गुरुवार, 21 जनवरी 2016

क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

ईद-उल-जुहा (बकरीद) मुबारक हो।
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कुर्बानी गर देना चाहो 
देकर देखो एक बार 
काम, क्रोध, मद, मोह और हिंसा 
नहीं जरुरत पड़ेगा मौला
बकरे का फिर बार - बार।

जान हमारा लेकर तुम 
कहते देते हम कुर्वानी 
एक बार पूछो मौला से 
क्या ये है सच्ची कुर्वानी ?

बन खुदा के नेक बन्दे 
कर्म,धर्म और ईमान से 
हराम जिसे पसन्द न मौला 
क्या मिलेगा इस कुर्वान से ?

संजय झा "नागदह" 

दिनांक : 25/09/2015

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

आज (18/08/2015) दो संदिग्ध लोगों को पुलिस की तत्काल हिरासत में देने में सफल हुआ ।

आज दो संदिग्ध लोगों को पुलिस की तत्काल हिरासत में देने में सफल हुआ । कैसे ?
आज अस्वस्थ होने के कारन कार्यालय नहीं जा सका। दो लोग पैंट ,टी सर्ट पहने चंदा मांगने आये। मेरी पत्नी से कहा की यहाँ भंडारा हो रहा है ,आप अपना सहयोग दीजिये किसी ने हजार दिया है तो कोई इतना, कोई उतना , इस तरह बोल कर रहा था। मैं एक कमरे लेटा हुआ था , बोली कोई चंदा माँगने आया है जरा देखिये कौन है ? मैंने कहा आप ने दरवाजा क्यों खोला ? बोली आप घर में थे इसलिए। देखिये कौन है ?
मैं दरवाजे पर गया पूछा - जी बताइये क्या है ?
संदिग्ध - भंडारा करवा रहे है ,इसलिए सहयोग चाहिए।
मैं - कहाँ ?
संदिग्ध - यहीं जिन्दल रोड पर।
मैं - कौन करवा रहा है ?
संदिग्ध - (छणिक मौन होकर) शिव शक्ति बाले हैं।
मैं - कौन हैं ये शिव - शक्ति बाले ?
संदिग्ध - दो भगवान की फोटो देते हुए , ये
मैं - ये क्या है ? ये तो फोटो है। यहाँ ऐसा प्रायः कोई नहीं है जो इस तरह काम करे और मुझे पता न हो ? नाम बताओ कौन करबा रहे है ?
संदिग्ध - फिर उसने एक विजिटिंग कार्ड निकालकर दिया। (कार्ड पर लिखा था "प्राचीन श्री शिव शक्ति शिशु आश्रम अन्नक्षेत्र भंडार (रजि ०) ,ऋषिकेश रोड, हरिद्वार। )
मैं - तो आपका ये सस्था तो हरिद्वार की है , आप कह रहे हो की जिंदल रोड पर भंडारा कराओगे , चलो मेरे साथ बताओ कहाँ भंडारा करोगे ? यहाँ ऐसा शायद कोई नहीं है जो इस तरह का नेक कार्य करे और मेरे जानकारी में न हो। फिर मैंने पूछा - कहाँ रहते हो ?
संदिग्ध - शाहदरा।
मैं - (दूसरे संदिग्ध से ) और तुम ?
संदिग्ध - (दूसरा संदिग्ध पहले से ) तुम ही बता दो।
संदिग्ध - (पहला संदिग्ध ) यहीं रहते है।
मैं - (मुझे इसी बात पर संदेह हो गया ) मैंने कहा - रुको पहले चौकी फोन करता हूँ। (और मैं फोन लेने घर के अंदर आया )
फिर जैसे ही गेट पर जाता हूँ दोनों फरार। चारो तरफ ढूंढा कही दिखाई नहीं दिया। फिर अपने पडोसी मित्र श्री राजेश गुप्ता जी को आवाज दिया, वो भी आज किसी कारन वश घर में ही थे। फिर दोनों मिलकर ढूंढा , अगल - बगल से पूछा कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला। मुझे लगा की वो घर के पीछे से एक रास्ता है उधर से निकल गया। फिर हमदोनो ने सोचा की चौकी को इस बात से अवगत कराया जाय। दोनों चौकी गए और चौकी इंचार्च श्री राठौर जी को पूरी कहानी सुनाया। चौकी इंचार्च श्री राठौर जी ने तत्काल पी सी आर को सुचना दिया की इस तरह के दो व्यक्ति कही दिखे तो उसे पकड़ कर चौकी ले आना। फिर हमलोग वापिस हो गए। रास्ते में दोनों हमदोनों ने सोचा की एक बार पूरा कॉलोनी जहाँ तक संभव हो खोजते है मिल जाएगा तो ठीक रहेगा। हम दोनों ने अपने अनुमान के अनुसार उसे ढूंढना शुरू किया और वो दोनों मिल गया। फिर हमने तुरंत पी सी आर को कॉल किया और पी सी आर वैन एक मिंनट में हाजिर हो गया। दोनों को पी सी आर वैन में बिठा चौकी बिदा किया और हमदोनो भी पीछे -पीछे चौकी गए। चौकी में श्री राठौर जी थे ही और उन्होंने पूछताछ करना शुरू कर दिया ,मगर जबाब संतोषप्रद नहीं था। इसलिए दोनों को चौकी की हिरासत में आगे तहकीकात के रख लिया गया।
हमलोग घर आ गए , अब चौकी की कार्रवाई अपने हिसाब से होगा, जैसा पुलिस पूछताछ के अनुसार सही हो। पर हमने एक जिम्मेवार और सतर्क नागरिक होने का अपना धर्म निभाया।

