथिलावासी जिला अछि से प्रायः एही तरहे अछि - परसा, बारा, रौतहत, सरलाही, महोत्तरी, धनौसा, सिरहा, सप्तारी, सुनसारी, मोरंग आ झापा एही में सँ किछु जिला के भाग सुगौली संधि के समय में ईस्ट इंडिया कम्पनी (ब्रिटिश इंडिया ) नेपाल के द' देलक । ओहि समय में एक परिवार के अंग्रेज तोड़ि क’ दू टुक कए देलक ।
इ अन्याय मिथिलावासी वर्दास्त क' अंग्रेज के भगाबक लेल एकजूट भेलाह जे कोनो ना अंग्रेज के भगावी तदोपरांत अपना में निपटि लेब जाहि सँ देश अनेक टुकड़ा - टुकड़ा नहि होए। १९१७ में भारतक जे कोनो साहित्यिक भाषा छल तकरा परीक्षाक अन्यतम विषयक रूपेँ कलकत्ता विश्वविद्यालयक कुलपति स्वर्गीय सर आशुतोष मुखर्जी प्रतिष्ठित कएलनि । तकर परिणाम स्वरुप हिंदी, बंगला, मणिपुरी, असमिआक संग संग मैथिली मएट्रिकसँ लए बी० ए० धरि मातृभाषाके रूपे त' परीक्षार्थी गृहीत भेवे कएल, संग संग पाँच मात्र साहित्यिक भाषाक एम० ए० क मुख्य विषयक रूप में जे स्वीकृत भेल ताहिमध्य मैथिली सेहो छल । मैथिली के अपन लिपि छैक जे मिथिलाक्षर सँ जानल जाइत अछि । मैथिली भाषा के एकटा ठोस स्तम्भ छैक । कारन एकरा अपन लिपि, व्याकरण आ आजुक समय में करीब ५ सँ ७ करोड़ लोकक ई भाषा छैक ताहि हेतु मैथिली के ठोस भाषा के रूप स्थापित कएल गेल जा सकैछ । सबसँ पहिले शिक्षाक दृष्टिकोण सँ सर्व प्रथम कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा मातृभाषा के रूप में मैथिली प्रतिष्ठित कएल गेल अछि । बंगला, मणिपुरी, आसामी, सबके अपन - अपन राज्य भेटलैक जखन कि मैथिली भाषा के सेहो साहित्यिक दर्जा भेटल छल परन्तु ई शांत मिथिला, न्यायायिक ग्रन्थ लिखनिहार मिथिला के पुस्तक पढ़ि मिथिले के उपेक्षा कएल गेल आ दोसर - दोसर के राज्य भेटल ।
ई केहन न्याय भेल मिथिला संग से कहि नहि ? १९२० में कोंग्रेसक नागपुर अधिवेसन में राज्य निर्माण के लेल भाषा के प्राथमिक मह्त्व देल गेल आ आगा चलि एही आधार पर कतेको राज्य बनल । जेना कि उड़ीसा, आंध्रा प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मद्रास ( वर्त्तमान के चेन्नई) आ आसाम, जाहि में आसाम प्रथम राज्य बनल जे मूलतः भाषा के आधार पर बनाओल गेल । १९२१ ई० में असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप जखन राष्ट्रिय भावना के उद्भव भेलैक ओहि समय में हिंदी के खूब प्रचार कएल जा रहल छलैक । खास कए अंग्रेजी के बहिष्कार करबाक लेल जखन कि हिंदी प्रायः राष्ट्र भाषा के स्थान पाबि चुकल छल । ओहि समय में काका कालेलकर मैथिली भाषीय क्षेत्र दरभंगासँ बिना धन्यबाद लेने अपन सम्भासन मंच छोडि चल गेलाह । सिर्फ ऐहि कारण जे ओ मंच सँ कहलाह जे ई हिंदी भाषीय क्षेत्र अछि, एही पर हुनका शांतिपूर्वक विरोध कए देल गेलनि जे हिंदी भाषीय क्षेत्र नहि अपितु मैथिली भाषीय क्षेत्र मिथिला अछि ।