संजय झा "नागदह" 
दिनांक :18/08/2015

सोमवार, 18 जनवरी 2016

17 जनवरी 2016 को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी जिसमे मैंने भाग लिया !

17 जनवरी 2016  को नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित कॉफी होम में "मैथिली साहित्य महासभा" की बैठक हुयी ! जिसमें मैथिली के लेखक ब्लॉगर एवं कई विद्वान की मौजूदगी में अगले महीने के 21 फरवरी को मैथिली साहित्य महासभा का एक सुन्दर भव्य कार्यक्रम होना प्रस्तावित किया गया।  
विभय झा,विजय झा,पंकज प्रसून,संजय झा 'नागदह', हेमन्त झा आ.........।


हेमन्त झा,विजय झा,संजय झा 'नागदह',..........,पंकज प्रसून,ललितेश रौशन,विभय झा आ संजीव झा ।

ललितेश रौशन , विजय झा,विमल जी मिश्र,संजीव झा और संजय झा 'नागदह' । 


 मनीष झा 'बौआ भाई' क संग।  


 विजय झा क संग। 


अखिल भारतीय ब्राम्हण महासभा डी एल एफ अंकुर विहार दिनांक 17 /01 / 2016 को भाग लिया।

बीजेपी गाजियाबाद जिला अध्यक्ष श्री नन्द किशोर गुजर जी को स्वागत करते हुए।


लोनी नगर निगम चेयर मैन श्री मनोज धामा जी संत जी को सम्मान करते हुए।


पं हिमाँशु शर्मा जिला उपाध्यक्ष भाजपा युवा मोर्चा गाजियाबाद के साथ 



सुदेश भरद्वाज बीजेपी लोनी मंडल अध्यक्ष के साथ 

रविवार, 17 जनवरी 2016

हो तुम कौन सा जाति विशेष ?

सबसे पहले तुम मनुष्य हो 
फिर है कोई भी जाति 
मनुष्य का गुण हो वा न हो 
फिर भी नहीं प्रजाति। 

जिस मनुष्य में सभी जाति समाहित 
हो जाता है जीवन धन्य 
एक जाति का मात्र जो गुण हो 
जीवन हो जाएगा शून्य। 

ब्राह्मण से पांडित्य का गुण  लो 
शूद्र से सीखो सेवा भाव 
क्षत्रिय बन करो खुद व समाज की रक्षा 
वैश्य से सीखो हाट - बाजार। 

अब , अपने ह्रिदय में झाँक कर देखो 
कौन सा गुण है तुझमे विशेष 
मन ही मन खुद ही सोच लेना 
हो तुम कौन सा जाति विशेष। 

------- संजय झा "नागदह"
दिनांक :17/01/2016











गिरगिट ने बताया आत्महत्या की वजह

लोग कहते हैं -
रंग बदलने में माहिर होता है गिरगिट 
लेकिन,
गिरगिट ने कहा लोगो से -
भाई, तुम कई गुना आगे हो 
व्यर्थ मुझे बदनाम कर रहे हो 
रंग बदलने की कला में 
मैं तो अपने जाती को धोखा नहीं दे पाता हूँ 
पर तुम 
दुनिया के साथ - साथ अपने जाती को भी 
क्या - क्या बना देते हो 
कभी चेहरे पर राम तो कभी रहीम बना लेते हो 
इंसान रहते हुए 
जानवर सा व्यवहार बना लेते हो 
किसी भी हालत में 
मेरा खाना - पीना 
परिवेश नहीं बदलता है 
पर तुम तो भीख मांगे के लिए 
अलग सा भेष भी बना लेते हो 
मेरा नाम हर हालत में एक ही रहता है 
पर तुम्हारा
देखो- 
कभी इंसान तो कभी जानवर 
कभी कसाई तो कभी चांडाल 
कभी चोर तो कभी डाकू 
इत्यादि - इत्यादि 
इसलिए हमारा यहाँ है नहीं प्रयोजन 
कर रहा हूँ 
प्राण विशर्जन। 
संजय झा "नागदह"
Dated : 25/04/2014

विविध


1. मिथिला में अगर कियो दरिद्र भ दोसर प्रदेश में जीविकोपार्जन के लेल 

नहि गेल त' ओ अछि मिथिलाक डोम . जे अपन कर्म द्वारा मिथिला के 

सेवा में सदैव तत्पर आ सब पावनि के डाली , चंगेरा , सूप , चालनि, 

पथिया , कंसुपति, ढाकी, बियनि, इत्यादि सँ सेवा करैत छथि आ सब 

पावनि तिहार के मान राखि मिथिलाक मान के सर्वोच्च बना अपन 

कतेको अपमान सहैत छथि (शायद भगवान ओकरा में एहन त्यागक 

भावना द एहि लोक पर पठेने हेताह ) 


एहि बेरक मिथिलाक यात्रा में कोनो डोम के बैसल नहि देखल सब अपन 
 
अपन व्यवसायिक काज में व्यस्त छल - आ हमरा त सब वर्ग आ वर्ण सँ 

वेसी स्वाबलंबी बुझायल . जय मिथिला , जय मैथिली,


2. जो खुली आँखों से नहीं देखा जा सकता - उसको बन्द आँख से देख 

सकते है।खुली आँख सिर्फ उसे ही देख सकता है जिसको छुआ जा सके  - 

जबकि बन्द आँख( मन कि आँख) छुए जाने योग्य और ना छूने योग्य 

दोनों को देख सकता है और यही कारन है कि आँखों से अँधा भी यहाँ 

जिंदगी गुजार देता / देती है। 


अतः ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि मन कि आँख कि दृष्टि 

वास्तविक आँख से कई गुना बड़ी होती है। 


3. "साहित्य के समुद्र में जितना डूबता हूँ उतना ही डूबने का मन करता है 

और मन को उतनी ही शान्ति और आनन्द मिलता है जितना की 

असहज गर्मी के मौसम में तालाब के अन्दर बैठे रहने पर सुन्दर 

शीतलता 


--------------संजय झा "नागदह"

07/01/2015


जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि

जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि - कनि ध्यान सँ पढब.
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एक दिन दू आदमी के झगड़ा होइत रहैक।  जकर गलती रहइ से ओहि ठाम उपस्थित लोक के कहय - जे एकर बात पर (जकरा सँ झगड़ा होइत रहैक तकरा बारे में ) हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि।  ओहि लोकक बीच में एकटा पंडीजी सेहो रहथि , ओ कहनलनि बौआ जकरे देह में आगि लगैत छैक सैह ने जड़ैत अछि।  इ बात इ कतेको बेर कहलाह आ जिनका कहथि ओ बेर बेर एकेटा बात कहथि - हमरा देह में आगि लागि जाइत अछि।  पंडीजी बाद में ओहि ठाम सँ चलि गेलाह।

                                             ------------संजय झा "नागदह"
                                                               05/07/2014

ओहिना नै होइत छैक

ओहिना नै होइत छैक 
अन्हरिया में इजोत करबाक लेल 
दिया में तेल आ बाती के 
संगे जरय पड़ैत छैक 
किछु पाबक लेल 
किछु त्याग करहे पड़ैत छैक
ओहिना नै होइत छैक

भारतो आज़ाद भेल 
कियो देखनहुँ हेताह
कियो सुनलो हेताह 
लोक एकजुटता लेल 
हल्ला करहे पड़ैत छैक 
किछु पावक लेल 
ओकरा पाछा परहे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

देखने हेबैक प्रायः सब गोटा
भिखमंगो के खाली कटोरा में 
भीखो कियो नहि दैत छैक 
ओकरो पहिले कटोरा में 
किछु राखहे पड़ैत छैक 
मिथिला राज्यक बात के लेल 
अलख जगाबहे पड़त
सरकार के देखाबहे पड़त 
मंगला सँ नहि 
आई- काल्हि छीन्हे पड़ैत छैक 
ओहिना नै होइत छैक

संजय झा "नागदह"
Date - 20/07/2014

अछि हिम्मत त' देखा दिय

अछि हिम्मत त' देखा दिय
मिथिला राज्य बना दिय
नए बेसी त' अलखे जगा दिय 
जंतर मंतर पर एक आध- लाख मैथिली जुटा दिय 
अहींक गरदनि में पहिरयाब 
माला गुलाब के 
गाँव गाँव में मैथिल के अपन अधिकार के लेल 
जगा दिय 
मिथिलाक अस्तित्व अहीं त' बचा लिय