सर जॉर्ज़ गियर्सन के माध्यमसँ भारतक प्रायः समस्त भाषा के सर्वेक्षण कएल गेल जाहि मध्य मैथिली सेहओ छल । मैथिली भाषाक सबसँ पहिल व्याकरण लिखनिहार सर जॉर्ज़ गियर्सने छथि, जे कि १९२७ में प्रकाशित छैक । परन्तु भाषाक आधार पर राज्य बनेनिहार भारतीय प्रतिनिधि लोकनिकें मुख मिथिला दिससँ कियाक विमुख भेलनि से जानि नहि । हुनकर सभक ध्यान एमहर के ल' जाइत से कहि नहि ! १९३७ में कलकत्ताक कांग्रेस अधिवेशन में फेर भाषाक आधार पर राज्य बनेबाक बात दोहराओल गेल लेकिन फेर मिथिला राज्य बनेनिहार प्रतिनिधि लोकनिक परिधि सँ बाहर भ गेल. । १९४७ में भारत स्वतंत्र भेल आ १९५० सँ १९५६ धरि भाषा के मुख्य आधार मानैत कतेको राज्य बनल । परन्तु मिथिला कतय ? कियो एकरा खोज पुछारी केनिहार नहि छल । एही कारण मिथिलावासीकेँ बहुत मानसिक कष्टक सामना करय पड़ल आ १९५० -१९५२ अबैत अबैत छोट - मोट आंदोलन होमय लागल । १९७२ - ७३ में जखन डॉ अमर नाथ झा बिहार लोकसेवा आयोगक अध्यक्ष बनलाह तखन मैथिलीकें आयोगक एक विषय के रूपेँ प्रस्ताव स्वीकृत भेल ।
मुदा प्रस्ताव तावदधरि स्वीकृत प्रस्ताव रहल जखन धरि स्वर्गीय ललित नारायण मिश्रकें भारत में प्रतिष्ठाक उदय नहि भेल छल । ओहि समय में कांग्रेस के बिहारक मुख्यमंत्री स्वर्गीय केदार पाण्डेय छलाह आ हुनक अथक प्रयास सँ मैथिली के एकटा मुख्य केंद्र मिथिला विश्वविद्यालयकें स्थापना कएल गेल आ संगहि लोकसेवा आयोग में मैथिलीके एक ऐच्छिक विषय के रूप में आरम्भ कएल गेल । १९९२ में जखन श्री लालू प्रसाद यादव जी बिहारक मुख्यमंत्री छलाह मैथिली विषय के बिहार लोकसेवा आयोगसँ हटा देल गेल । एहीसँ मिथिलावासी बेसी आक्रोशित भेलाह आ मैथिली के अष्टम अनुसूची में दिएबाक संग संग मिथिला अलग राज्यक मांग के लेल कमरतोड़ मेहनत, आंदोलन, धरना प्रदर्शन केलाह जकर फलस्वरूप मैथिली के भारतक संविधान के अष्टम अनुसूची में पूर्व प्रधान मंत्री माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जीक कृपासँ २२ दिसंबर २००३ क' स्थान भेटल । जाहिसँ भाषाक आधार पर राज्यक मांगक रास्ता फुंजल कारण पहिने ई कहि टारि दैत छल जे अगर भाषा संविधानक अष्टम अनुसूची में नहि त भाषाक आधार पर राज्यक चर्चा नहि कएल जा सकैछ ।
माननीय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जीक कएल एहि कार्यक उपकार कदाचित मिथिलावासी कहियो नहि विसरि सकत । तदोपरांत राज्यक मांग अनवरत रूपे होइत रहल अछि । मिथिला राज्य आंदोलनक मुख्य भूमिका 'मिथिला राज्य संघर्ष समिति', 'अंतर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद्,','मिथिला राज्य निर्माण सेना', 'संयुक्त मिथिला राज्य संघर्ष समिति' आ अन्य प्रायः कतेको वर्ष सँ कए रहल अछि । जाहि में 'मिथिला राज्य संघर्ष समिति', सँ स्वर्गीय जयकांत मिश्र अपन जीवन पर्यन्त राज्यक मांग आ मैथिली में प्राथमिक शिक्षा के लेल सरकार सँ लड़ैत पञ्चतत्व में विलीन भ' गेलाह । हुनक एक नारा एखनो मिथिला राज्यक मांग केनिहार आंदोलनी सब सदिखन लगबैत छथि - "भीख नहि अधिकार चाहि - हमरा मिथिला राज्य चाहि". ओना जखन सँ "मिथिला राज्य निर्माण सेना" एहि आंदोलन में पैर रखलक ताहि दिनसँ आंदोलन आगिक धधरा जँका सम्पूर्ण मिथिला में पसरी रहल अछि ।
एहि आंदोलन के एकजूट करबाक लेल हमरो तरफ सँ एकटा नारा देल गेल अछि - "हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई - जे बसथि मिथिला, ओ मैथिल भाई " कारण मूल बात मिथिला के थिक । आ मिथिला में रहनिहार सब कियो पहिले मैथिल छथि । बिहार सरकारक संग संग भारत सरकार सेहो मिथिला क्षेत्रसँ ध्यान हटा लेने अछि, जकर फलस्वरूप कतेको समस्या बढ़ि चुकल अछि आ नव - नव समस्या सब उपजि रहल अछि । बहुतो रास पौराणिक ऐतिहासिक चीज विलुप्त भे चुकल अछि आ वांचल खुचल सेहओ विलुप्त होएबाक कगार पर अछि । जकरा बचेबाक लेल मिथिलावासीकें मिथिलाराज्य के अलावा अन्य कोनो मार्ग देखबामे नहि आवि रहलन्हि अछि । मिथिला राज्यक मांग सिर्फ भाषाके प्रमुख आधार नहि अछि अपितु एकर अनेकानेक बहुतो कारण प्रायः एहि तरहे अछि ।