27/07/2014

क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत

अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत 
चाहे बाट चलु
या हाट रहु
क्षण -क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनका बारे में फोन करि
कखनो हुनका - कखनो हुनका
कियो चिंतित
कियो बेखबर 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
कियो ऐना , कियो ओना कहथि
कियो कहथि फुइस अछि 
प्रेम अहाँक 
कियो कहथि किया ऐना डुबल छी ? 
कि ओ अहाँके एकसर छी ?
हम चौंक गेलहुँ 
इ कि कहला ?
कहला त' सत्य
अपितु किछु नहि
मुदा करू क़ी ?
किछु नहि सूझि रहल 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
हुनके धरती पर जनमल छी 
हुनके कोरा में पलल छी 
भाषा सेहो - अछि हुनके 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि अंतिम इच्छा एतवे हम्मर 
जौं प्राण देह सँ कखनो निकलय
माँ मैथिलीके हमरे सप्पत 
हुनके कोरा में प्राण छुटय
अछि अभिलाषा सदिखन एहने 
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत
अछि प्रेम कतेक 
हम की कहु ?
क्षण - क्षण हुनके पर ध्यान सतत....

संजय झा "नागदह" 
27 /07 /2014

मुलाकात नहीं हो रहे हैं

जैसे ही मैं निकल रहा था 
आप सबसे मिलने
की "दस्त" ने 
दस्तक दे दी 
कहा 
कहाँ चले मेरे रहते ?
मैंने हाथ जोड़ दिया
कहा 
जी हुजूर 
मुझ में इतना 
हिम्मत कहाँ ?
उन्ही से 
निपटने लगा हूँ 
आप चाहे तो 
निपटने का 
कुछ नुस्खा बताएं 
इनसे मैं 
कब से कह रहा हूँ 
मुझे और न सताएं 
पर क्या करूँ ?
ये जाने का नाम 
नहीं ले रहें हैं 
यही वजह है 
की
आप से मुलाकात 
नहीं हो रहे हैं
धन्यवाद
14/08/2014

समय बड़ा बलवान पर कैसे मानू ?

समय बड़ा बलवान 
पर कैसे मानू ?
है हिम्मत तो दिखा मुझे 
सुबह को कर दे शाम 
रात को सूरज उगा दिखा तू 
मरे हुए जिन्दा कर तू 
दुखी को करके सुखी दिखा तू
कैसे तू बलबान ?
है हिम्मत तो रोक मुझे तू 
दुःख मेरा तू दूर तो कर दे 
दिखा दिखा तू हिम्मत अपना 
कुछ भी नहीं है तेरा अपना 
समय बदलता मेरा अपना 
उस पर तुम ऐंठ मत इतना 
"मेरा "को तू अपना कहता 
दुनिया को तुम बना मत इतना 
कुछ भी नहीं है तेरा अपना 
हिम्मत है तो रोक मुझे तू 
छोड़ रहा हूँ 
अंतिम सांस मै अपना 
मुझसे तू क्या जीत पायेगा ?
मुझे कहाँ ? 
मेरा सांस भी ना तू रोक पायेगा 
हूँ बलवान मै खुद इतना 
आया भी अपनी मर्जी से 
जाऊँगा भी अपनी मर्जी से 
दुनियाँ को तू खूब नचाया 
कहता सब को 
मैंने ही तो इसे बुलाया 
मैंने ही तो इसे भगाया 
मेरी भी तो एक बात तो सुनले 
मेरी इच्छा तुझसे छोटी 
करता बाते छोटी - मोटी
मै आया तो खुसी ले आया 
ख़ुशी के आँसू घरों में आया 
जाऊँगा फिर आएगा आँसू 
ये आँसू होंगे दुखी के आँसू 
पर एक बात तो मेरा सुनले 
जिस दिन तुम जाना चाहोगे 
ना निकलेंगे खुसी के आँसू 
ना निकलेंगे दुखी के आँसू

-----संजय कुमार झा "नागदह" 
18/08/2014

रास्ते की कहानी

एक बार मैं कहीं से गुजर रहा था कि अचानक मेरी गाडी के सामने एक मोलवी साहब ने रुकने का इशारा किया।  मैंने अपनी गाडी रोका पूछा बताइये जनाब क्या बात है ? उन्होंने कहा क्या आप वहां जा रहें हैं ? मैंने कहा जी जनाब।  फिर उन्होंने मुझसे कहा मुझे छोड़ देंगे मैंने क्यों नहीं --जरूर... बैठिये।  रास्ते में उनसे बात - चित होने लगा।  मैंने पूछा क्या करते हैं? जबाब दिया मैं मदरसा में तालीम देता हूँ।  मैंने कहा बहुत खूब ये तो बहुत अच्छी बात है।  बात ही बात में मैंने कहा जनाब आप कोई ऐसा मुहीम चलाइये जिससे गाँव के कोई भी मुस्लिम बच्चा ऐसा न रहे जो तालीम से छूट जाए।  क्योकि आज कल लोग धर्म मज़हब के नाम पर लोगो को भ्रमित कर रहें है।  अगर अच्छी तालीम सभी बच्चो को मिलेगा तो कम से कम अपनी एक अच्छी सोच विचार के बाद ही कोई कदम उठाएगा।  जब तक अच्छे संस्कार नहीं देंगे अच्छी तालीम नहीं देंगे तब तक वही कहाबत चलता रहेगा " मुर्ख की लाठी सीधे सर पर", अभी भी जो हिन्दू - मुस्लिम वर्ग शिक्षित हैं कहाँ लठ उठा कर आगे आते हैं ? इसलिए ध्यान रख्खे की एक भी बच्चा तालीम से न छूटे। यही इस चलते मुसाफिर से निवेदन है - मोलवी साहब ने कहा बहुत अच्छी बात कहा आपने झाजी हमारी पूरी कोशिश होगी की आपके बातों को ध्यान रख्खें।  जब उनको हमने उनके मंजिल पर उतार दिया तो उन्होंने फिर ये बात दोहराते हुए हाथ हिला कर मुझे आगे जाने के लिए बिदा किया। 

    ----संजय झा "नागदह "

आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखल "कौरव कौन, कौन पांडव " कविता के मैथिली अनुवाद

के अछि कौरव ?
आ के अछि पांडव ?
टेढ़ अछि सवाल 
दुनू दिश
शकुनि क अछि पसरल
कुटजाल 
धर्मराज नहीं छोरलाह
ई जुआ के आदत अछि 
सब पंचायत में 
पांचाली 
अपमानित अछि 
नहि छथि कृष्ण 
आजुक दिन 
महाभारत सुनिश्चित अछि 
राजा चाहे कियो बनै
प्रजा के कन-नाई निश्चित अछि। 

SANJAY JHA "NAGDAH 25/12/2014

शनिवार, 16 जनवरी 2016

चारिपतिया - बुझि अप्पन आ हम्मर आन



बुझि अप्पन आ हम्मर आन 
छोड़ि रहल छल ढ़ाकीक - ढ़ाकी 
झुठक सरबत बाँटि रहल छल 
लाखों लोक लग पाँति - पाँति। 

संजय झा "नागदह"
दिनांक :01/12/2015

बिकती नहीं बाजार में कुल, गुण, गौरव, शील स्वभाव -


बिकती नहीं बाजार में कुल, गुण, गौरव, शील स्वभाव -
नहीं तो ये भी लोगों के घर के शो - केस में सजाने के वस्तु हो जाती
और कौन कितना अच्छा ये तो उसकी कीमत ही बताती 
फिर तो गरीबों की घर ये कभी भी न आती 
अच्छा किया पर ऊपर वालों ने , इसे सामान नहीं बनाया 
नहीं तो अमीर लोग गरीबों की धज्जियाँ और भी उड़ाती 
------ संजय झा "नागदह"
दिनांक : 09/01/2015

बाय बाय

न खुद का पता

 
न खुदा का पता 



बैठा हूँ कहाँ ?



न इसका पता 



न सोच का पता



न समझ का पता 



जैसी बजी घंटी 



मेरी फोन की 



सब कुछ हो गयी लापता 



क्योकि फोन उठाते ही 



उन्होंने बता दी अपनी पता 


अच्छा चलते है ---बाय बाय


--- संजय झा "नागदह"

दिनांक - 05/02/2015

इसी का तो नाम है जिंदगी ये हमदम .....

मन मे है विश्वास 
न ख़ुशी आराम करता है 

न गम 

वक्त गुजर जाती है

विना किये गति परिवर्तन
किस घडी को बिता रहे हो 

ध्यान करो 

क्योकि एक जायेगी 

तभी दूसरी आएगी
रास्ता की दुरी तुम्हे पता नहि 

जाने बाले दूसरे को ढूंढ 

पता भी तो बताएगी 

इस बीच 

ना ख़ुशी होगी ना गम
ये मत सोचना 

जिंदगी ऐसी रहेगी हरदम 

मत सोच ज्यादा 

ये तो आती और जाती ही रहती है 

कभी खुशी कभी गम
इसी का तो नाम है 

जिंदगी ये हमदम .....