जेना कि - संवैधानिक अधिकार सम्पन्नता के लेल, संस्कृति आ सभ्यता के संरक्षण के लेल, विशिष्ट पहिचान 'मैथिल' के संरक्षण के लेल, पलायन आ प्रवासी होबाक खतरा सँ मिथिला के रक्षा लेल, आर्थिक पिछडापण आ उपेक्षा विरुद्ध स्वराज्यसम्पन्न विकास के लेल, स्वरोजगार संयंत्र - उन्नत कृषि - औद्योगिक विकास के लेल, बाढ़िक स्थायी उपचार के लेल, शिक्षा के खसैत स्तर में सुधार के लेल, मुफ्त शिक्षा और शत-प्रतिशत साक्षरता के लेल, गरीबी उन्मुलन - हर व्यक्ति के लेल रोजी, रोटी आ वस्त्रक लेल, जातिवादिताक आगि सँ जड़ी रहल समाज में सौहार्द्रताक लेल, ऐतिहासिक संपन्नता प्राप्त धरोहरके संरक्षणक लेल, पर्यटन केन्द्रक स्थापना, विकास आ संरक्षण के लेल, जल-स्रोतक समुचित बहाव के व्यवस्थित करवाक लेल, मिथिला विशेष कृषि उत्पाद के व्यवसायीकरण के लेल, जल-विद्युत परियोजना - जल संचार परियोजना के लेल, मिथिला विशेष शिक्षा पद्धति (तंत्र ओ कर्मकाण्ड सहित अन्य कला ) के अध्ययनक केन्द्र लेल, पौराणिक मिथिला देश के समान आर्थिक संपन्नता के लेल, पौराणिक न्याय प्रणाली समान उन्नत सामाजिक न्याय व्यवस्था के लेल, जन-प्रतिनिधि द्वारा वचन आ कर्म में एकता के लेल, भ्रष्ट आ सुस्त-निकम्मा प्रशासन तथा जनविरोधी शोषण के दमन करवाक लेल, मुफ्त बिजली, पेयजल, शौच, गंदगीक उचित बहाव व्यवस्थापन के लेल, मिथिला दोसर देशक सीमावर्ती क्षेत्र होएवाक कारन विशेष सुरक्षा के लेल,
मिथिला में कतेको पैघ -पैघ नदी छैक जेना महानंदा , कोसी , गंडक , कमला , बालन ,बूढी गंडक , गंगा इ नदी सबसँ एखन धरि नुकसान के अलाबा फयदा कोनो नहि भेल, एतेक नदी होएबाक बादो हम सब बिजली - पाइनक समस्या सँ परेशान छि, एहि लेल एकर सबसँ रक्षा आ एकर सुरक्षा के लेल । एकर एकटा जीवन्त उपमा अछि जे १९३४ क भूकम्प सँ टुटल करीब १.८ किलोमीटरक कोसिक पुल मिथिलावासिक कतेको हो हल्ला केलाक बाद करीब ७८ वर्षक बाद बनि सकल । जकर उद्घाटन बिहारक मुख्यमंत्री माननीय श्री नीतीश कुमार जी द्वारा फरवरी २०१२ में कएल गेल । एहना स्थिति में विकासक संग मिथिला राज्यक मांग स्वाभाविक छैक जाहि सँ मिथिला यदि अलग होएत त अपना विकासक लेल अपने अग्रसर होयत । चाणक्यक एकटा श्लोक याद पड़ि गेल – पुस्तकस्था तू या विद्या पर हस्त गतम् धनम् - कार्य काले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद्धनम् ।
अर्थात पुस्तक में लिखल विद्या आ अपनों धन यदि दोसर के हाथ में रहत त समय पर काज नहि देत । तैं विद्या याद करवाक चाहि आ धन अपने लग रखबाक चाहि । यदि आई हमरा सबहक़ मिथिला राज्यक मांग पूरा भ' गेल रहैत त' मुंहतक्की में नहि रहितहुँ । तै आब बिना मिथिला राज्य दोसर कोनो आन उपाय देखबा में नहि आबि रहल अछि ।
‘‘इ लेखक कें अपन विचार छनि’’
http://www.mithilamirror.com/news-detail.php?id=285
No comments:
Post a Comment