इसी का तो नाम है 

जिंदगी ये हमदम .....

----- संजय झा "नागदह"
दिनांक - 06 /02 /2015 

डीलरक किरदानी

गाम गाम में शोर भेल अछि , डीलर अछि बेईमान 
सभक मुँहे सुनि रहल छी, डीलर अछि शैतान। 
लाबै छथि राशन जनता के नाम पर 
आ तुरंत विदा भ जाइत छथि दुकान पर।
दूकानदार सँ कनफुसकी क' क'
दस बजे रातुक समय द' क' ।
सुन दलान देखि अबीह' बौआ 
एकटा बड़का बोड़ा ल' क' ।
पाई नगद तू लेने अबीह' 
दाम में नै तू घिच - पिच करिह' ।
कियाक त' गारिक हार हमहि पहिरै छी 
जनता के श्राप हमहि लैत छी  ।
हाकिम के घुस हमहि दैत छी 
तैयो हम चोरे कहबै छी ।
गौंआँ के बुरबक बनाबी 
अपने हम हाकिम कहाबी ।
सब कियो आगा पाछा करैया
घुस में पान तमाकुल दइया । 
तैयो हम करै छी मनमानी 
ककरो कोनो बात नै मानी ।
दस बोड़ा हम चीनी रखने 
तोरे सब के लेल ।
बाँकी जे दू बोड़ा बाँचत 
जनता के ठकी लेब । 
गाम में दस टा मुँहगर कनगर 
मुंह तकर हम भरबै ।
बाँकी सब ठाम झूठ बाजी क'
चोरी हमहि करबै ।
अगिला खेपी तेल आनब 
तू तखनहि रहिह' सचेत ।
रस्ते में तू ठाढ़ रहिह' पाई टीन समेत
गाम पर अनिते देरी ।
भ' जाइया हेरा फेरी 
मुखिया जी बदमाशी करैया ।
टीन झोरा ल' एतय अबैया
दस किलो चीनी आ तेल ।
ओकरो मंगनी देबय पड़ैया
मुदा दस किलो चीनी आ तेल पर ।
मुखहिया जी सकदम 
टकरा बाद जे मोन करैया ।
करै छी अपने मन 
टकरा बाद किरानी सबके ।
झूठ बाजी छी हमहि ठकने 
लोक सब हमर किरदानी के । 
महीना में दस टा दैत अछि दरखास 
जा गांधी (पांच सौ ) द' आफिसर के 
तुरंत करा दैत छी बरखास ।
घुसक छैक एखन जमाना 
तेन ने हम छी बनल दिबाना । 
चारि साल धरि कहुना कहुना
ई कोटा चलि जाएत ।
पाँचम साल बुझह 
सीमेंट जोड़ी दू तल्ला पिटायत ।
बेसी तोरा की कहिय'
एहि में घर बैसल बड्ड नफ्फा ।
मुदा आशीर्वाद में कखनो 
घर घरायण सब सफ्फा ।

(१९९२ के डायरी सँ )
श्री शृष्टि नारायण झा 
नागदह 

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि

स्वप्न देखल जे बीतल काल्हि
गाड़ी एक देल ठोकर माइर
सोचल एहन अभागल की हमहि ?
कतेक सताओत एकसर हमरे 
कखनहुँ सोचि हम इ की देखल 
सोचि - सोचि मन होइत छल बेकल 
घर सँ बहार निकलल नहि जाए 
बेर - बेर स्वप्न याद आबि जाए
कतेक सोचि कार्यालय गेल 
अबैत काल सपना सच भेल 
बाँचल मुदा सपूर्ण शरीर 
थोड़ मोड़ लागि कटल इ पीर 
धन्यवाद प्रभु के बेर - बेर 
पुनि दुर्दिन नहि देखाबहिं फेर।  

--- संजय झा "नागदह"
१३/०२/२०१५ 

हकार


हर्षक संग मैथिल जन के पठवी प्रेम हकार 

मातृभाषा दिवस पर मैथिली साहित्यक चर्चाक भेल अछि विचार 


कोना बचायब, कोना बढ़ायब मैथिलीक मान सम्मान 

एही सब बात पर चर्चा खातिर बजाओल गेल छथि मैथलीक विद्वान 


नव संस्था नव ऊर्जाक लेल जड़ाओल जाएत दीप

प्रारम्भ होयत सभाक संचाल भ' गोसाउनिक गीत 


---संजय झा "नागदह" 8010218022
आज अन्ना जी फिर से जंतर - मंतर पर सरकार के किसान वरोधी विधेयक के खिलाफ - 
क्या ख्याल है आपका ?
धरती की महत्त्व वो क्या जाने ?
जिसने कभी न बोया बीज 
फसल उगाया मेह्नत करके 
भींगा पसीना से सम्पूर्ण शरीर 
वो क्या समझे पीर ?
मत छीनो ये धरती उससे 
रहने भी दो थोड़ी 
बढ़ते जनसंख्या को देखो 
कहाँ से लाओगे तुम रोटी
अधिग्रहण का ग्रहण लगाकर 
हो गए कितने भूमि हीन
थोड़ी सी तो बची हुई थी 
उसको भी तुम रहे हो छीन
संजय झा "नागदह"

नव कुलदीपकक संकेत


सपनेहुँ देखल एक झलक 
पट सुति पैर हिलाए रहल 

पुनि जिज्ञासा आर बढ़ल
देखहुँ मुख कुल तारिणी 

जिज्ञासा हहृदयक बुझि कुल दीपक 
ठाढ़ होइत पूर्ण स्वरुप देखाओल

गोर वर्ण देह छरहरा 
कोमल - कोमल अंग 

हाथ - पैर हिलाई रहल 
मंद - मंद मुस्काई रहल 

ठाढ़ नाक आ आँखि डोका सन
स्वपनहि संग खेलाइ रहल

झलक देखाई पुनि चलि गेल 
कृष्ण बाल रूपमे मटकी देल 

मन आनंदित आँखि खुजि गेल 
नव कुलदीपकक संकेत सन बुझना गेल

रवि दिन ०८ /०२/२०१५

08 फरवरी 2015 क' सपनामे देखल अपन अजन्मा भातिजकेँ  जकर जन्म 08 -03-2015 क' भेलैक। 

गंदे पानी की धार जब तेज रहती है तो उसके ऊपर की झाग बहुत सफ़ेद और सुन्दर दिखती है जबकि अंदर किसी भी तरह की परिवर्तन नहीं होती . वही जब स्थिर होता है तो वो अपना पूर्ण स्वरूप में ही दीखता है . इसलिए जरुरी नहीं है की सुन्दर दिखने बाली मनुष्य , वस्तु सुन्दर ही होगा इसे गहराई से जांच और परखना चाहिए . शायद यही कारन होगा की सेक्सपेयर ने कहा होगा - "All that glitters is not gold" 

                                                                - Sanjay Jha "Nagdah"

जकड़ा हूँ - बेड़ियों के बिना

कई वर्षों के बाद
उनको देखा , 
पलक एकाग्र है 
आँखें बाते कर रही है 
जवाँ निःशव्द है 
धड़कन की गति 
शताव्दी एक्सप्रेस 
फिर भी दुरी इतनी 
ना कोई हॉल्ट
ना कोई स्टेशन 
जी करता है 
लपक कर पकड़ लूँ 
मिल लूँ गलें 
और कहूँ
फिर मत जाना प्रिये 
समय बड़ा बईमान है 
पता नहीं 
फिर इस तरह 
आएगा 
की नहीं 
पर 
करूँ क्या 
जकड़ा हूँ 
बेड़ियों के बिना 

----संजय झा "नागदह" १९/०४/२०१५

शब्द का रक्खे ध्यान !!

तीर - कमान का घाव उतना दर्द नहीं देता, जितना शब्द बाण का घाव (कभी भी सीने में चुभने लगती हैं ) हार्ट अटैक का एक ये भी कारन हो सकता हैं

                 - संजय झा "नागदह"

पड़ल छी ऐना जेना, मरल होइ

पड़ल छी 
ऐना
जेना, मरल होइ 
शरीरक कोनो अंग में 
कोनो हलचल नहि
साँस ऐना चली रहल अछि
जे लोक देख क' 
चलि गेल
आ 
हल्ला क' देलक 
ओ मरि गेल 
मुदा 
हम्मर कान में 
सबहक आवाज 
ओहिना सुनाइत अछि 
जेना 
पहिले
अन्तर मात्र एतेक 
कि हम
सुनिए टा सकैत छी 
बस, आर किछु नहि 
आँखि बन्न अछि 
मुदा
दूधिया सफ़ेद सन इजोतक 
दर्शन आर किछु नहि 
कान सब शब्द के 
समेट रहल अछि 
नाना तरहक 
शव्द परिख रहल छी
मरि गेल, मरि गेलक हल्ला पर 
दौड़ल किछ लोक 
उमड़ल नहि भीड़
मरि गेलाक नामों पर 
सोचाइत छल 
कर्मों त' एहने छल 
तखन बुझाएल
ई हम कएल कि ?
आ हमरा स पहिने 
अहंकार, दुर्विचार 
हमरे देह सँ मरि गेल 
तइयो
कछमछ क' रहलहुँ 
ई, आई कियाक मरल ?
तहन सोचायल 
इ , मरल नहि 
हमर शक्तिक 
छीन होएवाक कारणे
हमरा छोड़ि देलक 
कारण 
आब इ हमरा सँ 
किछु नहि करा सकैत अछि 
आ कान में राम नाम सत्यक 
नारा सुनाइत अछि

-------संजय झा " नागदह" 18/06/15

सिनेहक बोल


दुखक सागरमे
सिनेहक बोल 
उठा दैत छैक
एहन सुनामी, जे 
अश्रुक धारा बनि
एहि सागरक पाइनकेँ  
बहा दैत छैक 
कतहु आर 
बेशक 
छनिक होई वा स्थायी 
हिचकि - हिचकि कS
प्रेम भरल बोलSक करीन
उपछि दैत छैक 
कौखन ऐना 
जेना,
एहि ठाम 
दुखक सागर त' कात जाए
पोखरि वा इनारो
नहि छल 
मुदा इ सागर 
महासागरोमे
परिणित भS जाएल 
करैत छैक 
नहि भेटला पर 
सिनेहक बोल !

---- संजय झा "नागदह" 01/07/2015 


छन भरिक आगि

शोक , शोकानुकूले पर 
नोर, चोटायल घाते पर 
राति होय वा भोर 
चाहे
एहन सन किछु 
टटका होय कि बसिया 
छन भरिक आगि 
जरा दैत छैक 
कि - कि ने !!


-----संजय झा "नागदह" 01/07/2015
प्रभु हम देखल ध्यानहि रे 
अति मेघ विशाला 
श्यामल वर्ण अद्भुत छवि रे 
लागथि विकराला
आँखि जखन मोर खुजल रे 
सब सुन्न सपाटा 
पुनि हम ध्यान लगाओल रे 
जुनि टुटहि ध्याना !


------sanjay jha "nagdah" 17/07/2015

चरिपतिया

1.
करू ओकरा कात भाई 
बड्ड चलबैत अछि थोंथि 
भनें लिखलक ओ
नाम सँ तँ अछि हमरे पोथी ।

-----संजय झा "नागदह" 11/08/2015

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2. ककरा करू फज्झति 
ककरा सँ कलह बेसाहु
घुमि रहल अछि काल चक्र 
एहि मूढ़कें, किछु दिन आर बिसारु


------------संजय झा "नागदह" 08/07/2015

*************************************************3. अमावश्या राति सन मुंह हुनक 
द्वितिया चान सन दांत 
बाजब यदि सुनि लेलहुँ हुनकर
त' करिते रहि जायब बात 

-------------संजय झा "नागदह "   18/05/15
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4. सन - सन बहय बसात
उड़िया रहल अछि, चुनरी हुनकर
छौड़ा सब भेल बताह 
हुनका लेखे धनो धन सन

---------संजय झा "नागदह "  17/05/15
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5. उपटि गेल खड़हाउड़ 
नहि बांचल खरही
कुश उत्पाटनक विधि
की भS रहल घरही -घरही ?
-------- संजय झा " नागदह"

Date - 20/12/2015

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6. देह निष्प्राण दिल्ली पड़ल अछि
प्राण त नागदहक गामे रहल अछि
इ गामक नेह देखाबी हम ककरा
निष्प्राण देहक मोले की रहैत अछि।

-------- संजय झा " नागदह"

Date - 14/12/2015

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7. विद्यापति पर्व
सब टाङ्गि रहल हुनक छायाचित्र
हम कहु कोना इ बात विचित्र
कहता कS रहलहुं विद्यापति पर्व
नहि रहैत अछि कनिऒ सन्दर्भ।


----------संजय झा "नागदह"
Date - 07/12/2015

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8. एक्का दुक्का मतलबी 
बाँकी के की भेटत ?
टीनक चश्मा पहिरा 
वोट अपन बटोरत। 

----- संजय झा "नागदह "
Date : 06/10/2015

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9. बुझि रहल नहि दाइ - माइ 
गली - गली घुमि रहल कसाई
ककरा कहबै के सुनत भाइ 
चहुँ दिस घेंटकट्टा अछि आइ। 
 


संजय झा "नागदह "
Date : 06/10/2015

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10.

सुरुये सँ परिवारवाद 
लगा देने अछि घुन 
कुकुर - बिलारिक चक्करमे
जनता बहा रहल अछि खून। 
संजय झा "नागदह "
Date : 06/10/2015

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11.
मनवा में रहे उमंग सदा तोहरा के,
बनल रहे इहे देह - नेह तोहरा के, 
जब ले कपार पर रही हाथ माई के, 
केहू ना कुछ बिगाड़ सकी तोहरा के ।

संजय झा "नागदह" 19/08/2015


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